UNGA में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अपनी ओर से कहानियां पेश कीं, तो भारत के स्थायी मिशन ने खुलकर जवाब दिया और पाकिस्तान के उस पूरे नैरेटिव को, बेनकाब कर दिया। भारत के फर्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने शहबाज शरीफ के भाषण को न केवल खंडित किया, बल्कि उसे “बेतुका नाटक” करार देते हुए उस देश के लंबे आतंकवाद-समर्थन के इतिहास को सभा के समक्ष रखा, एक ऐसा इतिहास जिसकी जड़ें अनकही नहीं रहीं।
पटेल गहलोत की आवाज में ठंडक थी और आक्रोश भी। उन्होंने याद दिलाया कि जिस पाकिस्तान की तरफ सत्ता और जनमानस ने बार-बार आंखें बंद रखी हैं, वही पाकिस्तान दशकों तक वैश्विक आतंकवाद को पनाह देता रहा है। ओसामा बिन लादेन का नाम लेकर उन्होंने उस देश के दोगलापन और नीयत पर सटीक चोट की। पाकिस्तान के उन दावों पर सवालिया निशान खड़े किए जो बग़ैर किसी ठोस साक्ष्य के और तथ्यों को मरोड़ कर पेश किए गए थे।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने सभा में दावा किया कि मई 2025 में उनकी पूर्वी सीमा पर “बिना वजह” हमला हुआ और कि उनकी वायु सेना ने भारतीय जेट गिराए, जबकि भारत ने उसी घटना के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत आतंकवादी अड्डों को निशाना बनाया। भारत ने बहावलपुर और मुरीदके में मारे गए आतंकियों की तस्वीरें और निहित साक्ष्य उठा कर रख दिए। उन तस्वीरों और सूचनाओं ने पाकिस्तान के दावों की पोल खोल कर रख दी। गहलोत ने कहा कि जब वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी सार्वजनिक रूप से कुख्यात आतंकियों का सम्मान करते हैं, तो उसकी नीयत पर शक करना ही स्वाभाविक है।
आतंकी शिविरों को करें बंद
भारत ने UN के मंच पर जो संदेश दिया, वह स्पष्ट और कठोर था। यह कहा गया कि किसी भी स्तर पर आतंकवाद का समर्थन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और आतंकवादी तथा उनके स्पॉन्सरों में कोई भेद नहीं माना जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान सच्चाई के साथ शांति चाहता है, तो रास्ता साफ है-आतंकवादी शिविरों को बंद करिए, भारत में चल रहे आतंकी नेटवर्क को खत्म करिए और वांछित आतंकियों को सौंपिए। यह बातचीत नहीं, यह एक बुनियादी शर्त है-शांति का परीक्षण तभी संभव होगा जब हिंसा की जड़ें खोदकर उखाड़ दी जाएं।
गहलोत ने न्याय के पक्ष में खड़े होकर यह भी कहा कि परमाणु ब्लैकमेल की आड़ में किसी को आतंकवाद को बढ़ावा देने की छूट नहीं दी जाएगी। उनका यह बयान सिर्फ कुटनीतिक शिष्टाचार से परे था। यह उन लोगों के लिए साफ़ चेतावनी थी जो राज्य-समर्थित हिंसा को राजनीतिक हथियार बनाते आए हैं। भारत ने यह भी रेखांकित किया कि किसी भी तरह की नोंकझोंक या आरोप-प्रत्यारोप के बीच वास्तविकताएं और सबूत ही निर्णायक होते हैं — और उन्हीं वास्तविकताओं ने इस सभागार में पाकिस्तान के मिथक को उजागर कर दिया है।
यह वही भारत था जिसने हाल के घटनाक्रमों में अपने नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा और जरूरी सैन्य कार्रवाई कर के आतंकवादियों के ठिकानों को बेनकाब किया। UN मंच पर दिया गया भारतीय जवाब केवल कूटनीति ही नहीं था, वह एक नैतिक और कानूनी दलील थी कि आतंकवाद का समर्थन किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं और न ही किसी राजनैतिक लाभ के लिए उसे बख्शा जा सकता है।
इस पूरे मंजर का सबसे बड़ा संदेश दोनों तरफ़ के दर्शकों के लिए एक सा था: दुनिया अब पुरानी दलीलों और ट्विस्ट किए हुए तथ्यों से प्रभावित नहीं होती। सूचना उपलब्ध है, सबूत सार्वजनिक हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समझ व संवेदनशीलता बदल चुकी है। भारत ने UN में जो किया, वह केवल एक पलटवार नहीं था। वह यह घोषित करने जैसा था कि अब तर्क-संगतता और साक्ष्य के आधार पर ही बहस चलानी होगी और जो भी इसे दरकिनार करेगा, उसकी असलियत सामने आएगी।
पूरे मामले में भारत का जवाब इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि उसने वैश्विक मंच पर यह स्पष्ट कर दिया कि आक्रामकता और आतंकवाद की राजनीति को अब अंतरराष्ट्रीय समाज उदासी या वैमनस्यता से नहीं, बल्कि कड़े तथ्यों और जवाबदेही के साथ नापेगा। शहबाज शरीफ के दावों की UN में खुलकर खंडन-प्रक्रिया ने यह संकेत दिया है कि अब कोई भी राष्ट्र बिना जवाबदेही के आतंकवाद का समर्थन नहीं कर सकता। यदि कोई देश ऐसा करता है तो उसे उसका सरोकार उसे खुद उठाना होगा।