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लेह पर तनाव: स्टेटहुड की मांगों ने बढ़ाया संकट

लद्दाख की स्थिति अत्यंत संवेदनशील है और इसके लिए भारत सरकार का सतत ध्यान आवश्यक है।

Mansi Singh द्वारा Mansi Singh
27 September 2025
in चर्चित
लेह पर तनाव: स्टेटहुड की मांगों ने बढ़ाया संकट

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लेह, लद्दाख को अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्य से अलग कर दिया गया और इसे विधानमंडल रहित केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इससे क्षेत्र को एक अलग पहचान मिली, लेकिन कई स्थानीय समूहों ने जल्द ही इसके संवेदनशील पर्यावरण, सीमित संसाधनों और अनूठा सांस्कृतिक धरोहर को लेकर चिंता जताई। उन्होंने स्टेटहुड और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होने की मांग शुरू की। छठी अनुसूची भारत के चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा  में आदिवासी समुदायों के लिए विशेष सुरक्षा प्रदान करती है। इस अनुसूची के तहत स्वायत्त जिला परिषदें स्थानीय प्रशासन, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण, प्रथा-आधारित कानूनों का नियमन, वित्तीय शक्तियों का उपयोग और अपने न्यायिक तंत्र का संचालन कर सकती हैं। ये प्रावधान आदिवासी बहुल क्षेत्रों को उनकी पहचान बनाए रखने और संसाधनों का स्वतंत्र प्रबंधन करने में मदद करते हैं।

इन चिंताओं को दूर करने के लिए भारत सरकार ने स्थानीय संगठनों जैसे एपेक्स बॉडी लेह और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के साथ उच्च-स्तरीय समिति (HPC) के माध्यम से वार्ता शुरू की। कुछ प्रगति हुई, जैसे अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण बढ़ाना, स्थानीय परिषदों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, भोटी और पुर्गी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता देना और 1,800 नए सरकारी पदों पर भर्ती शुरू करना। लेकिन स्टेटहुड की मांग हिंसक प्रदर्शनों में बदल गई। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने बुधवार को अपना 15-दिवसीय उपवास समाप्त किया, जब लेह में स्टेटहुड और छठी अनुसूची दर्जे को लेकर प्रदर्शन तनावपूर्ण और हिंसक हो गए।

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सोनम वांगचुक ने स्थिति पर दुख व्यक्त करते हुए कहा: “मुझे यह बताते हुए खेद है कि लेह में एक प्रदर्शन के दौरान तोड़-फोड़ हुई। कई कार्यालय और पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त किए गए और आग के हवाले कर दिए गए। हालांकि बंद की घोषणा की गई थी, फिर भी बड़ी संख्या में युवा एकत्रित हुए। यह उनका गुस्सा था, एक तरह का जेन-जेड क्रांति।”

इस बीच, लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने हिंसा के पीछे साजिश होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि लोगों को जानबूझकर उकसाया जा रहा था, और प्रदर्शन की तुलना उन युवा आंदोलनों से की जा रही थी जो पहले बांग्लादेश और नेपाल में सरकारें गिरा चुके हैं। उन्होंने आगे कहा,
“लोकतंत्र में प्रदर्शन करना एक अधिकार है। लेकिन यह शांतिपूर्ण होना चाहिए। पिछले दो दिनों में जनता को उकसाने का प्रयास किया गया और बांग्लादेश व नेपाल में हुए आंदोलनों के साथ तुलना की गई।”

लेह – लद्दाख में हुई इस भारी हिंसा के बाद वास्तविक स्थिति को समझना आवश्यक है। केंद्रीय सरकारी अधिकारियों ने बताया कि सोनम वांगचुक के उपवास के बाद भारत सरकार ने एपेक्स बॉडी लेह और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसे स्थानीय संगठनों के साथ उच्च-स्तरीय समिति (HPC) के माध्यम से औपचारिक और अनौपचारिक बैठकों का सिलसिला जारी रखा है। इन वार्ताओं के परिणामस्वरूप कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% करना, स्थानीय परिषदों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, भोटी और पुर्गी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता देना, और 1,800 सरकारी पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करना शामिल है। लद्दाखी नेताओं के साथ और बैठकों की योजना 25–26 सितंबर को है, जबकि HPC की अगली बैठक 6 अक्टूबर को निर्धारित की गई है।

हालाँकि, 24 सितंबर को लेह में विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले लिया। भीड़ भूख हड़ताल स्थल से निकलकर कई सरकारी कार्यालयों पर हमला कर दी, जिनमें मुख्य कार्यकारी परिषद (CEC) का कार्यालय और एक राजनीतिक दल का कार्यालय शामिल था। इन कार्यालयों में आग लगा दी गई, सुरक्षा बलों पर हमला किया गया, और एक पुलिस वाहन भी जलाया गया। झड़पों में 30 से अधिक पुलिस और सीआरपीएफ कर्मी घायल हो गए। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर पुलिस ने गोलीबारी की, जिससे कुछ लोगों के हताहत होने की खबरें मिलीं। दोपहर तक स्थिति को नियंत्रण में लाया गया। इस हिंसक घटनाक्रम का समय सोनम वांगचुक के 15-दिवसीय उपवास समाप्त होने के साथ मेल खाता है, इसके बाद वह लेह छोड़कर अपने गांव चले गए। इस घटना ने फिर से लद्दाख की मांगों पर ध्यान आकर्षित किया, जिसमें स्टेटहुड और छठी अनुसूची के संवैधानिक संरक्षण का मुद्दा प्रमुख है।

लद्दाख की स्थिति अत्यंत संवेदनशील है और इसके लिए भारत सरकार का सतत ध्यान आवश्यक है। स्थानीय जनता की स्टेटहुड और छठी अनुसूची के संरक्षण की आकांक्षाएं उनकी पहचान, संसाधनों और स्वायत्तता की चिंताओं पर आधारित हैं, लेकिन हिंसक प्रदर्शन ने माहौल को नाजुक बना दिया है। विपक्षी नेता पहले ही इस अनरेस्ट की तुलना बांग्लादेश और नेपाल में युवा-नेतृत्व वाले आंदोलन से कर रहे हैं और इसे “Gen-Z प्रदर्शन की लहर” का हिस्सा बता रहे हैं। ऐसी तुलना अगर अनियंत्रित रह गई, तो असंतोष बढ़ सकता है और आंदोलन और अधिक कट्टर हो सकता है। बढ़ते तनाव से बचने के लिए सरकार को न केवल संवाद जारी रखना चाहिए, बल्कि प्रगति के बारे में सक्रिय रूप से जानकारी देना, लद्दाख के लोगों को आश्वस्त करना और राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय रूप से इस मुद्दे के दुरुपयोग को रोकना भी जरूरी है। सतत जुड़ाव, संवेदनशीलता और विश्वास निर्माण ही इस अशांति के समय को स्थायी स्थिरता में बदलने की कुंजी हो सकती है।

Tags: Gen ZLadakh developmentLeh tensionSonam Wangchukstatehood demandलद्दाखलेहस्टेटहुड
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