छह दशकों से अधिक समय तक भारतीय वायुसेना की शौर्य-गाथाओं के साक्षी रहे और ‘आकाश के चीते’ कहलाने वाले प्रसिद्ध रूसी लड़ाकू विमान मिग-21 आज अपने गौरवशाली सफ़र का अंत कर रहे हैं। भारतीय वायुसेना की ‘रीढ़’ माने जाने वाले इस सुपरसोनिक फाइटर जेट का संचालन आज चंडीगढ़ में औपचारिक फ्लाईपास्ट और विदाई समारोह के साथ समाप्त हो जाएगा। एयरफोर्स चीफ एपी सिंह 23 स्क्वाड्रन के 6 जेट के साथ अंतिम उड़ान भरेंगे, जिसमें स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा भी शामिल होंगी। इसी दौरान मिग 21 को पानी की बाैछार से अंतिम सलामी दी जा रही है। गौरतलब है कि 1963 में चंडीगढ़ एयरबेस से ही वायुसेना में शामिल हुए इस विमान ने 62 वर्षों की सेवा में 1965 के भारत-पाक युद्ध, 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक में अपना शौर्य और पराक्रम सिद्ध किया।
ऐसे में आज हम इसके विदाई समारोह में न केवल इसके गौरवशाली इतिहास को जानेंगे, बल्कि यह भी समझेंगे कि आकाश के इस ‘चीते’ को आखिर क्यों “Widow Maker” का कलंक झेलना पड़ा और वे क्या कारण रहे, जिनकी वजह से अब इसे सेवामुक्त किया जा रहा है।
कैसे शुरू हुआ था MiG-21 का सफर
भारतीय वायुसेना में मिग-21 का सफर वर्ष 1963 में शुरू हुआ और यहीं से उसकी गौरवगाथा का एक स्वर्णिम अध्याय जुड़ा। लंबे समय तक यह विमान वायुसेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बना रहा। कुल मिलाकर भारतीय वायुसेना ने 870 से अधिक मिग-21 फाइटर जेट शामिल किए और वायुसेना ने इसके योगदान को शब्दों में पिरोते हुए कहा था कि छह दशकों की सेवा, साहस की अनगिनत कहानियां और एक ऐसा योद्धा जिसने राष्ट्र के गौरव को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, यही मिग-21 की पहचान है। साठ का दशक भारत और पाकिस्तान के बीच चरम तनाव का दौर था।
1962 के युद्ध के बाद सुरक्षा परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था और ऐसे समय भारतीय वायुसेना को एक ऐसे सुपरसोनिक फाइटर जेट की दरकार थी, जो न केवल दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दे सके, बल्कि भारत की वायु शक्ति को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाए। इसी दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को मुफ्त में एफ-104 स्टार फाइटर दे दिया, जिसने भारत की चिंता और बढ़ा दी। अब सवाल था कि भारत किस जेट पर भरोसा करे, जो ताकतवर भी हो, किफायती भी और तकनीक हस्तांतरण की शर्त पर भी खरा उतरे। विकल्प तीन थे, अमेरिका का एफ-104 स्टार फाइटर, फ्रांस का मिराज और सोवियत संघ का मिग-21। अमेरिका पाकिस्तान को खुश करने में व्यस्त था, इसलिए उसने भारत की मांगों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। फ्रांस भी अपने मिराज की तकनीक साझा करने के लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया और मिग-21 की डील पर मुहर लगी। इस समझौते के साथ हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इसका लाइसेंस प्रोडक्शन भी मिला, जो भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक कदम था।
मिग-21 कोई साधारण विमान नहीं था। इसका डिजाइन सरल और भरोसेमंद था, लागत कम थी लेकिन प्रदर्शन में किसी से पीछे नहीं था। तेज रफ्तार, पल भर में ऊंचाई पकड़ने की क्षमता और फुर्तीली उड़ान इसकी पहचान थी। दुश्मन के विमानों को पलक झपकते इंटरसेप्ट करना और आसमान में अपनी बादशाहत कायम करना मिग-21 का असली ट्रेडमार्क बन गया। यही कारण था कि यह विमान जल्दी ही भारतीय वायुसेना का सबसे भरोसेमंद प्रहरी बन गया। भारत का फैसला उस समय एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ, क्योंकि वही एफ-104 स्टार फाइटर जिसे अमेरिका गर्व से गेम-चेंजर कहता था, दुनिया भर में विडो मेकर के नाम से बदनाम हुआ। इसकी खामियों और लगातार क्रैश की वजह से सिर्फ जर्मनी में ही 300 से ज्यादा पायलट मारे गए। अगर भारत उस समय अमेरिका के जाल में फंस जाता तो शायद यही हश्र हमारे पायलटों के साथ भी होता। लेकिन भारत ने समय रहते सही विकल्प चुना और मिग-21 आने वाले दशकों तक भारतीय आसमान का सबसे ताकतवर प्रहरी बना रहा।
1965 से ऑपरेशन सिंदूर तक: भारतीय गगन का बेजोड़ प्रहरी
1963 की उस सुबह को आज भी भारतीय वायुसेना के इतिहास में याद किया जाता है, जब सोवियत संघ से आए छह चमकते हुए मिग-21 फाइटर जेट मुंबई के रास्ते भारत की धरती पर उतरे और फिर चंडीगढ़ एयरबेस तक पहुंचे। वहां सोवियत इंजीनियरों ने इन विमानों को अलग-अलग हिस्सों से जोड़कर तैयार किया और अपने पायलटों ने भारतीय पायलटों को इसकी उड़ान और संचालन की बारीकियों से परिचित कराया। मानो किसी ने भारतीय आसमान को नए पंख दे दिए हों। मिग-21 ने आते ही वायुसेना के रूप और स्वभाव को बदल डाला। 1965 और 1971 के युद्धों में जब यह गरजते हुए आसमान में उठा, तो पाकिस्तान के अमेरिकी विमानों को भी लोहे के चने चबाने पड़े। कारगिल की चोटियों पर भी यही चीता उतरा और दुश्मनों को यह समझा दिया कि भारतीय पायलट और उनका विमान किसी भी चुनौती से पीछे हटने वाले नहीं हैं।
भारत का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान होने के नाते मिग-21 केवल एक मशीन नहीं था बल्कि उस दौर के हर वायु सैनिक का गर्व था। इसकी सबसे खासियत थी इसकी गति, पलक झपकते ही यह मैक-2 की रफ्तार तक पहुंच जाता। यही वजह थी कि इसे “आसमान का चीता” कहा गया। छह दशकों तक इसने भारत की हवाई सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए रखी और अब जब यह विदा ले रहा है तो उसकी जगह स्वदेशी तेजस मार्क-1ए ले रहा है, लेकिन मिग-21 की वीरता को भुलाया नहीं जा सकता।
यह विमान केवल युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास के पन्नों पर भी अमिट छाप छोड़ चुका है। 1965 के युद्ध में पहली बार जब इसे जंग में उतारा गया, तो इसने पाकिस्तानी वायुसेना के अमेरिकी एफ-104 स्टारफाइटर जैसे आधुनिक विमानों के घमंड को तोड़ा। 1971 में जब बांग्लादेश की आज़ादी की जंग लड़ी गई, तब मिग-21 ने दुश्मन के ठिकानों पर सटीक हमले करके निर्णायक बढ़त दिलाई। 1999 में कारगिल की बर्फीली चोटियों पर इसने कठिन परिस्थितियों में रात की उड़ानों के जरिए दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त किया। 2019 की बालाकोट स्ट्राइक में तो इसने इतिहास रच डाला, जब मिग-21 बाइसन ने पाकिस्तान के एफ-16 को मार गिराया और ग्रुप कैप्टन अभिनंदन वर्धमान उस साहसिक घटना के नायक बने। और हाल ही में 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में भी मिग-21 ने अपने आखिरी बड़े मिशन को अंजाम दिया, मानो यह साबित करना चाहता हो कि विदाई से ठीक पहले भी उसमें वही जुनून और जौहर बाकी है।
लेकिन इस गौरवगाथा के साथ एक दर्द भी जुड़ा रहा। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इन छह दशकों में 400 से अधिक बार मिग-21 हादसों का शिकार हुआ और सैकड़ों वीर पायलट इस “उड़ते ताबूत” की बलि चढ़ गए। कई परिवार अपने बेटों, भाइयों और पतियों को खो बैठे। शायद इसी वजह से इसे “Widow Maker” का कलंक भी झेलना पड़ा। फिर भी भारतीय पायलटों ने इसे केवल एक जोखिम भरा विमान नहीं माना, बल्कि अपने साहस और समर्पण से इसे दुश्मन के लिए अब तक का सबसे घातक हथियार बना दिया। यही मानवीय कहानियां हैं जो मिग-21 को केवल एक मशीन से ऊपर उठाकर भारतीय पराक्रम का जीवंत प्रतीक बना देती हैं।
आज जब यह सुपरसोनिक प्रहरी विदा ले रहा है, तो उसके इंजनों की गड़गड़ाहट, पायलटों का जुनून और उसकी हर उड़ान की गाथा आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाएगी कि कैसे एक साधारण दिखने वाली मशीन ने भारतीय आसमान को छह दशकों तक सुरक्षित रखा। मिग-21 अब इतिहास का हिस्सा जरूर बन रहा है, लेकिन उसका नाम आने वाली हर पीढ़ी के दिलों में शौर्य, बलिदान और गौरव की अमर गाथा के रूप में गूंजता रहेगा।