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मोहन भागवत: 75 की उम्र में भारत की सभ्यतागत आवाज़

संघ को मोहन भागवत ने समय के साथ प्रासंगिक बनाया। कोविड के दौरान जब स्वयंसेवक हर गली-मोहल्ले में सेवा कर रहे थे, तब उनकी दूरदर्शिता की झलक साफ़ दिखाई दी।

TFI Desk द्वारा TFI Desk
11 September 2025
in चर्चित, प्रीमियम, भारत, भू-राजनीति, राजनीति
मोहन भागवत: 75 की उम्र में भारत की सभ्यतागत आवाज़

मोहन भागवत का असली जोर हमेशा समाज को भीतर से बदलने पर रहा है।

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11 सितम्बर 1950। महाराष्ट्र के चंद्रपुर की गलियों में जन्मा एक बालक आने वाले समय में भारतीय समाज और राजनीति की सबसे महत्वपूर्ण आवाज़ बनेगा, यह शायद किसी ने सोचा भी न होगा। पिता प्रचारक थे, घर का माहौल संघ से जुड़ा हुआ था। अनुशासन और राष्ट्रप्रेम बचपन से ही जैसे सांसों में घुल गया। पढ़ाई-लिखाई में वह पशु-चिकित्सा के क्षेत्र की ओर बढ़े, लेकिन 1975 का आपातकाल उनके जीवन की दिशा बदल ले गया। उस दौर में जब लोकतंत्र पर ताले जड़े जा रहे थे, मोहन भागवत ने अकादमिक करियर छोड़कर अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समर्पित कर दिया।

उस फैसले ने तय कर दिया कि आगे चलकर वे केवल संगठन के प्रचारक नहीं रहेंगे, बल्कि संघ की आत्मा को नई ऊर्जा देने वाले सरसंघचालक बनेंगे। शाखाओं की मिट्टी, गांवों की गलियां और साधारण swayamsevak का जीवन—इन्हीं अनुभवों ने उनकी दृष्टि को गढ़ा।

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2009 में जब वे संघ के छठे सरसंघचालक बने, तब संगठन पहले ही भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में गहरी जड़ें जमा चुका था। चुनौती यह थी कि परंपरा को बनाए रखते हुए आधुनिकता के साथ तालमेल कैसे बैठाया जाए। भागवत ने यही संतुलन साधा। शाखाओं की अनुशासित पंक्तियों से लेकर डिजिटल प्लेटफॉर्म तक, संघ को उन्होंने समय के साथ प्रासंगिक बनाया। कोविड महामारी के दौरान जब स्वयंसेवक हर गली-मोहल्ले में सेवा कर रहे थे, तब उनकी दूरदर्शिता की झलक साफ़ दिखाई दी।

लेकिन मोहन भागवत का असली जोर हमेशा समाज को भीतर से बदलने पर रहा है। वे बार-बार कहते रहे हैं कि किसी भी राष्ट्र की मज़बूती केवल राजनीति से नहीं आती, बल्कि उस समाज की समरसता और समानता से आती है। 2014 के विजयादशमी भाषण में उनका संदेश साफ़ था—“समाज को हर उस प्रथा को अस्वीकार करना होगा, जो हमें तोड़ती है।” जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ़ उनकी आवाज़ ने यह भी दिखाया कि संघ जड़ नहीं, बल्कि समय के साथ बदलने वाला संगठन है। यहां तक कि उन्होंने अंतरजातीय विवाह को भी सामाजिक एकता की राह बताया और स्वीकार किया कि कई swayamsevak इस बदलाव को जी रहे हैं।

उनके भाषणों का सबसे चर्चित हिस्सा हमेशा रहा है—भारत को हिन्दू राष्ट्र के रूप में परिभाषित करना। आलोचक अक्सर इसे संकीर्ण धार्मिक दृष्टिकोण मानते हैं, लेकिन भागवत का तर्क अलग है। उनके लिए ‘हिन्दू’ केवल पूजा-पद्धति का शब्द नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान है। “हिन्दुत्व संघर्ष का नहीं, एकता का शब्द है”—2016 में नागपुर के विजयादशमी मंच से उनका यही संदेश था। वे बार-बार स्पष्ट करते रहे हैं कि हिन्दू राष्ट्र का अर्थ किसी धर्म विशेष की प्रभुता नहीं, बल्कि उस साझा सांस्कृतिक धारा से है जिसने सहस्राब्दियों से विविधता के बीच भारत को एक सूत्र में पिरोया है।

उनका दृष्टिकोण केवल अतीत पर टिके रहने का नहीं, बल्कि भविष्य की ओर बढ़ने का भी है। वैश्वीकरण पर उनकी टिप्पणी खास मायने रखती है। 2018 में उन्होंने कहा था—“वैश्वीकरण अवश्यंभावी है, लेकिन भारत को अपनी शक्ति से वैश्विक होना चाहिए, न कि नकल से।” यह दृष्टि वही आत्मविश्वास है जिसने ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे विचार को ज़मीन पर उतारा।

भागवत की निगाह हमेशा युवाओं पर रही है। 2024 में नागपुर में उन्होंने कहा—“भारत का भविष्य युवाओं के हाथ में है। उन्हें अनुशासन, सेवा और आत्मविश्वास के साथ सभ्यता को आगे ले जाना होगा।” उनके लिए नेतृत्व केवल राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा, संस्कृति और समाज के हर पहलू तक फैला है।

आज जब वे 75 वर्ष के हो रहे हैं, संघ अपने शताब्दी वर्ष की दहलीज़ पर खड़ा है। यह संयोग केवल तिथियों का मेल नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता के एक नए अध्याय का संकेत है। नागपुर से शुरू हुआ एक छोटा संगठन अब वैश्विक भारतीयता का वाहक बन चुका है, और उसके शीर्ष पर बैठे सरसंघचालक उसे नई दिशा दे रहे हैं।

मोहन भागवत के विचारों से असहमति हो सकती है, लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ करना असंभव है। वे केवल एक संगठन के प्रमुख नहीं, बल्कि उस बहस के केंद्रीय पात्र हैं जिसमें भारत की आत्मा, उसका भविष्य और उसकी पहचान तय होती है। उनका 75वां जन्मदिन हमें यही याद दिलाता है कि भारत की असली शक्ति न तो पश्चिमी नकल में है, न ही खोखली राजनीति में- वह शक्ति उसकी सभ्यता में है। और इस सभ्यतागत आत्मविश्वास की गूंज आज भी नागपुर से लेकर विश्व मंच तक सुनाई देती है।

Tags: 75th Birthday75वां जन्मदिनMohan BhagwatNagpurrssSarsanghchalakआरएसएसनागपुरमोहन भागवतसरसंघचालक
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