बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार: कांग्रेस-राजद विधायकों के इस्तीफे से भाजपा को मिला बल

रोहतास के चेनारी से कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री मुरारी प्रसाद गौतम और कैमूर के भभुआ से राजद विधायक भरत बिंद दोनों के इस्तीफे ने यह दिखा दिया है कि विपक्ष की यह एकजुटता केवल सत्ता की आकांक्षा पर टिकी थी

बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन की दीवारों में दरार: कांग्रेस-राजद विधायकों के इस्तीफे से भाजपा को मिला बल

राजद का भविष्य तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर टिका है, लेकिन उनके पास नीति की स्पष्टता नहीं।

बिहार की राजनीति फिर एक बार करवट ले रही है। चुनाव से पहले जिस गठबंधन ने खुद को नरेंद्र मोदी और भाजपा के अजेय अभियान के विरुद्ध एकमात्र विकल्प बताने की कोशिश की थी, वही अब खुद अपने ही भीतर से दरकने लगा है। बुधवार को कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एक-एक विधायकों ने इस्तीफा देकर विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन की खोखली एकता को उजागर कर दिया।

रोहतास के चेनारी से कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री मुरारी प्रसाद गौतम और कैमूर के भभुआ से राजद विधायक भरत बिंद दोनों के इस्तीफे ने यह दिखा दिया है कि विपक्ष की यह एकजुटता केवल सत्ता की आकांक्षा पर टिकी थी, विचार या प्रतिबद्धता पर नहीं। सूत्रों का कहना है कि दोनों नेता शीघ्र ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं।

गौर से देखें तो यह केवल दो इस्तीफों की बात नहीं है, यह बिहार में बदलती राजनीतिक चेतना का संकेत है, ऐसी चेतना जो जाति, धर्म और वंश से आगे बढ़कर अब विकास, स्थिरता और नेतृत्व की विश्वसनीयता पर केंद्रित हो चुकी है।

मुरारी प्रसाद गौतम का इस्तीफा: कांग्रेस में अंतर्विरोध की मिसाल

मुरारी प्रसाद गौतम, रोहतास के प्रभावशाली नेता और पूर्व मुखिया महेंद्र राम के पुत्र हैं। दो बार विधायक रहे गौतम कांग्रेस के पुराने सिपाही रहे हैं, लेकिन पार्टी की दिशा और नेतृत्व को लेकर उनकी नाराजगी लंबे समय से सामने आती रही है।

जब कांग्रेस ने उन पर जदयू के साथ सांठगांठ के आरोप लगाए और अयोग्यता की याचिका दायर की, तब उन्होंने स्पीकर के निर्णय से पहले ही इस्तीफा देकर स्पष्ट संदेश दे दिया कि वे अब इस कमज़ोर और नेतृत्वहीन कांग्रेस का हिस्सा नहीं रहना चाहते। उनका यह कदम कांग्रेस की संगठनात्मक जड़ता को बेनकाब करता है, ऐसी पार्टी जो न तो अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान दे पा रही है और न ही अपने जनाधार को बचा पा रही है।

गौतम के भाजपा में शामिल होने की संभावना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं, जो भाजपा के सबका साथ, सबका विकास नीति के केंद्रीय स्तंभों में से एक बन चुका है।

भरत बिंद ने दिखाई राजद में असंतोष की झलक

राजद के भरत बिंद का इस्तीफा बिहार में दूसरी बड़ी राजनीतिक हलचल है। 2020 में पहली बार विधानसभा पहुंचे बिंद, तेजस्वी यादव के करीबी माने जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे संगठन में उपेक्षित महसूस करने लगे। पार्टी के भीतर टिकट वितरण और नेतृत्व शैली को लेकर असंतोष बढ़ रहा है।

भरत बिंद, अति पिछड़ा वर्ग (EBC) से आते हैं, जो बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। भाजपा ने पिछले एक दशक में जिस सामाजिक समीकरण को साधा है, उसमें अति पिछड़ा वर्ग उसकी सबसे मजबूत नींव बन चुका है। इस वर्ग के बड़े नेता सम्राट चौधरी, संजीव बालियान और नंदकिशोर यादव जैसे चेहरे भाजपा के सामाजिक समावेशन मॉडल का प्रतीक हैं।

भरत बिंद का भाजपा की ओर झुकाव यह दिखाता है कि अब यह वर्ग केवल सामाजिक न्याय की नारेबाजी से संतुष्ट नहीं है, वह राजनीतिक सम्मान और विकास की ठोस गारंटी चाहता है, जो भाजपा दे रही है।

इंडिया गठबंधन की खोखली एकता

इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी विफलता यह है कि यह विचारधारा पर नहीं, व्यक्ति-केन्द्रित सत्ता विरोध पर टिका है। सभी विपक्षी दलों का एकमात्र एजेंडा है, मोदी हटाओ। लेकिन, मोदी के हटने के बाद क्या? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

कांग्रेस, राजद और जदयू तीनों के बीच न तो नेतृत्व पर सहमति है और न ही एजेंडे पर। नीतीश कुमार खुद पहले भाजपा छोड़कर राजद-कांग्रेस के पाले में गए और अब वे भाजपा के प्रबल समर्थकों में गिने जाते हैं। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव का सपना है कि वे बिहार की कमान अकेले ही संभालें। ये बात कांग्रेस और राजद, दोनों के बीच केवल ‘अनिवार्य परंतु अप्रभावी’ घटक बनकर रह गई है।

दरअसल यह गठबंधन अंदर से उसी दिन कमजोर पड़ गया था, जब 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर राजद और कांग्रेस में विवाद हुआ था। अब जब विधानसभा चुनाव की आहट तेज़ है, तो अंदरूनी कलह सार्वजनिक रूप ले चुकी है।

भाजपा की रणनीति: सामाजिक इंजीनियरिंग से वैचारिक स्थिरता तक

भाजपा की ताकत यह है कि उसने बिहार को केवल जातीय राजनीति का मैदान नहीं माना, बल्कि वैचारिक जनजागरण का प्रदेश बनाया। 2014 से लेकर अब तक पार्टी ने दलित, अति पिछड़ा, महिला, युवा और ग्रामीण वर्गों में अपना स्थायी जनाधार बनाया है।

मोदी सरकार की योजनाएं: प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, जल जीवन मिशन, पीएम किसान सम्मान निधि ने सीधे-सीधे गांवों के घरों तक राहत पहुंचाई है। भाजपा की राजनीति का केंद्र अब विकास और सशक्तिकरण है, जबकि विपक्ष अभी भी भय और भ्रम की राजनीति में उलझा हुआ है।

वैसे भी नीतीश कुमार की राजनीति संतुलन की रही है, लेकिन भाजपा की राजनीति निश्चितता की है। भाजपा का संदेश स्पष्ट है नेतृत्व स्थायी है, नीयत साफ है और राष्ट्र सर्वोपरि है। यही वजह है कि आज भाजपा न केवल बिहार में बल्कि पूरे उत्तर भारत में स्थिरता का पर्याय बन चुकी है।

भाजपा की रणनीति की सफलता

कभी बिहार की राजनीति को मंडल बनाम कमंडल के चश्मे से देखा जाता था। लेकिन, अब वह समीकरण पूरी तरह बदल चुका है। भाजपा ने कमंडल के साथ मंडल को जोड़ दिया है, यानी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ सामाजिक समावेशन। भाजपा ने जानबूझकर उन वर्गों पर ध्यान केंद्रित किया जो पारंपरिक रूप से राजद या कांग्रेस के वोट बैंक माने जाते थे। जैसे कुशवाहा, बिंद, पासवान, निषाद, रविदास और मल्लाह समुदाय। इन वर्गों को यह एहसास हुआ कि भाजपा केवल ऊंची जातियों की पार्टी नहीं रही, बल्कि अब यह राष्ट्रहित की पार्टी बन चुकी है, जहां हर मेहनतकश नागरिक के लिए जगह है।

दलित समाज से आने वाले नेता जैसे जीतनराम मांझी और रामविलास पासवान (जीवनकाल में) भाजपा के इस सामाजिक गठजोड़ के सेतु बने। उनके बाद भी भाजपा ने उनके वारिसों को अपने राजनीतिक परिवार का हिस्सा बनाए रखा है, जिससे यह संदेश गया कि भाजपा में विकास की निरंतरता है, न कि वंश की विरासत।

विपक्षी गठबंधन की वैचारिक थकान

‘इंडिया’ गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी उसका वैचारिक दिशाहीविहीनता है। जब भाजपा राष्ट्रवाद की बात करती है, तो कांग्रेस और राजद उसे ध्रुवीकरण कहकर खारिज कर देते हैं। जब भाजपा आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाती है, तो विपक्ष मानवाधिकार की दुहाई देता है। जब मोदी सरकार विकास योजनाओं की चर्चा करती है, तो विपक्ष सांप्रदायिकता का मुद्दा उठाता है। आखिर यह है क्या, विपक्ष के पास कोई मुद्दा तो दिखता नहीं, केवल मोदी और नीतीश की बुराई करो और उनका विरोध करो, अनर्गल प्रलाप करो। इससे क्या होने वाला है?

यह रणनीति अब पुरानी पड़ चुकी है। जनता अब भावनात्मक प्रपंचों से आगे बढ़ चुकी है। बिहार की नई पीढ़ी जानती है कि स्थिर सरकार ही निवेश, रोजगार और शिक्षा के लिए जरूरी है।

राजद और कांग्रेस का भविष्य: अस्तित्व की जद्दोजहद

राजद का भविष्य तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर टिका है, लेकिन उनके पास नीति की स्पष्टता नहीं। वे अपने पिता लालू यादव की शैली की राजनीति से आगे नहीं निकल पा रहे हैं। बिहार की जनता अब जाति आधारित नारेबाजी नहीं, बल्कि विकास आधारित परिणाम चाहती है।

कांग्रेस के लिए तो स्थिति और भी दयनीय है। पार्टी न तो राष्ट्रीय स्तर पर भरोसेमंद रही, न ही राज्य स्तर पर प्रासंगिक। जिन जिलों में कांग्रेस कभी सबसे मजबूत थी जैसे रोहतास, भोजपुर, सिवान वहां अब पार्टी के पास न संगठन है और न ही नेतृत्व। मुरारी प्रसाद गौतम जैसे नेता का जाना कांग्रेस की जमीनी मौजूदगी के अंत का प्रतीक है।

भाजपा को राजनीतिक और नैरेटिव दोनों स्तरों पर लाभ

कांग्रेस और राजद के दो विधायकों के इस्तीफे से भाजपा को दोहरा लाभ मिला है। पहला यह कि संख्यात्मक रूप से विपक्ष कमजोर हुआ है। दूसरा नैरेटिव के स्तर पर भी भाजपा का दावा मजबूत हुआ है कि मोदी विरोध की राजनीति टिकाऊ नहीं है। भाजपा को अब यह कहने में आसानी होगी कि विपक्षी गठबंधन केवल सत्ता की डील है, जबकि भाजपा सेवा का आंदोलन है। भाजपा की संगठनात्मक एकजुटता, विचार की स्पष्टता और नेतृत्व की स्थिरता उसके सबसे बड़े हथियार हैं।

भाजपा ने पहले ही विधानसभा चुनाव के लिए अपनी मिशन बिहार रणनीति तैयार कर ली है, जिसमें लक्ष्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि स्थायी शासन मॉडल को स्थापित करना है। पार्टी का फोकस अब जातीय गठजोड़ से हटकर विकास आधारित जनसंपर्क पर है।

बिहार में भाजपा की उभरती अग्रिम पंक्ति

बिहार के राजनीतिक समीकरण अब उस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां भाजपा को अकेले बहुमत पाने की संभावना से कोई इंकार नहीं किया जा सकता। राज्य में भाजपा के पास संगठन की गहराई है, युवा कार्यकर्ताओं की फौज है और केंद्र की योजनाओं का भरोसा है। इसके विपरीत, ‘इंडिया’ गठबंधन के पास केवल असहमति का एजेंडा है न दृष्टि और न ही दिशा।

जब जनता स्थिर नेतृत्व और विकास की आकांक्षा में भाजपा को देखती है, तो विपक्ष उसके सामने केवल आरोपों का पुलिंदा खोल देता है। यही राजनीतिक अंतर है, भाजपा शासन देती है, लेकिन विपक्ष क्या करता है, केवल भाषण।

इस्तीफे नहीं, युग परिवर्तन का संकेत

मुरारी प्रसाद गौतम और भरत बिंद का इस्तीफा केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, यह बिहार की राजनीति में वैचारिक परिवर्तन की दस्तक है। यह उस दौर की शुरुआत है जब जाति से ऊपर राष्ट्र की चेतना आकार ले रही है और भाजपा उसी चेतना की वाहक बन चुकी है।

इंडिया गठबंधन अब एक राजनीतिक प्रयोग भर रह गया है, जबकि भाजपा एक वैचारिक आंदोलन में बदल चुकी है, जो केवल सत्ता नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की दिशा तय कर रहा है। बिहार में भाजपा का उभार केवल सीटों की गिनती नहीं है, बल्कि उस सामाजिक परिवर्तन की कहानी है, जिसमें हर वर्ग, हर जाति और हर समुदाय एक साथ खड़ा है। भारत की एकता, विकास और आत्मगौरव के पक्ष में।

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