कर्नाटक में हाल ही में उठाया गया कदम आरएसएस की गतिविधियों की समीक्षा और संभावित रोक की तैयारी, ये केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं है। यह कदम उस वैचारिक युद्ध का संकेत है जो कांग्रेस लंबे समय से भारतीय राजनीति में लड़ रही है। मुख्यमंत्री ने गृह विभाग को निर्देश दिया है कि संघ की शाखाओं, शैक्षणिक एवं सामाजिक संस्थानों और उनके नेटवर्क की गतिविधियों की समीक्षा की जाए।
इस आदेश का महत्व और गंभीरता तभी समझी जा सकती है, जब यह देखा जाए कि एक वरिष्ठ मंत्री ने खुलकर संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी रखी है। इस तरह का कदम यह दर्शाता है कि कांग्रेस सरकार सत्ता की राजनीति और वैचारिक प्रतिशोध को मिलाकर RSS के अस्तित्व को चुनौती देने का प्रयास कर रही है।
RSS: देशभक्ति और राष्ट्र निर्माण का प्रतीक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत के इतिहास में एक ऐसा संगठन रहा है, जिसने हमेशा राष्ट्रभक्ति और सामाजिक सेवा को प्राथमिकता दी। कर्नाटक में संघ की शाखाएं दशकों से चल रही हैं, जहां शिक्षा, सेवा और अनुशासन की शिक्षा दी जाती है। संघ की शाखाओं में राजनीति का प्रचार नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार, राष्ट्र सेवा और सांस्कृतिक चेतना का प्रशिक्षण दिया जाता है। संघ के स्वयंसेवक हर युग में देश के संकट में सामने आए हैं, चाहे वह कश्मीर में 1947 की घटनाएं हों, 1971 का युद्ध हो या हालिया प्राकृतिक आपदाएं।
कर्नाटक में भी संघ के स्वयंसेवक स्कूलों, सेवा भारती के चिकित्सा शिविरों, महिला सशक्तिकरण और गरीबों के लिए राहत कार्यों में सक्रिय रहे हैं। इसलिए आरएसएस की गतिविधियों पर रोक लगाने का विचार राजनीतिक दृष्टि से न केवल अनुचित, बल्कि राष्ट्रभक्ति की भावना पर संदिग्ध हमला माना जा सकता है।
कांग्रेस का दोहरा मापदंड
कांग्रेस पार्टी अक्सर “सेक्युलरिज़्म” की आड़ में कार्य करती है। लेकिन जब किसी अल्पसंख्यक संगठन की गतिविधियों पर कट्टरता की आशंका होती है, तब वह चुप रहती है और जब कोई संगठन “भारत माता की जय” का नारा लगाता है या सामाजिक सेवा करता है, तो उसे रोकने की कोशिश करती है।
यहां स्पष्ट अंतर दिखाई देता है। कांग्रेस की नीति हमेशा एकतरफा और मतभेदपूर्ण रही है। RSS पर रोक लगाने का प्रयास यह संदेश देता है कि संगठन का उद्देश्य जनता को जोड़ना है, उसे बांटना नहीं। इतिहास में भी कांग्रेस ने कई बार संघ को निशाना बनाया है। 1975 का आपातकाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उस समय भी संघ के स्वयंसेवकों पर प्रतिबंध लगा, लेकिन देश ने संघ की सेवाओं और उसकी सामाजिक भूमिका को हमेशा महत्व दिया।
कर्नाटक का राजनीतिक परिदृश्य
कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता पर कब्ज़ा जातीय और स्थानीय असंतोष के कारण हुआ। हालांकि अब जब सरकार अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने में संघर्ष कर रही है, तब वह RSS को निशाना बना रही है।
दरअसल, कर्नाटक में भाजपा और संघ का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। संघ की शाखाओं और स्वयंसेवकों ने न केवल समाज को जागरूक किया है, बल्कि युवाओं को राष्ट्रभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ भी पढ़ाया है। इसलिए कांग्रेस का यह कदम केवल संघ को रोकने की कोशिश नहीं है, बल्कि भाजपा की राजनीतिक जड़ों पर हमला है। लेकिन यह भूल है कि भाजपा राजनीतिक संगठन है, जबकि संघ एक आंदोलन और राष्ट्र निर्माण का साधन है।
संघ की सेवा और योगदान
RSS की शाखाएं सिर्फ़ राजनीतिक संगठन नहीं हैं, बल्कि राष्ट्र सेवा और समाज सुधार का माध्यम हैं।
शिक्षा और छात्रावास: संघ ने कई स्कूल और छात्रावास स्थापित किए हैं, जहां गरीब और पिछड़े बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है।
स्वास्थ्य और चिकित्सा शिविर: संघ के स्वयंसेवक ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा शिविर लगाते हैं, जिससे हजारों लोग लाभान्वित होते हैं।
आपदा राहत: बाढ़, भूकंप या महामारी के समय संघ के स्वयंसेवक राहत सामग्री और सहायता पहुँचाते हैं।
महिला और युवा सशक्तिकरण: संघ का कार्य केवल पुरूषों तक सीमित नहीं, बल्कि महिलाओं और युवाओं को नेतृत्व और सामाजिक जागरूकता में प्रशिक्षित करता है।
कर्नाटक में भी संघ ने इन क्षेत्रों में वर्षों से योगदान दिया है। इस पर रोक लगाने का प्रयास न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि जनता की भावनाओं के खिलाफ भी है।
वैचारिक संघर्ष: कांग्रेस बनाम RSS
RSS पर रोक लगाने की मांग का अर्थ केवल संगठन को निशाना बनाना नहीं है। यह वैचारिक संघर्ष है। RSS का उद्देश्य भारत की संस्कृति, आत्मा और एकता को मजबूत करना है। कांग्रेस का उद्देश्य सत्ता में बने रहना और सांस्कृतिक आंदोलनों को सीमित करना प्रतीत होता है। इस वैचारिक लड़ाई में कांग्रेस यह भूल रही है कि भारत की जनता राष्ट्रवाद और सेवा भाव के पक्ष में है। संघ की शाखाओं को रोकना उस भावना पर हमला है, जो लाखों भारतीयों को जोड़ती है।
संघ के खिलाफ ऐतिहासिक प्रयास
संघ पर प्रतिबंध लगाने का इतिहास भी गवाह है कि यह हमेशा असफल रहा। 1948 में गांधी हत्याकांड के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा, लेकिन उसने फिर भी सामाजिक और राष्ट्र सेवा जारी रखी। 1975 में इंदिरा गांधी ने संघ को राजनीतिक और वैचारिक रूप से दबाने की कोशिश की, लेकिन संघ के स्वयंसेवक लोकतंत्र और राष्ट्र की सेवा में निरंतर सक्रिय रहे। इस इतिहास से स्पष्ट है कि संघ के विचार और सेवा भावना पर कोई भी प्रतिबंध स्थायी प्रभाव नहीं डाल सकता।
कर्नाटक की वर्तमान स्थिति और संघ की भूमिका
आज RSS की शाखाएं पूरे कर्नाटक में फैली हैं। वे शिक्षा, सेवा, स्वास्थ्य, और सांस्कृतिक जागरूकता के माध्यम से राज्य के युवाओं और समाज को जोड़ रही हैं। कांग्रेस सरकार द्वारा उनकी गतिविधियों की समीक्षा और रोक लगाने की कोशिश यह दिखाती है कि वर्तमान सत्ता के लिए वैचारिक विरोध अब बड़ा खतरा बन गया है। लेकिन यह खतरा केवल सत्ता के लिए है, जनता के लिए नहीं। क्योंकि संघ का उद्देश्य सत्ता नहीं, बल्कि भारत की एकता और जनता की जागरूकता है।
राष्ट्र पर हमला या राजनीतिक चाल?
कर्नाटक में RSS पर रोक लगाने की तैयारी केवल राजनीतिक चाल नहीं, बल्कि वैचारिक आक्रमण है। संघ की शाखाओं को रोकना यह संदेश देता है कि राष्ट्रभक्ति और सेवा को अपराध माना जा सकता है। लेकिन इतिहास और समाज यह सिखाते हैं कि सच्चा राष्ट्रवाद दबाया नहीं जा सकता।संघ के स्वयंसेवक हर युग में राष्ट्र के लिए खड़े रहे हैं, चाहे सत्ता किसी की भी रही हो।
कांग्रेस का यह कदम उनकी वैचारिक हताशा और सत्ता की चिंता को दर्शाता है। परंतु यह कांग्रेस की भूल है, जनता ने संघ को हमेशा भरोसेमंद और सेवा-केंद्रित माना है। यही वह शक्ति है जो कर्नाटक में भी कांग्रेस की चाल को बेअसर कर देगी। कर्नाटक में RSS पर रोक केवल एक अस्थायी राजनीतिक कदम हो सकता है, लेकिन यह संघ की जड़ों और राष्ट्रभक्ति की भावना को कभी कमजोर नहीं कर सकता।