भारतीय वायुसेना को दुनिया की तीसरी वायुसेना का खिताब, तकनीक से ज़्यादा यह है राजनीतिक इच्छाशक्ति की जीत

2014 के बाद भारत की रक्षा नीति का सबसे बड़ा परिवर्तन यह था कि देश ने पहली बार सुरक्षा को राजनीतिक प्राथमिकता के केंद्र में रखा। पहले जहां वायुसेना की योजनाएं नौकरशाही की फ़ाइलों में अटक जाती थीं, वहीं अब फैसले राजनीतिक स्तर पर त्वरित और निर्णायक होने लगे।

भारतीय वायुसेना को दुनिया की तीसरी वायुसेना का खिताब, तकनीक से ज़्यादा यह है राजनीतिक इच्छाशक्ति की जीत

भारत की रक्षा प्रणाली लंबे समय तक ‘संस्थागत जड़ता’ में फंसी रही।

भारत जब दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर वायुसेना के रूप में उभरा, तो यह किसी एक वर्ष की उपलब्धि नहीं थी। यह उस राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम है, जिसने बीते एक दशक में भारत की रक्षा नीति को प्रतिक्रियात्मक से प्रगतिशील बनाया। ध्यान रहे, यह वही इच्छाशक्ति है जिसने खरीददार भारत की छवि को बदलकर निर्माता भारत की नींव रखी।

जब वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिटरी एयरक्राफ्ट (WDMMA) ने भारत को रूस और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर रखा, तो बीजिंग का बौखलाना स्वाभाविक था। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स बार-बार यह कहता रहा कि रैंकिंग कागज़ों पर है, असली ताकत युद्ध क्षमता में है। असल में यही शिकायत दर्शाती है कि भारत की वायुशक्ति अब मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी चीन को चुनौती दे रही है। दरअसल, भारत की यह बढ़त केवल संख्याओं की बाज़ीगरी नहीं, बल्कि नेतृत्व के संकल्प की कहानी है।

रणनीति नहीं, दृष्टि बदली

2014 के बाद भारत की रक्षा नीति का सबसे बड़ा परिवर्तन यह था कि देश ने पहली बार सुरक्षा को राजनीतिक प्राथमिकता के केंद्र में रखा। पहले जहां वायुसेना की योजनाएं नौकरशाही की फ़ाइलों में अटक जाती थीं, वहीं अब फैसले राजनीतिक स्तर पर त्वरित और निर्णायक होने लगे।
राफेल सौदा इसका प्रतीक है। वर्षों तक ठंडे बस्ते में पड़ी खरीद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति ने गति दी। न केवल विमानों की खरीद हुई, बल्कि प्रशिक्षण, लॉजिस्टिक सपोर्ट और रखरखाव की संपूर्ण व्यवस्था को नई ऊर्जा मिली।

यही कारण है कि भारतीय वायुसेना ने अपनी ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी को असाधारण स्तर तक पहुंचाया। चाहे बालाकोट एयरस्ट्राइक हो या लद्दाख में तेज़ तैनाती, हर बार दिखा कि भारत के पास अब निर्णय लेने की राजनीतिक ताकत है।

वायुशक्ति की रीढ़ है आत्मनिर्भरता की नीति

भारत की वायुसेना के तीसरे स्थान पर आने के पीछे सिर्फ विदेशी विमानों का योगदान नहीं है। असल क्रांति आत्मनिर्भर भारत की नीति से आई है। हल्के लड़ाकू विमान तेजस, उन्नत हेलिकॉप्टर ध्रुव और आने वाले दशकों के लिए योजना बना AMCA प्रोजेक्ट, यह सब बताता है कि भारत अब import-dependent नहीं, बल्कि innovation-driven राष्ट्र बन रहा है।

यह बदलाव अचानक नहीं आया। इसके पीछे राजनीतिक नेतृत्व का वह दीर्घकालिक दृष्टिकोण है, जिसने विज्ञान, रणनीति और उत्पादन को एक साथ जोड़ा। रक्षा क्षेत्र में Private Participation, Make in India और Strategic Partnership Model जैसे कदम केवल आर्थिक नहीं, राजनीतिक इच्छाशक्ति के प्रत्यक्ष प्रदर्शन हैं।

चीन की बौखलाहट: पराजय नहीं, भय का संकेत

चीन का ग्लोबल टाइम्स इस रैंकिंग पर सवाल इसलिए नहीं उठा रहा कि उसे संदेह है, बल्कि इसलिए कि उसे डर है। बीजिंग का असली भय यह है कि भारत अब केवल सैन्य शक्ति में ही नहीं, बल्कि निर्णय क्षमता में भी बराबरी पर पहुंच चुका है।

चीन की सैन्य मशीनरी चाहे विशाल क्यों न हो, पर वह राजनीतिक पारदर्शिता से विहीन है। उसके निर्णय केंद्रीकृत और प्रचार-प्रधान हैं। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यहां निर्णायक बढ़त दी है, क्योंकि जनता का विश्वास और राजनीतिक वैधता से उपजी इच्छाशक्ति किसी भी केंद्रीकृत शक्ति से अधिक स्थायी होती है।

भारत के नेतृत्व ने यह समझा कि वायुशक्ति केवल आकाश में नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के भीतर गढ़ी जाती है। इसलिए चीन के लिए यह सिर्फ रैंकिंग नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश है। भारत अब ‘रिएक्ट’ नहीं, ‘शेप’ करता है।

नीति से नैरेटिव तक: भारत की बदली हुई स्थिति

पहले भारत के पास शक्ति थी, पर कथा नहीं थी। आज भारत के पास दोनों हैं, शक्ति और उसका नैरेटिव। यह नैरेटिव उसी राजनीतिक इच्छाशक्ति से पैदा हुआ है, जिसने दशकों से चले आ रहे संतुलनवाद की जगह सशक्त राष्ट्रवाद को नीति का आधार बनाया। अब भारत की विदेश नीति रक्षा नीति से अलग नहीं चलती, बल्कि दोनों मिलकर एक व्यापक रणनीतिक छत्र बनाते हैं।

भारत जब फ्रांस, रूस और अमेरिका तीनों से समान स्तर पर साझेदारी करता है, तो यह ‘कूटनीति का संतुलन’ नहीं, बल्कि ‘सशक्त संप्रभुता’ का प्रदर्शन है। यही वजह है कि भारतीय वायुसेना की विविधता को कमजोरी नहीं, शक्ति माना गया है, क्योंकि यह राजनीतिक स्थिरता और रणनीतिक बहुलता का प्रतीक है।

राजनीतिक इच्छाशक्ति बनाम संस्थागत जड़ता

भारत की रक्षा प्रणाली लंबे समय तक ‘संस्थागत जड़ता’ में फंसी रही। खरीद प्रक्रियाएं सालों तक चलती रहीं, पर निर्णय नहीं हुआ। राजनीतिक इच्छाशक्ति ने इस चक्र को तोड़ा। 2019 के बाद वायुसेना में आधुनिकीकरण की गति जिस तेजी से बढ़ी, उसने यह सिद्ध कर दिया कि जब राजनीतिक नेतृत्व जोखिम लेने को तैयार हो, तो संस्थागत ढांचे अपने आप गति पकड़ते हैं। बालाकोट के बाद जिस तरह भारत ने अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद अपने निर्णय पर अडिग रहकर वायुशक्ति का प्रयोग किया, वह इस नए युग की शुरुआत थी, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा ‘कूटनीति का परिणाम’ नहीं, बल्कि ‘राजनीतिक प्राथमिकता’ है।

भारत का तीसरे स्थान पर पहुंचना केवल तकनीकी, औद्योगिक या रणनीतिक उपलब्धि नहीं है। यह उस राजनीतिक इच्छाशक्ति की विजय है जिसने वर्षों के संकोच को तोड़कर आत्मविश्वास की नई उड़ान दी। आज भारतीय वायुसेना जिस आत्मनिर्भरता और तत्परता के साथ काम कर रही है, वह किसी एक संगठन का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के राजनीतिक-सामाजिक संकल्प का परिणाम है।

ग्लोबल टाइम्स जैसे अखबार बौखलाते रहेंगे, क्योंकि वे समझ नहीं पाएंगे कि भारत की ताकत उसकी मशीनों में नहीं, उसकी नीति बनाने वाले संकल्प में है। भारत की वायुशक्ति अब केवल सीमा की रक्षा नहीं करती। वह उस राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रतीक है, जिसने यह तय कर लिया है कि 21वीं सदी का आसमान भारतीय होगा।

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