संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में मंगलवार को भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के पाखंड का खुलासा किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने पाकिस्तान के झूठे आरोपों का ऐसा जवाब दिया कि पूरी दुनिया ने सुना-“जो देश अपने ही लोगों पर बम गिराता है, चार लाख महिलाओं के साथ बलात्कार करता है, वह दूसरों को मानवाधिकार का पाठ नहीं पढ़ा सकता।” उनका यह बयान सिर्फ पाकिस्तान के झूठे प्रचार का खंडन नहीं था, बल्कि उस देश के नैतिक और ऐतिहासिक पतन का दस्तावेज था, जिसने खुद अपने ही इतिहास को लहूलुहान किया है।
पाकिस्तान का कश्मीर पर रटा-रटाया झूठ अब दुनिया में अपनी विश्वसनीयता खो चुका है। हकीकत यह है कि पाकिस्तान ने आज तक अपने किसी हिस्से में शांति और स्थायित्व देखा ही नहीं। उसकी राजनीति फौज की बंदूक की नोक पर चलती है। उसके लोकतंत्र की परिभाषा सैन्य ठिकानों में लिखी जाती है, और उसका समाज चरमपंथ और घृणा के ज़हर से सना हुआ है। ऐसे में जब पाकिस्तान भारत को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश करता है, तो यह दुनिया के सबसे बड़े झूठ और ढोंगों में से एक बन जाता है।
हरीश का बयान संयुक्त राष्ट्र के उस मंच से आया, जहां पाकिस्तान हमेशा से झूठ और आंसुओं का व्यापार करता रहा है। लेकिन, इस बार भारत ने इतिहास की स्याही से उसे आईना दिखाया। 1971 का वह भयानक पन्ना, जब पाकिस्तान ने अपने ही पूर्वी हिस्से (आज का बांग्लादेश) पर “ऑपरेशन सर्चलाइट” चलाया। वह रात, 25 मार्च 1971 की, जब ढाका की गलियों में सिर्फ गोलियों की आवाज़ें थीं, और बंगाली माताओं की चीखें आसमान फाड़ रही थीं।
पाकिस्तान का 1971 का नरसंहार: अपने ही लोगों से जंग
पाकिस्तानी सेना ने “ऑपरेशन सर्चलाइट” के नाम पर जो कुछ किया, वह मानवता के इतिहास का सबसे काला अध्याय है। पश्चिमी पाकिस्तान की सत्ता में बैठे जनरल याह्या खान और उनके सहयोगियों ने तय किया कि जो बंगाली आज़ादी की बात करेगा, उसे मिटा दिया जाएगा। उस रात पाकिस्तान की सेना ने ढाका विश्वविद्यालय पर हमला किया, छात्रों का कत्ल किया, प्रोफेसरों को गोली मारी और पत्रकारों के दफ्तरों में आग लगा दी। ढाका की गलियों से लेकर चिटगांव और खुलना तक, हर जगह मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार, इस अभियान में करीब 30 लाख लोग मारे गए और चार लाख से अधिक महिलाओं का बलात्कार हुआ। यह वही देश है, जो आज संयुक्त राष्ट्र के मंच पर कश्मीरी महिलाओं के मानवाधिकार की बात करता है। विडंबना देखिए, जिस देश की सेना ने अपने ही नागरिकों की अस्मिता को तार-तार किया, वह दूसरों को मानवता का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
भारत के राजदूत ने जब इस सच को दोहराया, तो संयुक्त राष्ट्र में बैठे प्रतिनिधियों को याद आ गया कि पाकिस्तान का इतिहास खून से सना है। यह वही देश है, जिसने अपने इस्लामी बंधु बांग्लादेशियों को सिर्फ इसलिए मारा क्योंकि वे स्वतंत्रता और सम्मान की बात करते थे। 1971 का यह नरसंहार पाकिस्तान के चरित्र की पहचान है। एक ऐसा देश जो सत्ता बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। पाकिस्तान में राष्ट्र का मतलब सिर्फ सेना है, धर्म का मतलब घृणा है और राजनीति का मतलब झूठ का महोत्सव।
आज का पाकिस्तान: वही आतंकी सोच, वही खूनी रवैया
पाकिस्तान की फौज की मानसिकता में आज भी कोई बदलाव नहीं आया है। 1971 में उसने बंगाली नागरिकों पर बम बरसाए थे और आज वही काम खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में कर रही है। 22 सितंबर 2025 को तिराह घाटी में पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी चेतावनी के हवाई बमबारी कर दी। उसके निशाने पर आतंकवादी नहीं, आम नागरिक थे। 30 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। ध्यान रहे कि यह वही देश है, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मानवाधिकारों का रोना रोता है।
बलूचिस्तान में तो दशकों से पाकिस्तानी सेना ने दमन का साम्राज्य खड़ा कर रखा है। वहां रोज़ अपहरण होते हैं, लोग बिना ट्रायल के ही मार दिए जाते हैं और गायब व्यक्ति शब्द वहां का हिस्सा बन चुका है। दुनिया अब यह समझ चुकी है कि पाकिस्तान आतंकवाद को न सिर्फ संरक्षण देता है, बल्कि अपने ही नागरिकों के खिलाफ उसका इस्तेमाल भी करता है।
पाकिस्तान के नैतिक दिवालियापन की कहानी
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में स्पष्ट कर दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा। यह सिर्फ एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि सभ्यता की घोषणा है। क्योंकि कश्मीर वह भूमि है, जहां शंकराचार्य के पदचिन्ह हैं, जहां ललितादित्य और अबुल फज़ल के इतिहास में भारत की सांस्कृतिक धारा प्रवाहित होती है। पाकिस्तान इस भूमि को इस्लामी एजेंडे के तहत हथियाना चाहता था, लेकिन अब उसकी कहानी का अंत विश्व समुदाय देख रहा है।
पाकिस्तान का हर मंच पर झूठ बोलना अब उसकी आदत बन चुका है। हर बार जब वह भारत के खिलाफ बोलता है तो दुनिया को याद आ जाता है कि उसके अपने घर में क्या चल रहा है। वहां की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है, विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है और उसकी साख IMF के दस्तावेज़ों तक में गिर चुकी है। लेकिन इन सबके बीच पाकिस्तान का राष्ट्रीय मिशन आज भी वही है, भारत का विरोध करना।
वैसे देखा जाए तो पाकिस्तान की स्थापना ही विभाजन और नफरत के बीजों पर हुई थी। मोहम्मद अली जिन्ना ने दो राष्ट्र सिद्धांत के नाम पर जो ज़हर बोया, वह आज भी पाकिस्तान की नस-नस में बहता है। वहां हिंदुओं का अस्तित्व लगभग मिट चुका है। ईसाई और अहमदी समुदाय के लोग रोज़ निशाने पर हैं। जब कोई देश अपने अल्पसंख्यकों को इंसान ही न समझे, तो वह दूसरे देशों को न्याय सिखाने की नैतिक ताकत कहां से लाएगा?
भारत के प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने संयुक्त राष्ट्र में यह बात साफ़ कही कि पाकिस्तान दुनिया को गुमराह करता है। बढ़ा-चढ़ाकर झूठ बोलता है। लेकिन, अब दुनिया उस पर विश्वास नहीं करती। आज बांग्लादेश से लेकर अफगानिस्तान तक, हर पड़ोसी देश पाकिस्तान की मित्रता से सावधान रहता है।
पाकिस्तान की विदेश नीति बन चुका है आतंकवाद
1971 में पाकिस्तान ने बंगाली मुसलमानों का नरसंहार किया। 1980 के दशक में उसने भारत में आतंकवाद को हवा दी। 1999 में कारगिल की पहाड़ियों पर कायरतापूर्ण हमला किया और आज भी वह सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। आतंकवाद पाकिस्तान की विदेश नीति बन चुका है। वहां आतंकवादी सिर्फ हथियार नहीं उठाते, बल्कि सरकार की छत्रछाया में पलते हैं।
टीटीपी, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, ये सभी संगठन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बच्चे हैं। लेकिन अब ये बच्चे अपने ही मालिक को काट रहे हैं। तिराह घाटी में जो हुआ, वह उसी पागलपन का परिणाम है। पाकिस्तान की सेना अब अपने ही देश के नागरिकों पर बम गिरा रही है, क्योंकि उसने वर्षों तक जिस जहर को पाला, वही अब उसे निगलने को तैयार है।
भारत का स्वर: न झुकेंगे, न चुप रहेंगे
भारत अब वह देश नहीं रहा जो हर मंच पर शांति के नाम पर चुप रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने स्पष्ट नीति अपनाई है, आतंकवाद और संवाद एक साथ नहीं चल सकते। भारतीय सेना अब जवाब देती है और कूटनीति अब स्पष्ट है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्वर अब आत्मविश्वास से भरा है। पर्वतनेनी हरीश और केएस मोहम्मद हुसैन जैसे राजनयिकों ने दिखा दिया कि नया भारत न केवल इतिहास का गवाह है, बल्कि नैतिकता का भी प्रहरी है। जब पाकिस्तान ने कश्मीरी महिलाओं पर अत्याचार का झूठ बोला, तो भारत ने 1971 का दस्तावेज़ सामने रख दिया। चार लाख बंगाली महिलाओं के साथ बलात्कार करने वाले, तुमसे तो मानवता की उम्मीद करना ही पाप है।
पाकिस्तानी फौज और नेताओं का पाखंड
आज पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ धमकियां देते हैं कि भारत अपने मलबे में दब जाएगा। लेकिन सच यह है कि पाकिस्तान खुद अपने ही मलबे में दफन हो चुका है। उसकी अर्थव्यवस्था ढह चुकी है, उसका समाज फूट से भरा है और उसकी राजनीति फौज की कठपुतली बन कर रह गई है।
भारत के रक्षा मंत्री या सेना प्रमुख के बयान जब आतंकवाद के खिलाफ आते हैं, तो पाकिस्तान उसे जंग की भाषा कहता है। लेकिन वही पाकिस्तान रोज़ अपने नागरिक इलाकों में गोलाबारी करता है, अपने ही प्रांतों को जलाता है। जब भारतीय सेना आतंकियों के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक करती है, तो पाकिस्तान सबूत मांगता है। लेकिन जब वह अपने ही लोगों पर बम गिराता है, तो कोई सबूत नहीं देता। यही है पाकिस्तान की मानसिकता, कायरता और पाखंड की पराकाष्ठा।
भारत की नीति: सच्चाई के साथ दृढ़ता
भारत ने बार-बार कहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। यह किसी विवाद का विषय नहीं, बल्कि संविधान और सभ्यता की एकता का प्रतीक है। पाकिस्तान चाहे जितने झूठ फैलाए, लेकिन अब विश्व समुदाय समझ चुका है कि उसका एजेंडा मानवाधिकार नहीं, बल्कि आतंकवाद का अंतरराष्ट्रीयकरण है।
संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और यहां तक कि अमेरिका में भी पाकिस्तान की बातों को अब गंभीरता से नहीं लिया जाता। हर मंच पर उसकी साख गिर चुकी है। यह भारत की दृढ़ कूटनीति का परिणाम है।
पाकिस्तान की सियासत अब अपने अंत की ओर
पाकिस्तान आज अपने ही अतीत के बोझ से दबा हुआ है। उसके झूठ का साम्राज्य अब टूट रहा है। भारत ने जिस संयम, तर्क और सत्य के साथ उसे संयुक्त राष्ट्र में जवाब दिया, वह नए भारत का परिचय है। यह भारत अब भावनाओं से नहीं, तथ्यों से बात करता है। यह भारत अब विश्वगुरु बनने के रास्ते पर है, क्योंकि वह शांति चाहता है, लेकिन दुर्बलों की तरह नहीं, वह संवाद चाहता है, लेकिन आतंकवादियों से नहीं।
पाकिस्तान अब दुनिया में अकेला पड़ता जा रहा है। उसका हर झूठ इतिहास के आइने में खुद का चेहरा देखता है। एक ऐसा चेहरा जो 1971 की राख में लथपथ है, तिराह घाटी की बमबारी से सना है और कश्मीर के नाम पर किए जा रहे झूठे प्रचार में डूबा है।
भारत ने यह साफ़ कर दिया है कि जो देश अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकता, जो अपने ही लोगों पर बम बरसाता है, जो अपनी माताओं-बहनों की अस्मिता को नष्ट करता है, उसे दुनिया के मंच पर मानवाधिकार की बात करने का कोई अधिकार नहीं। कश्मीर भारत का था, है और रहेगा। पाकिस्तान चाहे जितना भी झूठ बोले, अब न तो इतिहास बदल सकता है और न ही भूगोल।