सादगी की सरकार, शीशे के महल में बंद: दिल्ली से चंडीगढ़ तक केजरीवाल की चमचमाती सादगी की कहानी

याद करें, दिल्ली में केजरीवाल का पहला शीश महल कभी आम आदमी पार्टी की सादगी के वादे पर जोरदार तमाचा बना था। जनता के करोड़ों रुपये से बना वह आलीशान सरकारी निवास, जिसे आम आदमी सरकार का मुख्यालय कहा गया था, जहां न तो आम जनता की पहुंच थी और न ही मीडिया की।

बसादगी की सरकार, शीशे के महल में बंद: दिल्ली से चंडीगढ़ तक केजरीवाल की चमचमाती सादगी की कहानी

अरविंद केजरीवाल की राजनीति अगर सादगी का पर्याय थी, तो आज उसका प्रतीक शीश महल क्यों है?

कभी अरविंद केजरीवाल को देखकर लगता था, यह आदमी राजनीति में आया ही इसलिए है कि सत्ता के अहंकार को तोड़ सके। साधारण कपड़े, खांसी-खांसी सी आवाज़, सरकारी कार छोड़ साइकिल पर चलता हुआ आम आदमी का प्रतीक। लेकिन, वक्त के साथ कहानी का यह आम आदमी न जाने कब राज्यशाही की नयी परिभाषा बन बैठा। अब वही नेता पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के सेक्टर 2 में दो एकड़ के उस बंगले में जा बसे हैं, जो देखने में किसी राजमहल से कम नहीं। यही बंगला आज नया शीश महल कहलाया जा रहा है। याद रहे कि यह उनके शीश महल का ही दूसरा संस्करण है, जो दिल्ली के पहले शीश महल से शुरू होकर अब पंजाब में और भव्य रूप में लौट आया है।

याद करें, दिल्ली में केजरीवाल का पहला शीश महल कभी आम आदमी पार्टी की सादगी के सबसे बड़े वादे पर जोरदार तमाचा बना था। जनता के टैक्स के करोड़ों रुपये से बना वह आलीशान सरकारी निवास, जिसे आम आदमी सरकार का मुख्यालय कहा गया था, दरअसल शीशों से सजा ऐसा महल था, जहां न तो आम जनता की पहुंच थी और न ही मीडिया की। उस इमारत की दीवारें पारदर्शी नहीं थीं, पर उनमें से झांकती रोशनी बताती थी कि आम आदमी की सरकार अब खास आदतों में ढल चुकी है। दिल्ली की गलियों में जब लोग बिजली और पानी के बिल पर बहस कर रहे थे, उसी वक्त सीएम हाउस में संगमरमर की फर्श और शीशे की दीवारों पर सजावट का बजट लाखों से करोड़ों में जा पहुंचा था।

यहां से शुरू हुआ ‘आप’ का ‘मैं’ में बदलना

दिल्ली का वह शीश महल सादगी की सबसे महंगी मिसाल बन गया। उसके बाहर भीड़ जनता दरबार के लिए इकट्ठी होती, लेकिन अंदर से सिर्फ़ शांति। मीडिया के कैमरों के लिए परदा, सवालों के लिए सन्नाटा। वही नेता जो कभी झुग्गियों में जाकर बैठते थे, अब जनता से मिलने के लिए ‘परमिशन स्लॉट’ तय करवाने लगे। ‘आप’ का ‘मैं’ में बदलना यहीं से शुरू हुआ।

समय के साथ वक्त ने भी करवट ली। सत्ता का स्वाद दिल्ली से पंजाब तक फैल चुका था। और अब पंजाब की राजनीति में ‘आप’ की सरकार के सिर पर वही नेता, जिनके लिए सादगी एक राजनीतिक ब्रांड थी। वही अब चंडीगढ़ में 7-स्टार बंगले में रहते हैं। चंडीगढ़ का सेक्टर 2, जहां पंजाब के मुख्यमंत्रियों के लिए सरकारी आवास की परंपरा रही है, अब देख रहा है कि इस बार की साज-सज्जा अलग है। दो एकड़ में फैला वह बंगला, हरियाली से घिरा, भीतर से पूरी तरह यूरोपीय डिजाइन का नमूना। फर्नीचर तक दिल्ली से बुलवाया गया, और खर्च जनता के टैक्स से।

पूर्व ‘आप’ नेता स्वाति मालीवाल ने किया पोस्ट

पूर्व ‘आप’ नेता स्वाति मालीवाल का पोस्ट इस नए शीश महल की चमक पर पर्दा उठाता है। उन्होंने लिखा -“दिल्ली का शीश महल ख़ाली होने के बाद केजरीवाल ने पंजाब में उससे भी शानदार शीश महल तैयार कर लिया है।” ये शब्द तंज़ नहीं, एक चेतावनी की तरह हैं। क्योंकि यह सिर्फ़ बंगले की बात नहीं, यह उस मानसिकता का प्रतिबिंब है जो सत्ता के पास आते ही आम आदमी को जनता से कैसे दूर कर देती है।

मिल रहीं अत्याधुनिक सुविधाएं

कहा जा रहा है कि केजरीवाल को अब पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री आवास में एक नहीं, कई प्रकार की सुविधाएं मिली हैं। हेलिपैड से लेकर स्पा-जैसे बाथरूम तक। हाल ही में वे इसी बंगले से सरकारी हेलीकॉप्टर में अंबाला के लिए रवाना हुए और वहां से पंजाब सरकार का प्राइवेट जेट लेकर गुजरात चले गए। सवाल यह नहीं कि मुख्यमंत्री के प्राइवेट जेट से क्यों गए, सवाल यह है कि वही व्यक्ति जो कल तक लाल बत्ती संस्कृति का विरोध करता था, आज उसी चकाचौंध में खो गया है।

राजनीति में प्रतीक बहुत मायने रखते हैं। शीश महल, बंगला, हेलीकॉप्टर, ये सब केवल संपत्ति नहीं, संदेश हैं। और वह संदेश आज जनता को साफ सुनाई दे रहा है कि सत्ता, चाहे किसी भी रंग में रंगी हो, उसका स्वाद सबको एक जैसा लगता है। फर्क सिर्फ़ इतना होता है कि कुछ नेता अपने महलों को जनता की सुविधा कह देते हैं।

दिल्ली का शीश महल जब उजागर हुआ, तब ‘आप’ सरकार की छवि पर सवाल उठे। रिपोर्ट्स में सामने आया कि सीएम आवास की मरम्मत के नाम पर करीब 45 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे। उसमें सिर्फ़ सजावट पर करोड़ों रुपये गए। इटैलियन संगमरमर, प्रीमियम फर्नीचर, शीशे की दीवारें, इंटीरियर डिजाइनिंग और न जाने क्या-क्या। लेकिन पार्टी की सफाई थी कि मुख्यमंत्री आवास के पुराने ढांचे की मरम्मत थी। अगर यही मरम्मत है, तो देश के करोड़ों गरीबों के लिए झुग्गियों को भी महल कहा जाना चाहिए।

दिल्ली का वह शीश महल जनता के टैक्स से बना था, पर आम आदमी को उसमें प्रवेश नहीं था। जो सरकार घर-घर बिजली और पानी का वादा करती थी, उसने अपने घर की सजावट पर ऐसा खर्च किया कि पूरे मोहल्ले को रोशन किया जा सकता था। यही वह विरोधाभास था जिसने धीरे-धीरे ‘आम आदमी पार्टी’ को उस जगह पहुंचा दिया जहां विकल्प का चेहरा भी सत्ता का दर्पण लगने लगा।

दिल्ली की कहानी अब पंजाब में

अब वही कहानी पंजाब में नए अध्याय के साथ दोहराई जा रही है। फर्क इतना है कि इस बार ‘आप’ की छवि सिर्फ़ दिल्ली की नहीं, राष्ट्रीय मंच पर दांव पर है। पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान हैं, लेकिन असली नीतियों की दिशा और यात्रा वही तय करते हैं जो दिल्ली में सत्ता का केंद्र थे। जब केजरीवाल पंजाब सरकार के जेट से पार्टी के काम के लिए उड़ान भरते हैं, तो यह बताता है कि अब सरकार और संगठन की सीमाएं मिट चुकी हैं। आम आदमी की सरकार अब पार्टी विशेष की सुविधा केंद्र बन गई है।

इस कहानी की विडंबना यह है कि यही नेता कभी लाल बत्ती, सरकारी बंगले और सुरक्षा घेरे का मज़ाक उड़ाया करते थे। वही लोग अब सरकारी संसाधनों के प्रतीक बन गए हैं। उन्होंने खुद कहा था, राजनीति सेवा का माध्यम है। लेकिन अब लगता है राजनीति सुविधा का माध्यम बन चुकी है। दिल्ली से पंजाब की दूरी सिर्फ़ भौगोलिक नहीं, नैतिक भी बढ़ी है।

चंडीगढ़ का नया बंगला, जो लगभग सात सितारा होटल जैसा दिखता है, उसी आम आदमी पार्टी की सादगी की परिभाषा पर प्रश्नचिह्न लगाता है। जिस पार्टी ने मुफ्त बिजली-पानी को जनकल्याण कहा, वही आज मुफ्त वैभव का आनंद ले रही है। दिल्ली में शीश महल की दीवारों पर लिखा गया था कि हम जनता के सेवक हैं। आज चंडीगढ़ की दीवारों पर वही पंक्ति शायद हम जनता से सेवित हैं, जैसी प्रतीत होती है।

यह सब सिर्फ़ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, भारतीय राजनीति की उस प्रवृत्ति की मिसाल है, जहां विकल्प भी धीरे-धीरे विलास में घुल जाता है। कोई पार्टी या नेता जब सादगी का वादा करता है, तो वह जनता की उम्मीदों का प्रतीक बन जाता है। लेकिन जब वही नेता शीशों के महल में बसता है, तो उम्मीदें टूट जाती हैं और भरोसा राजनीति के किसी कोने में दम तोड़ देता है।

पंजाब की डूबती अर्थव्यवस्था में भी विलासिता

आज जब पंजाब की अर्थव्यवस्था कर्ज़ में डूबी है, किसान अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर बैठे हैं, तब मुख्यमंत्री और उनकी सरकार पर सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह वही आम आदमी की सरकार है, जो खुद को अलग बताती थी? क्या सत्ता का तंत्र इतना आकर्षक होता है कि सादगी का आवरण टिक नहीं पाता?

दिल्ली से चंडीगढ़ तक फैले केजरीवाल के इस शीशमहल के किस्से हमें याद दिलाते हैं कि राजनीति में सबसे कठिन चीज़ है सादगी को जीवित रखना। सत्ता का वैभव जितना बड़ा होता है, उतना ही मुश्किल होता है ‘आम आदमी’ बने रहना। लेकिन जब कोई नेता खुद को आम आदमी कहकर शीश महल में बसता है, तो वह केवल विरोधाभास नहीं, लोकतंत्र के भरोसे की परीक्षा है।

कभी झूठ नहीं कहते शीशे के महल

अब यह कहानी सिर्फ़ बंगले, शीशे या खर्च की नहीं रही। यह उस सोच की कहानी है, जो धीरे-धीरे बदलती है। जो शुरुआत में कहती है कि हम जनता के लिए हैं, और कुछ वर्षों में कहने लगती है जनता हमारे लिए है। शीशे के महल कभी झूठ नहीं बोलते, वे सिर्फ़ वही दिखाते हैं जो सामने होता है। और आज केजरीवाल का शीश महल यह दिखा रहा है कि सत्ता की चमक में सादगी की रोशनी कितनी जल्दी फीकी पड़ जाती है।

लोकतंत्र में शीशे की पारदर्शिता जनता के भरोसे से तय होती है, न कि इंटीरियर डिजाइन से। पर जब शीशे की दीवारों के पीछे सादगी सजावट बन जाए, तो जनता सवाल पूछती है कि क्या यह वही आदमी है जो कभी हमारे साथ सड़कों पर बैठा था? अरविंद केजरीवाल की राजनीति अगर सादगी का पर्याय थी, तो आज उसका प्रतीक शीश महल क्यों है? शायद इसलिए कि इस देश में सत्ता के शीशे कभी पारदर्शी नहीं होते। वे सिर्फ़ बाहर की धूप दिखाते हैं, अंदर की अंधेरी परतें नहीं। यही सच्चाई है कि आम आदमी का शीश महल अब सिर्फ़ एक रूपक नहीं, राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना बन चुका है।

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