शक्ति ही शांति की गारंटी: अस्त्रहिंद 2025 से हिंद-प्रशांत क्षेत्र को भारत का संदेश

भारत और आस्ट्रेलिया के संयुक्त अभ्यास ने दिखाया कि नया भारत अब केवल रक्षा नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता का नेतृत्व भी करेगा। यह आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भारत का परिचायक है।

शक्ति ही शांति की गारंटी: अस्त्रहिंद 2025 से हिंद-प्रशांत क्षेत्र को भारत का संदेश

‘अस्त्रहिंद 2025’ भारत के बढ़ते प्रभाव, उसकी नीतिगत दृढ़ता और सैन्य पराक्रम का प्रतीक है।

पर्थ के इरविन बैरक में जब सोमवार को भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सेनाओं ने चौथे संस्करण के संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘अस्त्रहिंद 2025’ की शुरुआत की, तो यह केवल दो देशों की सेनाओं का प्रशिक्षण नहीं था, यह उस नये युग की शुरुआत थी जिसमें भारत अपनी सामरिक शक्ति, कूटनीतिक विवेक और राष्ट्रीय आत्मविश्वास के साथ वैश्विक सुरक्षा संरचना को आकार देने में निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

आज भारत और ऑस्ट्रेलिया केवल साझेदार नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत के सह-निर्माता बन चुके हैं। यह अभ्यास इस बात का जीवंत प्रमाण है कि अब भारत किसी भी महाशक्ति का पिछलग्गू नहीं, बल्कि स्वयं एक निर्णायक शक्ति केंद्र है।

हिंद-प्रशांत में भारत का उदय: आत्मनिर्भरता से आत्मविश्वास तक

पिछले एक दशक में भारत की विदेश और रक्षा नीति में एक गहरा परिवर्तन देखा गया है। जो देश कभी “गुटनिरपेक्ष” नीति के नाम पर निष्क्रियता का शिकार था, वह अब “रणनीतिक स्वायत्तता” के साथ अपने हितों की रक्षा कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र आज दुनिया की अर्थव्यवस्था, व्यापारिक मार्गों और सामरिक प्रभाव का केंद्र है। चीन ने जिस तरह से दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है, उसने छोटे देशों से लेकर बड़ी शक्तियों त क को सतर्क कर दिया है।

ऐसे में भारत का यह संदेश स्पष्ट है कि हम किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे, बल्कि अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करेंगे। ‘अस्त्रहिंद 2025’ इसी आत्मविश्वास की झलक है। यह अभ्यास भारत के उस बदलते चरित्र का प्रतीक है, जहाँ सैन्य शक्ति और कूटनीतिक संवाद समानांतर चल रहे हैं।

साझेदारी नहीं, सुरक्षा की साझी जिम्मेदारी

2022 में राजस्थान से शुरू हुई यह श्रृंखला अब हर वर्ष बारी-बारी से भारत और ऑस्ट्रेलिया में आयोजित की जाती है। पिछले साल पुणे में हुए ‘अस्त्रहिंद 2024’ में दोनों सेनाओं ने आतंकवाद-रोधी अभियान, घायल सैनिकों की निकासी और शहरी युद्ध प्रशिक्षण किया था। अब ‘अस्त्रहिंद 2025’ में यह सहयोग और गहराया है।

शहरी व अर्ध-शहरी क्षेत्रों में संयुक्त कंपनी-स्तर के ऑपरेशन से लेकर रियल-टाइम मिशन सिमुलेशन तक, दोनों देशों की सेनाएं एकसाथ काम करने की क्षमता विकसित कर रही हैं। भारत की सेना अपने अनुशासन, पराक्रम और मानवीय मूल्यों के लिए जानी जाती है। वहीं ऑस्ट्रेलियाई सेना अपने तकनीकी कौशल और खुफिया क्षमता के लिए। दोनों का यह संगम न केवल इनकी संयुक्त युद्ध क्षमता बढ़ाता है, बल्कि यह हिंद-प्रशांत में साझी सुरक्षा संरचना की नींव को भी मजबूत करता है।

रक्षा मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशालय (ADGPI) ने भी इसे स्पष्ट किया है कि यह अभ्यास दोनों सेनाओं के बीच पारस्परिक विश्वास बढ़ाने और संयुक्त अभियानों की क्षमता विकसित करने पर केंद्रित है। यह संदेश केवल प्रशिक्षण के लिए नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीतिक साझेदारी के लिए है।

बदलता भू-राजनीतिक समीकरण और भारत की भूमिका

आज जब चीन हिंद महासागर में अपने नौसैनिक ठिकाने बढ़ा रहा है, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों पर आर्थिक और सामरिक दबाव बना रहा है, तब भारत-ऑस्ट्रेलिया का यह सहयोग उस विस्तारवाद के खिलाफ सामूहिक उत्तर है। हिंद-प्रशांत केवल समुद्री सीमाओं का भूगोल नहीं, बल्कि भविष्य की भू-राजनीति का केंद्रबिंदु बन चुका है। भारत ने क्वाड (QUAD) के माध्यम से अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर पहले ही इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों का एक संतुलन-तंत्र स्थापित किया है।

अब ‘अस्त्रहिंद’ जैसे द्विपक्षीय अभ्यास उस ढांचे को जमीनी स्तर पर मजबूती दे रहे हैं। भारत यह संदेश दे रहा है कि शांति की इच्छा हमारी नीति है, लेकिन रक्षा की तैयारी हमारी प्राथमिकता।

आत्मनिर्भर भारत की रक्षा नीति और अस्त्रहिंद का महत्व

‘अस्त्रहिंद 2025’ सिर्फ एक अभ्यास नहीं, बल्कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ की रक्षा नीति का भी सशक्त प्रदर्शन है। आज भारत रक्षा उत्पादन में विदेशी तकनीक पर निर्भरता घटा रहा है। स्वदेशी टैंक अर्जुन और ध्रुव हेलिकॉप्टर, स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस और आने वाला अमृतकाल का युद्धपोत विक्रांत-II, ये सब भारत के उस आत्मविश्वास के प्रतीक हैं, जिसके दम पर वह किसी भी शक्ति से आँख मिला सकता है।

ऑस्ट्रेलिया के साथ यह अभ्यास भारत के रक्षा उद्योग के लिए भी एक अवसर है। यह दोनों देशों को डिफेंस टेक्नोलॉजी, लॉजिस्टिक्स, साइबर सिक्योरिटी और समुद्री निगरानी में सहयोग का अवसर देता है।

‘साझा दृष्टि’ की ओर क्वाड, AUKUS और भारत

जब ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर AUKUS समझौता किया, तो यह हिंद-प्रशांत में पश्चिमी शक्तियों की रणनीति का संकेत था। लेकिन भारत ने उसी समय अपनी स्वतंत्र नीति के तहत क्वाड और द्विपक्षीय साझेदारियों के जरिए यह साबित किया कि उसकी शक्ति किसी गुट से नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों से परिभाषित होती है। ‘अस्त्रहिंद’ इसी रणनीति का हिस्सा है — यह भारत को किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनाता, बल्कि एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में स्थापित करता है जो समानता के आधार पर साझेदारी करती है।

सुरक्षित और समृद्ध हिंद-प्रशांत के सह-निर्माता

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल की ऑस्ट्रेलिया यात्रा में स्पष्ट कहा था कि भारत और ऑस्ट्रेलिया अब केवल सहयोगी नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत की स्थिरता और समृद्धि के सह-निर्माता हैं। उनका यह वक्तव्य भारत की बदलती रणनीतिक सोच को दर्शाता है। जहां पहले भारत केवल प्रतिक्रियात्मक नीति अपनाता था, अब वह प्रोएक्टिव यानी अग्रसक्रिय भूमिका निभा रहा है। यह परिवर्तन उस “नये भारत” की पहचान है जो विश्व मंच पर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है, अपने मित्रों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है, और किसी भी खतरे का सामना करने को तैयार है।

हिंद महासागर में भारत की निर्णायक भूमिका

भारत का भौगोलिक स्थान उसे स्वाभाविक रूप से हिंद महासागर की केंद्रीय शक्ति बनाता है। यह वही समुद्री क्षेत्र है जिससे होकर दुनिया के 60% से अधिक तेल टैंकर, और 40% अंतरराष्ट्रीय व्यापार गुजरता है। अगर यह क्षेत्र अस्थिर होता है, तो पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है।

इसीलिए, भारत का सैन्य आधुनिकीकरण और ऑस्ट्रेलिया के साथ रक्षा सहयोग, इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए अनिवार्य है। ‘अस्त्रहिंद 2025’ इस सामरिक महत्व को और गहरा कर रहा है—यह भारत की नौसैनिक, थल और वायु क्षमताओं को समन्वित करता है और हिंद महासागर को “भारत का प्राकृतिक प्रभाव क्षेत्र” बनाता है।

युद्ध की नहीं, शांति की तैयारी

यह कहना आवश्यक है कि ‘अस्त्रहिंद’ जैसे अभ्यास युद्ध के लिए नहीं, बल्कि युद्ध को रोकने की तैयारी के लिए हैं। भारत की नीति हमेशा “विश्व को एक परिवार” (वसुधैव कुटुम्बकम्) की रही है। लेकिन जब कोई शक्ति हमारे क्षेत्रीय संतुलन को चुनौती देती है, तब भारत उसी “धर्मयुद्ध” की परंपरा निभाता है जो अर्जुन और गुरु द्रोण की धरती से निकली है। ‘अस्त्रहिंद 2025’ उसी संदेश को आधुनिक युग में पुनः स्थापित कर रहा है कि हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन यदि समय आया, तो हमारी तैयारी अजेय होगी।

अस्त्रहिंद: हिंद-प्रशांत में भारत की पराक्रम गाथा

भारत-ऑस्ट्रेलिया का यह संयुक्त सैन्य अभ्यास आज उस विश्वास का प्रतीक है कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था का जिम्मेदार प्रहरी बन चुका है। यह अभ्यास उस “नये भारत” का परिचायक है जो आत्मनिर्भर है, आत्मविश्वासी है और विश्व मंच पर निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

पर्थ की धरती पर जब भारतीय सैनिकों की वर्दी ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों के साथ कदमताल करती है, तो यह केवल एक सैन्य प्रशिक्षण नहीं, बल्कि दो लोकतंत्रों का साझा संकल्प है कि हम मिलकर हिंद-प्रशांत को स्वतंत्र, खुला और सुरक्षित बनाएंगे।

‘अस्त्रहिंद 2025’ भारत के बढ़ते प्रभाव, उसकी नीतिगत दृढ़ता और सैन्य पराक्रम का प्रतीक है। यह उस भविष्य की घोषणा है, जहां भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि विश्व शांति के लिए भी नेतृत्व करेगा। यह नया भारत है, यह किसी से झुकेगा नहीं और जब उठेगा, तो दुनिया उसकी शक्ति को महसूस करेगी।

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