भारत आज जिस राह पर आगे बढ़ रहा है, वह केवल विकास या आत्मनिर्भरता की राह नहीं, बल्कि एक नए भारत के आत्मविश्वास की राह है। यह वह भारत है, जो अब सुरक्षा के लिए किसी पर निर्भर नहीं, बल्कि अपनी शक्ति से शांति स्थापित करने वाला राष्ट्र बन चुका है। भारत के इसी आत्मविश्वास की गूंज तब सुनाई दी, जब डीआरडीओ (DRDO) के विकसित जोरावर लाइट टैंक से नाग मार्क-II मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। यह केवल एक तकनीकी घटना नहीं, बल्कि भारत की स्वदेशी सैन्य क्रांति की उद्घोषणा है।
स्वदेशी पराक्रम की प्रतीक घटना
भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित जोरावर लाइट टैंक ने हाल ही में तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल नाग Mk-II का सफल परीक्षण किया। यह परीक्षण न केवल तकनीकी रूप से सफल रहा, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। परीक्षण के दौरान मिसाइल ने टॉप-अटैक मोड में लक्ष्य को सटीकता से भेदा, यानी दुश्मन के टैंक के ऊपर के सबसे कमजोर हिस्से पर सीधा प्रहार।
वीडियो फुटेज में नाग मिसाइल की उड़ान, उसकी फायरिंग की गति और लक्ष्य-विनाश की झलक देखकर रक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि यह भारत के लिए नया युग है, जब टैंक से छोड़ी गई हर मिसाइल, ‘मेड इन इंडिया’ की पहचान होगी।
जोरावर, सीमाओं पर तैनात ‘हल्का पराक्रमी’
जोरावर लाइट टैंक का नाम भारतीय इतिहास के उस अमर योद्धा से प्रेरित है, महाराजा जोरावर सिंह से, जिन्होंने 19वीं सदी में लद्दाख से लेकर तिब्बत तक भारत का परचम लहराया था। यह नाम ही बताता है कि यह टैंक केवल मशीन नहीं, बल्कि एक आत्मा है, जो दुर्गम इलाकों में भारत की सुरक्षा का प्रहरी बनेगा।
जोरावर टैंक की विशेषताएं
वजन केवल 25 टन, जबकि पारंपरिक टैंक (जैसे अर्जुन) 60 टन से अधिक होते हैं।
ड्रोन इंटीग्रेशन सिस्टम — दुश्मन की गतिविधि की लाइव फीड सीधे कमांडर तक पहुंचती है।
मल्टी-वेपन कॉन्फिगरेशन — मेन गन के साथ एंटी-टैंक मिसाइल नाग Mk-II भी तैनात।
ऑपरेशन के अनुकूल डिजाइन — ऊंचाई वाले सीमाई क्षेत्रों (लद्दाख, अरुणाचल, सिक्किम) के लिए विकसित।
इन क्षमताओं की बदौलत यह टैंक माउंटेन वॉरफेयर का मास्टर बन चुका है, जहां भारी टैंक पहुंच नहीं पाते, वहां जोरावर फुर्ती से दुश्मन पर निशाना साधेगा।
नाग मार्क-II, भारत का ‘टैंक किलर’
नाग मिसाइल, जिसे DRDO ने विकसित किया है, भारत की फायर एंड फॉरगेट तकनीक का जीवंत उदाहरण है। इसका मतलब है, एक बार टारगेट लॉक हो जाए, तो मिसाइल अपने आप लक्ष्य को भेद देगी, इसके बाद उसे बीच में किसी गाइडेंस की कोई जरूरत नहीं होती।
मुख्य विशेषताएं:
तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM)
टॉप-अटैक मोड — दुश्मन के टैंक की छत पर सटीक प्रहार
इन्फ्रारेड सीकिंग सिस्टम — दिन-रात, हर मौसम में प्रभावी
रेंज: लगभग 5 से 7 किलोमीटर
लॉन्च प्लेटफॉर्म: जोरावर टैंक, हेलीकॉप्टर, इन्फैंट्री वाहन आदि
परीक्षण में नाग मिसाइल ने न केवल लक्ष्य भेदा, बल्कि रेंज और सटीकता में भी अद्भुत प्रदर्शन किया। यह साबित करता है कि भारत की तकनीक अब किसी भी विदेशी मानक से पीछे नहीं।
सीमाओं की सुरक्षा से परे एक ‘डिटरेंस’
यह परीक्षण सिर्फ सैन्य प्रयोग नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक नीति का हिस्सा है। भारत अब “रिएक्टिव डिफेंस” (प्रतिक्रियात्मक रक्षा) नहीं, बल्कि “प्रोएक्टिव डिटरेंस” (सक्रिय निवारण) की नीति अपना रहा है। इसका सीधा मतलब साफ है, दुश्मन को जवाब नहीं, पहले से चेतावनी देना।
लाइट टैंक और एटीजीएम की यह जोड़ी भारत की उत्तरी सीमाओं पर गेम चेंजर साबित होगी। चीन के पास जहां “Type 15” जैसे लाइट टैंक हैं, अब भारत के पास जोरावर है और उससे भी आगे, भारत के पास “नाग” है। यानी भविष्य की किसी भी सीमा-संघर्ष की स्थिति में भारत अब बराबरी नहीं, बल्कि बढ़त के साथ मैदान में उतरेगा।
‘मेक इन इंडिया’ का सैन्य रूप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ अब केवल आर्थिक नारा नहीं रहा, यह अब रणनीतिक नीति का स्तंभ बन चुका है। पिछले कुछ वर्षों में डीआरडीओ, एचएएल, बीईएल और निजी उद्योगों ने जो प्रगति की है, उसने भारत को हथियार-निर्माण में आत्मविश्वास दिया है।
जोरावर टैंक और नाग मिसाइल इसी आत्मनिर्भरता का जीवंत उदाहरण हैं। पहले जहां टैंक और मिसाइलों के लिए भारत को रूस, फ्रांस या इज़राइल की तकनीक लेनी पड़ती थी, वहीं अब DRDO ने सिद्ध कर दिया है कि अपनी रक्षा के लिए भारत केवल खरीदने वाला नहीं, बल्कि निर्माण करने वाला राष्ट्र है। यह सफलता भारत को न केवल सामरिक स्वतंत्रता देगी, बल्कि वैश्विक हथियार बाज़ार में विश्वसनीय निर्यातक के रूप में भी स्थापित करेगी।
सैनिकों के आत्मविश्वास की ढाल
भारत के सैनिक सीमाओं पर तैनात रहते हुए अब ऐसे हथियारों से लैस होंगे, जो भारतीय मस्तिष्क और भारतीय हाथों की देन हैं। यह सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि मन का बल भी बढ़ाता है। कल्पना कीजिए, जब लद्दाख की बर्फीली ऊंचाइयों पर भारतीय सैनिक के पास होगा जोरावर टैंक, जो नाग मिसाइल से लैस है, तब चीन या पाकिस्तान की कोई भी हरकत सिर्फ इरादा बनकर रह जाएगी, क्योंकि जवाब पहले से तय है।
वैश्विक स्तर पर संदेश
इस परीक्षण ने अंतरराष्ट्रीय रक्षा जगत को स्पष्ट संकेत दिया है कि भारत अब “टेक्नोलॉजी फॉलोअर” नहीं, बल्कि “टेक्नोलॉजी लीडर” बन रहा है। अब तक पश्चिमी देशों ने दशकों तक भारत को एक उपभोक्ता राष्ट्र की तरह देखा है। लेकिन, आज वही देश भारत के उत्पादों में निवेश करना चाहते हैं। रूस से लेकर फ्रांस तक, सभी मान रहे हैं कि भारतीय रक्षा उद्योग अब वैश्विक मानक पर खरा उतर चुका है।
राष्ट्रीय गर्व, विज्ञान से राष्ट्रवाद तक
कभी कहा जाता था कि तोपों के युग में भारत केवल खरीदार है। लेकिन आज की सच्चाई यह है कि भारत खुद अपना शस्त्रागार बना चुका है। इस उपलब्धि के पीछे न केवल इंजीनियरों की मेहनत है, बल्कि एक सांस्कृतिक चेतना भी है, वो चेतना जो कहती है, राष्ट्र की रक्षा केवल सीमाओं से नहीं, आत्मविश्वास से होती है। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि राष्ट्रवाद केवल भाषण नहीं, बल्कि प्रयोगशाला में पसीने से उपजा परिणाम भी हो सकता है।
जब नाग मिसाइल जोरावर टैंक से दागी गई, तो यह केवल बारूद की आवाज नहीं थी, यह भारत के आत्मसम्मान की दहाड़ थी। यह संदेश था कि भारत अब किसी भी युद्ध में अपने हथियारों से, अपने विज्ञान से, और अपने इरादे से लड़ेगा।
आज जोरावर और नाग केवल रक्षा उपकरण नहीं रहे, वे भारत की नई सैन्य आत्मा के प्रतीक हैं।
यह वह आत्मा है जो कहती है कि भारत शांति चाहता है, पर युद्ध की तैयारी भी पूरी रखता है।यह नया भारत है, जो युद्ध नहीं चाहता, लेकिन जीतने के लिए सदा तैयार रहता है।