‘इतिहास’ का अनुवाद ‘हिस्ट्री’ नहीं होता

इतिहास शब्द को History के साथ में प्रयुक्त कर भारतीय इतिहास के साथ अन्याय होगा

इतिहास’ का अनुवाद ‘हिस्ट्री’ नहीं होता

अपनी पुस्तक आर्य (श्रेष्ठ) भारत का प्राक्कथन लिखते समय जो जो विचार मन में आये उन्हें यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ। किसी भी देश अथवा राष्ट्र का साहित्य और विशेषतः उसका इतिहास उस राष्ट्र के जीवन और सामाजिक ताने-बाने की दिशा तय करता है। उस देश के लोग उसी से प्रेरणा लेकर अपने वर्तमान का अध्ययन कर निज और अपने राष्ट्र के उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। किसी भी देश के राष्ट्र निर्माताओं की प्रेरणा का केंद्र सदैव इतिहास ही रहा है।

इतिहास – History-Historiography- ‘इतिहास’ शब्द अंग्रेजी शब्द ‘History’ का अनुवाद नहीं है। अपितु वह अति वैज्ञानिक है। History शब्द का अर्थ है ‘Inquiry’ अर्थात ‘खोज, पूछताछ’। यह अर्थ संभावना मूलक है। Historiography का अर्थ इतिहास लेखन है, इतिहास शास्त्र नहीं। इसमें विनिश्चय ना होने के कारण यह सिद्धांत की सीमाओं तक पहुंचने में असमर्थ है। इसके विपरीत इतिहास शब्द का अर्थ संभावनामूलक ना होकर विनिश्चयात्मक है। यह 3 पदों से बना है- ‘इति-ह-आस’; इति इस प्रकार व ‘ऐसा’ ह का अर्थ है ‘निश्चित’; आस का अर्थ है ‘था’ अर्थात ‘ऐसा निश्चित हुआ था। अतः इतिहास शब्द को History के साथ में प्रयुक्त कर भारतीय इतिहास के साथ अन्याय होगा। इतिहास शास्त्र के अनुसार इतिहास वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें सर्वप्रथम पृथ्वी के 197 करोड़ वर्षों का इतिहास वहाँ युग विभाजन के अनुसार प्रस्तुत किया गया है। पाश्चात्य जगत में इस दृष्टि से किए गए वर्तमान तक के सारे प्रयत्न अपूर्ण है। इतिहास घटित होता है, निर्देशित नहीं। जबकी आधुनिक रूप में लिखित भारत का इतिहास निर्देशित है। यह इतिहास उस शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार इतिहास है ही नहीं जो भारतीय ऋषियों ने दी है। यह तो मात्र विदेशी हमलावरों की क्रीड़ा स्थलों की दास्तान है, जिसे परतंत्रता के रूप में अंग्रेजी सत्ता ने भारत को सदा सदा के लिए अपना गुलाम बनाए रखने के उ‌द्देश्य से उसके इतिहास धर्म और भाषा बदलने के लिए स्वनिर्धारित ‘फ्रेमवर्क’ के अनुरूप लिखावाया था।

विजेता जातियों द्वारा विजित जाति का इतिहास सदा से ही उन्हें स्वत्वहीन, पौरुष विहीन, दीन, हीन, दरिद्र और पतित रूप में नियंत्रित करने के लिए इस रूप में लिखवाया जाता रहा है कि उनमें ऊंचा उठने की इच्छा ही समाप्त हो जाए। इस प्रकार की छेड़छाड़ और अपने हितों की पूर्ति के लिए भारतीय इतिहास के साथ स्वतंत्रता के पश्चात पंडित नेहरू के समय और उसके बाद भी जाती रही और कई बार तो यहां तक देखा जाता है कि स्वतंत्रता के पश्चात सेकुलर टोला ने भारतीय इतिहास को और अधिक नुकसान पहुंचाया है जिससे भारत की भारतीयता और राष्ट्रीयत्व को अधिक क्षति पहुंची है। नेशनलिस्म एण्ड डिस्टॉरशनस इन इंडियन हिस्ट्री में K Narhari लिखते हैं:

“Pr. Jawahar Lal Nehru India’s first Prime Minister was English Educated and proud of the fact. He accepted all British introduce distortions and falsehood as Gospel truth. He endorsed all in his letter to the Daughter, that become established in his influential bood glimpsed of World History After Indian independence, the leftists and Indian muslims who have opposed national identity came under Nehru’s umbrella. They continued the British colonial and Christians missionary programme of uprooting young Indians from their culture and traditions through education. They ensured that their version of history was taught all over the country.”

“The following illustrates their method, At the 1986 meeting of the National Integration Council (Subcommittee) to discuss international policy Nripen Chakeravarthy then the Communist Chief Minister of Tripura stressed that India is a multinational country and history books should take that into account. And Muneer Raja Ex-Director of NIEPA (National Institute of Educational Planning and Administration) and farmer Vice Chancellor of Delhi University objected to the contents of history text books on the grounds that they heart Muslim sentiments. The NCERT representatives promised to take care of their concerns. The result was serious distortion and over and falsification of history that was for worse than those during the British period.”

जबकि इतिहास का मुख्य उ‌द्देश्य बीते हुए काल की घटनाओं का सत्य और सही रूप में वर्णन करना होता है। इतिहासकार सत्य का उद्‌घाटक होता है। किसी भी ऐतिहासिक घटना का वर्णन करने से पूर्व इतिहासकार का यह दायित्व होता है कि वह उस घटना पर शुद्ध और संतुलित बुद्धि से, उन्मुक्त हृदय से और औचित्य की दृष्टि से चिंतन और मनन किये बिना किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए उसे स्वतन्य ढंग से सत्य रूप में चित्रित करे। इसके विपरीत यदि किसी घटना को किसी व्यक्ति, मॉडल या विचारधारा से प्रतिबद्ध होकर लिखा जाता है तब वह इतिहास नहीं रह जाता। इतिहास का विकृतिकरण क्यों? एक मिति वाक्य है- यदि आप किसी देश की गुलाम बनाना चाहते हैं तो उसके इतिहास को नष्ट कर दो। आक्रांता इतिहास के उपरोक्त महत्व को अच्छी तरह समझते थे। अतः भारत में मुस्लिम विचारों के अक्रान्ताओं ने और बाद में अंग्रेजों ने तत्पश्चात साम्यवादियों और स्कूलों ने अपने अपने उ‌द्देश्य की पूर्ति हेतु नष्ट और विकृतिकरण या फूट फैलाने का कार्य किया। लेकिन किसी भी जाति के भूतकाल को पूर्णतः नष्ट करना संभव नहीं है उसे विफल अवश्य किया जा सकता है। भारत के इतिहास के विकृतिकरण के चार मुख्य कारणः

पहला कारण है इस्लाम, दूसरा ईसाईयत, तीसरा साम्यवाद, चौथा और अंतिम कारण नेहरूवादी धर्म निरपेक्षता। प्रांरभ के तीनों विचारों का उदय भारत के बाहर हुआ, चौथा विचार नेहरूवादी धर्मनिर्पेक्षता इन तीनों का मिश्रण है। इन सभी ने भारतीय इतिहास को नष्ट करने के सारे प्रयत्न कर लिए जैसे इस्लामीकरण की वैश्विक योजना विपाल, इस्लाम ने सैनिक शक्ति के बल पर सारे विश्व का इस्लामीकरण करने की योजना बनाई थी। इस योजना के अनुसार ईरान से लेकर स्पेन तक के सभी देशी का 100 वर्षों के अन्दर इस्लामीकरण हो गया और 225 वर्षों में इस्लाम धीन तक पहुंच गया परन्तु उसे दिल्ली तक पहुंचने में 300 वर्ष लगे और आगे चलकर हिन्दू प्रतिशोध और भी लीव हो गया और हिन्दुओं ने इस्लाम को आगे बढ़ने से रोक दिया ।

सभी प्रकार के प्रयत्नों, षडयंत्रों के बावजूद भी यदि आज भी भारतीय संस्कृति, भारतीय जीवन पद्धति. भारतीय विचार की धारा प्रवाहमान और जीवित है तो केवल और केवल वह भारतीय इतिहास शास्त्र है। मैक्समूलर ने अंग्रेजों के षड्यन्त्र को पूरी तन्मयता से पूरा किया लेकिन अंत में 16-12-1868 को डियूक ऑफ अरगाईल को हार कर लिखना पड़ा “भारत के प्राचीन धर्म का पतन हो हि नहीं सकता, तो इसमें मेरा क्या दोष?

अतः भारत के इतिहास का अध्ययन भारतीय दृष्टि से करना अत्यंत आवश्यक है। उसके लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इतिहास का मतलब ‘हिस्ट्री’ नहीं होता ! क्रमशः….

Exit mobile version