आज 4 अक्टूबर 2025 को गुरु तेगबहादुर जी की 350वीं शहादत वर्षगांठ पर जयपुर में एक खास कार्यक्रम किया गया। यह होटल ARCO Place, सिंधी कैंप बस स्टैंड के पास “हक-ए-अमन” नाम का सेमिनार था। इस कार्यक्रम का मकसद गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान को याद करना था। उन्होंने धर्म और इंसानों के हक की रक्षा के लिए अपनी जान दी थी। सेमिनार में शांति और भाईचारे की बात की गई। यह सेमिनार मुस्लिम और सिख संगठन ने मिलकर कराया था। इसमें IMCR, AIPM, DMAM और KSGSS मुख्य आयोजक थे और राजस्थान गुरुद्वारा प्रबंधक समिति उनका साथ दे रही थी। इसमें अलग-अलग धर्मों, राजनीति और कानून से जुड़े लोग शामिल हुए और यह बताया गया कि गुरु तेगबहादुर जी की शहादत हमें हिम्मत, इंसाफ और एकता का रास्ता दिखाती है।
कौन थे गुरु तेगबहादुर जी?
गुरु तेगबहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। उनका जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ था। गुरु तेगबहादुर जी के पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह जी था और उनकी मां का नाम बीबी ननकी था। बचपन से ही गुरु तेगबहादुर अपने धर्म से जुड़े हुए, बहादुर और सभी काम को सोच और समझ कर करने वाले थे। इनका असली नाम त्यागमल था, लेकिन तलवार चलाने और त्याग की वजह से उन्हें “तेगबहादुर” कहा जाने लगा। गुरु तेगबहादुर ने सिख धर्म की परंपरा को आगे हमेशा आगे बढ़ाया और लोगों को भक्ति, सच्चाई, हिम्मत और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की सीख दी।
गुरु तेगबहादुर ने नही बदला धर्म
17वीं सदी में जब मुगल बादशाह औरंगज़ेब शासन कर रहे थे तब उन्होंने अपने शासन में इस्लाम के कानून लागू किए और गैर-मुसलमानों पर टैक्स लगाना शुरू किया। उस समय कश्मीर के पंडितों को धर्म बदलने के लिए काफी दबाव बनाया जा रहा था। तब सभी पण्डित डर की वजह से गुरु तेगबहादुर जी के पास मदद मांगने के लिए गए। गुरु जी ने उनका साथ दिया और कहा कि अगर वे खुद धर्म बदल लेंगे, तो बाकी लोग भी बदल देंगे। यह औरंगज़ेब के लिए चुनौती थी, और इस चुनौती को स्वीकार कर औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर से मिलने का गुरु तेग बहादुर से मिलने का फैसला किया
गुरु तेगबहादुर जी और उनके तीन साथीयों को थाने के हाकिम ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें चांदनी चौक थाने में ले जाकर कैद कर दिया। चार महीने तक उन्हें बहुत तकलीफ दी गई और उनके साथ मारपीट की गई। फिर उन्हें मुगल बादशाह औरंगज़ेब के सामने लाया गया। औरंगज़ेब ने पूछा कि आप हिंदुओं के लिए क्यों अपनी जान दे रहे हैं। गुरु जी ने जवाब देते हिए कहा कि हिंदू कमजोर हो गए हैं और उन्होंने हमारी मदद माँगी है, इसलिए उनकी रक्षा के लिए वे अपनी जान देने को तैयार हैं।
जेल में गुरु जी को तीन विकल्प दिए गए। पहला, कोई चमत्कार दिखाएँ। गुरु जी ने कहा कि यह ईश्वर की शक्ति का अपमान होगा और उन्होंने इसे मना कर दिया। दूसरा, इस्लाम स्वीकार करें। तीसरा, मृत्युदंड स्वीकार करें। गुरु जी ने तीसरा विकल्प चुना और बलिदान देने का फैसला किया।
फिर गुरु जी और उनके तीन साथी मति दास, सती दास और दयाल दास को चांदनी चौक लाया गया। वहां मति दास को आरी से काटा गया, सती दास को गरम तेल में डाला गया और दयाल दास को आग में जला दिया गया। गुरु तेगबहादुर जी सब कुछ देखते रहे और लगातार “वाहे गुरु” कहते रहे। यह सब इसलिए किया गया ताकि गुरु जी डर जाएँ और धर्म बदल लें। लेकिन गुरु तेगबहादुर जी अपने फैसले पर अडिग रहे और धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया।
कैसे हुई गुरु तेगबहादुर जी की मृत्यु?
जब गुरु तेगबहादुर जी ने औरंगज़ेब की बात नही मानी तब उन्हे सजा देने वाली जगह पर ले जाया गया। काजी अब्दुल बोरा ने उन्हें फतवा पढ़कर सुनाया और जल्लाद जलालुद्दीन तलवार लेकर खड़ा हो गया। उनके चारों तरफ बड़ी भीड़ जमा हो गई।
एक ही झटके में जल्लाद ने गुरु का सिर धड़ से अलग कर दिया। वहां अचानक घोर सन्नाटा छा गया। गुरु के शिष्य उनके कटा हुआ सिर लेकर आनंदपुर साहिब गए और उनके नौ साल के पुत्र गोविंद सिंह जी को सौंप दिया। वहां गुरु का सिर सम्मानपूर्वक दफनाया गया और वहां भी सीसगंज गुरुद्वारा बनाया गया।