लखनऊ की धरती से जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर भारत पाकिस्तान को जन्म दे सकता है, तो वो…”—तो यह अधूरा वाक्य पाकिस्तान के लिए एक पूर्ण संदेश बन गया। यह सिर्फ एक भाषण ही नहीं था, यह इतिहास के पुनर्लेखन की घोषणा थी। शब्द अधूरे थे, पर भाव स्पष्ट—भारत अब केवल चेतावनी नहीं देता, अब वह निर्णायक कदम उठाने को तैयार है।
यह वक्तव्य ऐसे समय में आया जब पाकिस्तान अपनी ही गलतियों के दलदल में फंस चुका है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) उसकी सेना पर लगातार हमले कर रही है, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) सरकारी ठिकानों को उड़ा रही है, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में अलगाववाद बढ़ रहा है। कभी दूसरों को बांटने का शौक रखने वाला पाकिस्तान आज खुद टुकड़ों में बंटने की कगार पर है। ऐसे में भारत के रक्षा मंत्री का यह कहना कि हर इंच पाकिस्तानी ज़मीन ब्रह्मोस की रेंज में है, केवल तकनीकी बयान नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत था कि भारत अब रक्षात्मक राष्ट्र नहीं, निर्णायक शक्ति बन चुका है।
पहले चेतावनी, फिर विनाश
राजनाथ सिंह का यह वक्तव्य ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में और अधिक मायने रखता है। यह वह अभियान था, जिसने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों को उनके अड्डों में जाकर जवाब दिया। पाहलगाम हमले के बाद भारत ने जिस गति, सटीकता और दृढ़ता से जवाब दिया, उसने साफ कर दिया कि अब आतंक के लिए भारत में कोई स्थान नहीं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह केवल प्रतिशोध नहीं था, बल्कि एक संदेश था कि आतंक जहां भी पनपेगा, वही खत्म होगा। यह वही नीति है जो मोदी युग के भारत को परिभाषित करती है, पहले चेतावनी, फिर विनाश।
अपने ही पापों का परिणाम भुगत रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान की समस्या अब भारत नहीं, उसका अपना चरित्र बन चुका है। जिस आतंक को उसने दशकों तक अपनी ‘रणनीतिक संपत्ति’ कहा, वही अब उसकी तबाही का कारण बन चुका है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जो कभी इस्लामाबाद के इशारों पर अफगानिस्तान में खेल खेलती थी, आज उसी की राजधानी पर गोलियां बरसा रही है। बलूचिस्तान, जहां वर्षों से संसाधनों की लूट और अत्याचार का इतिहास है, अब विद्रोह का केंद्र बन चुका है। सिंध में राष्ट्रवादी आवाजें उठ रही हैं और कराची में सेना की सत्ता के खिलाफ खुला आक्रोश है। पाकिस्तान का यह विघटन किसी बाहरी साजिश का परिणाम नहीं, बल्कि उसके अपने पापों का परिणाम है।
ऐसे में राजनाथ सिंह का अधूरा वाक्य अजीत डोभाल की उस चेतावनी की याद दिलाता है जब उन्होंने कहा था कि अगर पाकिस्तान ने मुंबई जैसा हमला दोहराया, तो उसे बलूचिस्तान खोना पड़ेगा। तब यह कथन प्रतीकात्मक लगा था, लेकिन आज पाकिस्तान की ज़मीन पर वही भविष्यवाणी सच होती दिखाई दे रही है। पाकिस्तान के भीतर जो आग जल रही है, वह अब किसी सीमा पार योजना का हिस्सा नहीं, वह उसके अपने बनाए नरक का ही धुआं है।
मिसाइल नहीं, चेतावनी है ब्रह्मोस
ब्रह्मोस मिसाइल के लखनऊ यूनिट से रक्षा मंत्री ने जो संदेश दिया, वह केवल रक्षा उत्पादन की उपलब्धि नहीं थी, यह आत्मनिर्भर भारत की दृढ़ता का प्रदर्शन था। ₹380 करोड़ की लागत से बनी 200 एकड़ की यह यूनिट केवल एक औद्योगिक केंद्र नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का मंदिर है। भारत अब विदेशी पुर्जों की भीख नहीं मांगता, बल्कि अपने दम पर सुरक्षा के नए आयाम रच रहा है। ब्रह्मोस भारत और रूस की संयुक्त देन अब तीनों सेनाओं की रीढ़ बन चुकी है। 290 किलोमीटर की रेंज, सुपरसोनिक स्पीड और ‘फायर एंड फॉरगेट’ तकनीक के साथ यह मिसाइल केवल हथियार नहीं, एक संदेश है भारत अब अपनी सीमाओं की रक्षा दूसरों पर निर्भर रहकर नहीं करेगा।
राजनाथ सिंह ने जब कहा कि हर इंच पाकिस्तान हमारी पहुंच में है तो यह केवल भौगोलिक रेंज का बयान नहीं था, यह एक मनोवैज्ञानिक संदेश था। पाकिस्तान दशकों तक भारत के धैर्य की परीक्षा लेता रहा, लेकिन अब भारत की नीति स्पष्ट है धैर्य को कमजोरी समझने की भूल मत करना। मोदी सरकार के तहत भारत ने जो रणनीतिक संतुलन साधा है, वह इतिहास में अभूतपूर्व है। न तो वह युद्ध की राजनीति करता है, न ही आतंक के सामने झुकता है। भारत अब न तो 1947 का है, न 1971 का यह 2025 का भारत है, जो जानता है कि कब वार करना है और कब वार रोकना है।
कभी भी टूट सकता है पाकिस्तान
पाकिस्तान की हालत अब ऐसी है कि IMF के कर्ज़ की सांस पर टिकी अर्थव्यवस्था, बंटा हुआ समाज और बेबस सेना ये सब मिलकर उसके टूटने का संकेत दे रहे हैं। और जब कोई राष्ट्र अपने ही नागरिकों से डरने लगे, तो उसका अंत केवल समय की बात रह जाता है। बलूचिस्तान अलगाव की आग में है, सिंध राष्ट्रवाद की लहर में और पश्तून अब खुलेआम इस्लामाबाद के खिलाफ बोल रहे हैं। पाकिस्तान की आत्मा अब एक शरीर में नहीं समा रही और यह विभाजन किसी बाहरी शक्ति की देन नहीं, उसकी अपनी मूर्खता की देन है।
भारत की ओर से राजनाथ सिंह की चेतावनी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह आक्रामकता नहीं, आत्मविश्वास से उपजी है। भारत अब अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए किसी गठबंधन या वैश्विक अनुमोदन की प्रतीक्षा नहीं करता। वह खुद निर्णय लेता है, खुद लड़ता है और खुद जीतता है। यह वही आत्मनिर्भर भारत है जिसकी नींव पीएम मोदी ने रखी थी और जिसे आज ब्रह्मोस जैसी परियोजनाएं मजबूती दे रही हैं।
लखनऊ की सभा में जो कुछ कहा गया, वह एक राष्ट्र की परिपक्वता का प्रतीक था। यह भाषण पाकिस्तान के लिए धमकी नहीं, बल्कि भविष्यवाणी थी। भारत ने कभी युद्ध चाहा नहीं, लेकिन अगर कोई युद्ध थोपेगा, तो भारत अब अपने इतिहास से पीछे नहीं हटेगा। जिस भूमि ने किसी समय पाकिस्तान को जन्म दिया था, वही भूमि अब यह तय करेगी कि इतिहास कब और कैसे सुधारना है।
राजनाथ सिंह के अधूरे वाक्य में पूरा दर्शन छिपा था भारत न तो आक्रांता है और न ही प्रतिक्रियावादी, भारत निर्माता है। लेकिन, अगर कोई उसके निर्माण को नष्ट करने की कोशिश करेगा, तो भारत उसे सुधारने में संकोच नहीं करेगा। यह नया भारत है जो संयम में शक्ति देखता है और शक्ति में करुणा। मगर यह भी उतना ही स्पष्ट है कि अब यह देश किसी के आतंक, झूठ या ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि भारत की चुप्पी उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि आने वाले प्रहार की चेतावनी है।
अंत में शायद राजनाथ सिंह का अधूरा वाक्य इसी संदेश का सार था कि अगर भारत जन्म दे सकता है, तो वह मिटा भी सकता है, जब मिटाना न्याय बन जाए।