बांग्लादेश में स्थित है सात शक्ति पीठ, क्या है उनकी वीर गाथाएँ।

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सभी शक्ति पीठ माता सती के शरीर के अंगों से जुड़े है।

बांग्लादेश में स्थित है सात शक्ति पीठ, क्या है उनकी वीर गाथाएँ।

हिंदू धर्म में शक्ति पीठों को काफी खास और पवित्र माना जाता है। शक्ति पीठ के सभी स्थान माता आदि शक्ति से जुड़े है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सभी शक्ति पीठ माता सती के शरीर के अंगों से जुड़े है। माता सती ने जब यज्ञ कुंड में कूद कर आत्मदाह किया थी उसके बाद भगवान शिव को दुखी और परेशान होता देख, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 108 टुकड़े कर दिए थे। जिसमें से 51 अंग पृथ्वी पर गिरे और जहां भी वह अंग गिरे वहीं शक्ति पीठ का निर्माण हो गया।

यह 51 शक्ति पीठ केवल भारत मे ही नही बल्कि दुनिया के अलग- अलग देशों मे है। जिसमें से 7 शक्ति पीठ बांग्लादेश में है।  जिनके नाम है- भवानीपुर शक्ति पीठ, बोधेश्वरी शक्ति पीठ, जेशोरेश्वरी शक्ति पीठ, सुगंधा शक्ति पीठ, सीता कुंड शक्ति पीठ, काला गुल शक्ति पीठ (सिलहट), कनाईघाट शक्तिपीठ।

भवानीपुर शक्ति पीठ

भवानीपुर शक्ति पीठ बांग्लादेश के करतोया नदी  के किनारे स्थित है, यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। मान्यता है कि यहीं माता सती का बायां कान गिरा था, इसलिए यहाँ माता अपर्णा की पूजा होती है और भगवान वामन को भैरव या रक्षक देवता माना जाता है। यह स्थान बोगरा ज़िले के शेरपुर उपजिला से लगभग 28 किलोमीटर दूर है।

1716 में जन्मी रानी भवानी, पति की मृत्यु के बाद नाटोर एस्टेट की शासक बनीं। उन्होंने नवाब सिराजुद्दौला का सामना किया, युद्ध में जीत हासिल की और अपनी बेटी को उसके हरम में जाने से बचाया। 1770 के बंगाल अकाल में उन्होंने गरीबों की सहायता की, शिक्षा को बढ़ावा दिया, विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और कई धार्मिक व सामाजिक निर्माण कराए, जिनमें वाराणसी का दुर्गा कुंड मंदिर और तारापीठ का विकास शामिल है।

बोधेश्वरी शक्ति पीठ

त्रिस्रोता श्री बोधेश्वरी शक्ति पीठ, बांग्लादेश के पंचगढ़ ज़िले के बोधेश्वरी गाँव में स्थित है। यह जगह बहुत पवित्र मानी जाती है क्योंकि मान्यता है कि यहीं माता सती का टखना ( ankle) गिरा था। इस पीठ पर माता अपर्णा की पूजा होती है। मंदिर तीन नदियों- करतोया, यमुनेश्वरी और बुरी तीस्ता के संगम पर बना है, इसलिए इसे “त्रिस्रोता” कहा जाता है। मंदिर का निर्माण सबसे पहले पाल काल में हुआ था और बाद में कूचबिहार के राजा प्राण नारायण ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।

यह पीठ आज भी भारत सीमा के पास खुला धार्मिक स्थल है और हर साल यहाँ पवित्र महालय और अक्षय तृतीया जैसे बड़े उत्सव होते हैं। महालय के समय हजारों लोग यहाँ अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने आते हैं।

राजा प्राण नारायण का इस शक्ति पीठ से खास संबंध था। 1661 में जब वे मुगलों से हार गए, तो उन्होंने यहाँ शरण ली और माता से आशीर्वाद माँगा। बाद में छापामार युद्ध छेड़कर उन्होंने तीन साल में अपना राज्य वापस जीत लिया और मंदिर को फिर से बनवाया। आज भी यह शक्ति पीठ स्थानीय हिंदुओं के लिए सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और एकता का प्रतीक है।

जेशोरेश्वरी शक्ति पीठ

जेशरिश्वरी शक्ति पीठ, जिसे जेशरवरी काली मंदिर भी कहा जाता है, बांग्लादेश के सतखीरा ज़िले के ईश्वरीपुर गाँव में स्थित है। पहले यह जेसोर ज़िले का हिस्सा था, इसलिए इसे जेशरिश्वरी कहा जाता है। मान्यता है कि यहाँ माता सती की हथेली गिरी थी। यहाँ माता जेशरिश्वरी की पूजा होती है।

यह मंदिर तब चर्चा में आया जब 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहाँ माता काली को स्वर्ण मुकुट अर्पित किया। मंदिर की स्थापना का श्रेय राजा प्रतापादित्य को दिया जाता है। कथा है कि उनके सेनापति को एक विशेष शिला दिखाई दी, जिससे प्रेरित होकर राजा ने यहाँ काली मंदिर बनवाया।

सुगंधा शक्ति पीठ

बरिशाल, बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में, सुगंधा नदी के किनारे स्थित एक पवित्र स्थल है। यहाँ सुगंधा शक्ति पीठ स्थित है, जिसे हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि यहीं माता सती की नाक गिरी थी। इस पीठ पर माता सुनंदा सुंदरी की पूजा होती है और उनके रक्षक भैरव त्र्यंबक माने जाते हैं।

इस इलाके का हिंदू जमींदारों के साथ गहरा रिश्ता रहा है। 1971 से पहले मंदिर की मूर्तियाँ चोरी हो गई थीं, लेकिन बाद में उन्हें फिर से बनाया गया और आज जो मूर्ति है वही स्थापित की गई है। सुगंधा शक्ति पीठ न सिर्फ धार्मिक स्थल है, बल्कि यह हिंदुओं की सांस्कृतिक एकता और परंपरा को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण केंद्र भी है। इसकी पूजा, इतिहास और संरचना इसे बारिशाल के सबसे खास धार्मिक स्थलों में से एक बनाती है।

सीता कुंड शक्ति पीठ

बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्व में स्थित चटगाँव जिला अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक जगहों के लिए जाना जाता है। यहाँ कई पवित्र स्थल हैं, जैसे कुमिरा और चंद्रनाथ पर्वत। इसी जिले के सीता कुंड उपजिला में सीता कुंडू नामक शक्ति पीठ है। इसे बहुत पवित्र माना जाता है क्योंकि कहा जाता है कि यहीं माता सती की दाहिनी भुजा गिरी थी। इस पीठ का रक्षक देवता चंद्रशेखर हैं।

मंदिर में भगवान शिव की भैरव रूप की मूर्ति महंगे मूंगे से बनी है, जो जगह की आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ाती है। लेकिन इस पवित्र जगह के सामने कुछ समस्याएँ भी हैं। खुले में शौचालय, प्लास्टिक कचरा, पुराने कमजोर ढांचे और कठिन पहुँच तीर्थयात्रियों के अनुभव को प्रभावित करते हैं। पुराने मंदिर का ढांचा टूट चुका है, अतिथिगृह नहीं है और चारदीवारी भी गायब है।

सीता कुंडू का इतिहास भगवान राम और त्रिपुरा राजपरिवार से जुड़ा हुआ है। अतिक्रमण और गैर-धार्मिक व्यवसायों के बावजूद यह जगह स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए बहुत खास है। इस शक्ति पीठ की पवित्रता और महत्व को बचाए रखने के लिए इसे तुरंत जीर्णोद्धार की जरूरत है। ऐसा होने से यह भविष्य में भी श्रद्धालुओं के लिए पूजा और आस्था का मजबूत केंद्र बना रहेगा।

काला गुल शक्ति पीठ

सिलहट, जिसे ऐतिहासिक रूप से श्रीहोतो कहा जाता था, बांग्लादेश का एक पवित्र और समृद्ध  शहर है। यहाँ श्री शैल पर्वत पर स्थित श्री महालक्ष्मी भैरवी गर्भ महापीठ है, जो शहर के लगभग 3 किमी दक्षिण-पूर्व में, गोटाटिकर और दक्षिण सुरमा के जैनपुर गाँव के पास स्थित है। यह वही जगह मानी जाती है जहाँ माता सती की गर्दन गिरी थी।

आदि शंकराचार्य के समय (8वीं-9वीं शताब्दी) लिखे गए शक्ति पीठ स्त्रोत में इसका उल्लेख है। भक्त यहां माता महालक्ष्मी की पूजा करते हैं और रक्षक भैरव को संभरानंद के नाम से जानते हैं। मंदिर में मुख्य देवता एक विशाल पत्थर की मूर्ति है।

इस क्षेत्र की कहानी लगभग 800 साल पहले के अंतिम हिंदू राजा गौर गोविंदा और उनके प्रजा, पात्रा समुदाय से जुड़ी है। पात्रा समुदाय आज भी खुद को शक्ति पीठ का रक्षक मानता है और राजा के प्रति श्रद्धा निभाता है।

कनाईघाट शक्तिपीठ

सिलहट में एक और पवित्र स्थल है, जिसे शक्ति पीठ माना जाता है। इसका नाम बामोजोंगा है। यह जगह मेघालय के बहुत करीब स्थित है। पहले इसे गौर गोविंदो के परिवार और जयंतिया महाराज परिवार संभालते थे और उन्होंने इसे देबोत्तर भूमि, यानी आध्यात्मिक भूमि के रूप में सुरक्षित रखा।

आज की स्थिति में मंदिर समिति स्थिर नहीं है। स्थानीय लोग बताते हैं कि समिति में कुछ ऐसे लोग हैं जो हिंदू परंपरा के लिए अनुकूल नहीं हैं और यहां गोमांस खाने को बढ़ावा दिया जाता है। इस जगह पर कोई प्राचीन मंदिर या संरचना अब बची नहीं है, फिर भी कई हिंदू संप्रदाय इसे सती पीठ और शक्ति पीठ के रूप में मानते हैं।

बामोजोंगा एक दूरदराज और कठिन पहुँच वाला इलाका है। यहां कोई मोटर योग्य सड़क नहीं है, न ही गेस्ट हाउस या पार्किंग की सुविधा। पास में एक छोटा तालाब है, लेकिन वह भी अतिक्रमित हो चुका है। इसके बावजूद, जयंतिया राजा के प्रतीक चिन्ह आज भी यहां मौजूद हैं, जो इस स्थान की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक अहमियत को दर्शाते हैं।

 

 

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