भारतीय सेना में भर्ती की प्रकृति बदल रही है और शायद यह बदलाव केवल नीतिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा दर्शन का संकेत है। जिस अग्निपथ योजना को 2022 में पेश किया गया था, वह अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। अब संकेत मिल रहे हैं कि 25% की जगह 75% अग्निवीरों को स्थायी सेवा में शामिल करने का प्रस्ताव सेना कमांडरों के सम्मेलन में रखा गया है। यह निर्णय केवल संख्यात्मक नहीं, यह भारत के सैन्य मनोबल, सामाजिक विश्वास और रणनीतिक स्थिरता का प्रश्न भी है।
चार साल की परीक्षा का निर्णायक वर्ष
अग्निवीरों का पहला बैच अगले साल अपनी चार वर्षीय सेवा अवधि पूरी करने जा रहा है। यह वही क्षण है, जब नीति को केवल कागज़ों पर नहीं, जमीनी सच्चाई की कसौटी पर परखा जाएगा। पिछले दो वर्षों में अग्निवीरों ने प्रशिक्षण, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति की जो मिसाल दी है, उसने सेना नेतृत्व को भी प्रभावित किया है। अब जबकि उनकी निष्ठा और क्षमता पर सवाल नहीं रहे, तो स्वाभाविक है कि सेना उन्हें लंबे समय तक बनाए रखना चाहती है।
योजना के मूल में है युवा शक्ति को अवसर देना
अग्निपथ योजना का मूल उद्देश्य था युवाओं को सेना में अल्पकालिक सेवा का अवसर देना, ताकि राष्ट्र के लिए सेवा का अनुभव बढ़े और युवाओं में अनुशासन, राष्ट्रभाव और आत्मनिर्भरता का विकास हो। लेकिन, व्यावहारिक धरातल पर यह भी सामने आया कि चार साल बाद प्रशिक्षित युवाओं को बाहर भेज देना न केवल भावनात्मक चुनौती है, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी हानि है। एक सैनिक को युद्ध की वास्तविक समझ, नेतृत्व का कौशल और टीम भावना विकसित करने में तीन साल तक का समय लगता है। ऐसे में जब चौथे वर्ष वह अपने चरम पर पहुंचता है, उसी समय उसका अनुबंध समाप्त हो जाना व्यावहारिक नहीं था।
सेना का मनोविज्ञान और राष्ट्रीय आत्मा
सेना केवल एक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है। एक सैनिक केवल वेतन या नौकरी से प्रेरित नहीं होता, वह ‘कर्तव्य’ से प्रेरित होता है। जब किसी अग्निवीर को यह आश्वासन मिलता है कि उसके चार वर्षों की मेहनत और समर्पण के बाद उसे स्थायित्व मिलेगा, तो उसकी निष्ठा और प्रेरणा कई गुना बढ़ जाती है। यह सिर्फ नौकरी की बात नहीं, यह उस मनोबल की बात है, जो सीमा पर खड़े हर जवान के दिल में भारत माता के लिए धड़कता है।
सेना के वरिष्ठ नेतृत्व के लिए यह निर्णय आसान नहीं है। रक्षा बजट, पेंशन बोझ और युवाओं की तेजी से बढ़ती संख्या, इन सबके बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन, जब राष्ट्र की सुरक्षा और सैनिकों का मनोबल साथ खड़ा हो, तो आर्थिक गणना पीछे हट जाती है। जैसलमेर में हो रहा सेना कमांडरों का सम्मेलन केवल प्रशासनिक बैठक नहीं, बल्कि भारत की नई सैन्य नीति का खाका तैयार करने वाला मंच है।
पूर्व सैनिकों की भूमिका और अनुभव का दोबारा उपयोग
सम्मेलन में पूर्व सैनिकों के अनुभव के उपयोग पर भी चर्चा होगी। भारत के पास लाखों प्रशिक्षित पूर्व सैनिक हैं, जिनकी विशेषज्ञता राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन में अमूल्य है। अब यह सोच विकसित हो रही है कि उन्हें केवल प्रतीकात्मक भूमिकाओं तक सीमित न रखा जाए, बल्कि सेवा से समाज तक के सेतु के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
तीनों सेनाओं के बीच तालमेल, मिशन सुदर्शन चक्र का कार्यान्वयन और ऑपरेशन सिंदूर के बाद नई सुरक्षा चुनौतियों की समीक्षा, ये सारे एजेंडे भारत की रक्षा रणनीति के अगले चरण को परिभाषित करेंगे। उस रणनीति के केंद्र में है मानव संसाधन की गुणवत्ता। यदि एक प्रशिक्षित अग्निवीर को सेना में बनाए रखा जाए, तो यह केवल एक भर्ती सुधार नहीं, बल्कि राष्ट्र रक्षा में निवेश होगा।
युवा भारत का आत्मविश्वास और मोदी युग की दृष्टि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपनी रक्षा नीति को जन-भागीदारी से राष्ट्र-निर्माण की दिशा में मोड़ा है। सेना अब केवल सरकारी संस्था नहीं, बल्कि समाज का विस्तार बन रही है। अग्निवीर योजना उसी दृष्टि की उपज थी और अब जब यह योजना 75% स्थायी भर्ती की दिशा में बढ़ रही है, तो यह दर्शाता है कि सरकार जनता की भावनाओं, सैनिकों के मनोबल और सुरक्षा की यथार्थ जरूरतों के बीच संतुलन साधने में सफल हो रही है।
‘अग्निवीर’ से ‘भारतवीर’ तक की यात्रा
चार साल पहले जो युवा अग्निवीर कहलाया था, अब वही भारतवीर बनकर उभर रहा है, जिसके भीतर अनुशासन, साहस और राष्ट्रभक्ति की लौ प्रज्वलित है। यदि 75% अग्निवीरों को स्थायी सेवा में रखा जाता है, तो यह केवल एक भर्ती सुधार नहीं, बल्कि नई पीढ़ी का राष्ट्र के प्रति पुनर्जन्म होगा। यह निर्णय भारत के सुरक्षा तंत्र को स्थिरता देगा, युवाओं को भविष्य का भरोसा देगा और यह संदेश देगा कि भारत अपने जवानों को केवल चार साल के लिए नहीं, बल्कि जीवनभर के लिए मान देता है।