भारत के फैसलों पर सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता अमेरिका, ट्रंप के सहयोगी ने ही अमेरिका को सुनाया

जैमीसन ग्रीर ने कहा कि भारत संप्रभु देश है और वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेता रहेगा। यह टिप्पणी ट्रंप प्रशासन की कड़ी नीतियों और रूस से तेल खरीद पर लगाए गए दबाव के बीच आई है।

भारत के फैसलों पर सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता अमेरिका, ट्रंप के सहयोगी ने ही अमेरिका को सुनाया

पूरे घटनाक्रम ने भारत के नैरेटिव को और बुलंद किया है।

न्यूयॉर्क में एक सार्वजनिक मंच पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने स्पष्ट किया कि अमेरिका भारत के फैसलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता। ग्रीर ने कहा कि भारत एक संप्रभु देश है और वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेता रहेगा। यह टिप्पणी ट्रंप प्रशासन की कड़ी नीतियों और रूस से तेल खरीद पर लगाए गए दबाव के बीच आई है। हालांकि, इसे कई विश्लेषक अमेरिका की नरमी और भारत के प्रति रणनीतिक सम्मान के संकेत के रूप में देख रहे हैं।

हालांकि, यह नरमी भारत की स्थिति की मजबूती और व्यावहारिक दृष्टिकोण को बदलने में सक्षम नहीं है। ग्रीर ने यह भी संकेत दिया कि भारत धीरे-धीरे रूसी ऊर्जा से दूरी बना रहा है, लेकिन यह दूरी भारत की रणनीतिक आवश्यकताओं और राष्ट्रीय हितों के मुताबिक है, न कि किसी बाहरी दबाव के कारण।

स्पष्ट है भारत का रूख

पिछले कुछ महीनों में अमेरिका ने भारत पर व्यापारिक और आर्थिक दबाव बढ़ाया है। भारत के उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक के टैरिफ लगाए गए और रूस से तेल खरीद पर रोक लगाने के प्रयास भी किए गए। इसके बावजूद भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों और आर्थिक प्राथमिकताओं के अनुसार निर्णय करेगा। यह न केवल एक आर्थिक मामला है, बल्कि भारत की संप्रभुता और विदेश नीति की दिशा को भी दर्शाता है।

रूस की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका की इस नीति की आलोचना करते हुए कहा कि भारत और चीन पर दबाव डालना आर्थिक और राजनीतिक रूप से नुकसानदेह हो सकता है। उनका यह बयान यह दर्शाता है कि भारत की रूस के साथ व्यापारिक और ऊर्जा संबंध केवल आर्थिक लेनदेन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय संतुलन और रणनीतिक सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

हालांकि, यह बात भी गौर करने योग्य है कि भारत की विदेश नीति ने हमेशा संतुलन और व्यावहारिक दृष्टिकोण पर जोर दिया है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि भारत केवल अपने हितों के अनुसार कदम उठाता है, और किसी भी देश की धमकी या दबाव उसे अपने मार्ग से नहीं मोड़ सकता। ग्रीर का बयान इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह अमेरिका के भीतर एक तरह की समझ और स्वीकार्यता का संकेत देता है कि भारत के फैसलों में सीधे तौर पर हस्तक्षेप करना न केवल असंभव ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी अनुचित होगा।

इस पूरे घटनाक्रम ने भारत के नैरेटिव को और बुलंद किया है। यह संदेश स्पष्ट है कि भारत अपनी रणनीति और ऊर्जा सुरक्षा के मामले में किसी भी बाहरी दबाव को नहीं मानता। अमेरिका की चेतावनी, जो प्रारंभ में दबाव जैसा दिखती है, असल में भारत के संप्रभु निर्णय और उसकी व्यावहारिक विदेश नीति को मान्यता देने वाला संकेत बन गई है।

इस तरह, भारत ने अपनी स्थिति को संतुलित रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट कर दिया है कि उसके निर्णय राष्ट्रीय हितों और रणनीतिक जरूरतों पर आधारित हैं। कोई भी देश उसे अपने हितों के लिए हुक्म चलाने का प्रयास नहीं कर सकता। अमेरिका की यह चेतावनी, अंततः, भारत की ताकत और संप्रभुता को ही रेखांकित करती है।

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