विवेक अग्निहोत्री की नई फ़िल्म The Bengal Files 5 सितंबर को देशभर में रिलीज़ हुई, लेकिन बंगाल में इसे देखने से लोगों को रोका जा रहा है। निर्देशक का आरोप है कि राज्य सरकार के दबाव में थिएटर मालिकों को धमकियां दी गईं, जिसके चलते अधिकांश सिनेमाघरों ने स्क्रीनिंग से हाथ खींच लिये। यह न केवल कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि बंगाल के अपने इतिहास को दबाने की कोशिश भी है।
बंगाल की काली सच्चाई पर पर्दा
The Bengal Files अग्निहोत्री की फ़ाइल्स ट्रिलॉजी का अंतिम अध्याय है। यह फ़िल्म 1946 के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ और उसके बाद हुए नोआखाली दंगों की भयावहता को सामने लाती है – जब हज़ारों हिंदुओं का कत्लेआम हुआ, महिलाओं का अपहरण और बलात्कार हुआ और लाखों को पलायन करना पड़ा।
विडंबना यह है कि जिस धरती पर यह नरसंहार हुआ, वहीं के लोगों को फ़िल्म देखने से वंचित किया जा रहा है। अग्निहोत्री का सवाल वाजिब है – “जब अन्य समुदायों के इतिहास पर फिल्में बनाई जा सकती हैं, तो हिंदू नरसंहार की सच्चाई दिखाने पर आपत्ति क्यों?”
पल्लवी जोशी की भावनात्मक अपील
फ़िल्म की निर्माता और मुख्य अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने लिखा कि “फ़िल्म बनने से पहले ही मुख्यमंत्री ने इसका मज़ाक उड़ाया, FIR दर्ज करवाई गई, ट्रेलर रोका गया और अब थिएटर मालिकों को डराया जा रहा है। यह आधिकारिक प्रतिबंध नहीं है, पर एक ‘अनौपचारिक बैन’ है।”
जोशी ने फ़िल्म को डायरेक्ट एक्शन डे के पीड़ितों के लिए श्रद्धांजलि बताया और कहा कि उनका संघर्ष किसी राजनीतिक एजेंडे के लिए नहीं, बल्कि ऐतिहासिक न्याय के लिए है।
वोट बैंक बनाम सच्चाई
ममता बनर्जी सरकार पर यह आरोप नया नहीं है कि वह वोट बैंक के डर से असुविधाजनक सच को दबाने की कोशिश करती है। बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा और हिंदुओं पर अत्याचार के मुद्दे पर बार-बार राजनीति होती रही है। लेकिन एक लोकतांत्रिक राज्य में इतिहास को दबाना और लोगों को अपनी सच्चाई जानने से रोकना खतरनाक मिसाल है।
राष्ट्र के लिए चेतावनी
The Bengal Files का संदेश साफ है – “अगर कश्मीर ने आपको झकझोरा, तो बंगाल आपको सताएगा।” यह सिर्फ एक फ़िल्म नहीं, बल्कि स्मृति का पुनर्जीवन है। 1946 की त्रासदी को भुलाना पीड़ितों के साथ अन्याय है। यह विवाद हमें याद दिलाता है कि इतिहास को राजनीतिक सुविधा के हिसाब से नहीं बदला जा सकता। बंगाल भारत की सांस्कृतिक राजधानी है – वहां की जनता को अपने इतिहास को जानने और समझने का अधिकार है। ममता सरकार को यह तय करना होगा कि क्या सत्ता बचाना ज्यादा जरूरी है या सत्य को सामने आने देना। क्योंकि इतिहास को जितना दबाया जाएगा, उतनी ही जोर से वह वापस सामने आएगा।