अखंड भारत की राह: पीओके की वापसी, पाकिस्तान की बर्बादी और राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण

भारत ने भी अब शब्दों से नहीं, संकल्पों से जवाब देना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही साफ कर चुके हैं कि पाकिस्तान से अब कोई बातचीत नहीं होगी, अगर होगी भी तो सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर।

अखंड भारत की राह: पीओके की वापसी, पाकिस्तान की बर्बादी और राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण

पाकिस्तान के अंदर जो हो रहा है, वह 1971 की याद दिलाता है।

नई दिल्ली से जब अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने पाकिस्तान को चेतावनी दी, तो उस चेतावनी की गूंज केवल काबुल या इस्लामाबाद तक सीमित नहीं रही, वह सीधे कश्मीर की पहाड़ियों से टकराकर वापस पाकिस्तान की सत्ता की दीवारों को हिला गई। तालिबान, जिसे पाकिस्तान कभी अपनी जेब में रखता था, आज उसी पाकिस्तान को आईना दिखा रहा है। दिल्ली की धरती से उठी यह आवाज़ अब पूरे उपमहाद्वीप में एक संकेत बन चुकी है, अबकी बार पीओके की आज़ादी का सूर्योदय होने वाला है।

पाकिस्तान की किस्मत का लिखा अब मिट चुका है। जिस मुल्क ने सत्तर साल तक आतंक को पालकर अपने ही पड़ोसियों की तबाही चाही, आज वही मुल्क खुद अपने भीतर ही सड़ रहा है। कभी भारत के खिलाफ आतंकी लॉन्चपैड बनाने वाला पाकिस्तान अब खुद आतंकवाद की फसल से जल रहा है। अफगानिस्तान ने दिल्ली से जो कहा, वह पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक झटका नहीं, बल्कि मानसिक विस्फोट था। क्योंकि पहली बार उसके अपने ही बनाए “इस्लामी मोर्चे” से भारत के पक्ष में आवाज़ उठी है।

भारत ने भी अब शब्दों से नहीं, संकल्पों से जवाब देना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही साफ कर चुके हैं कि पाकिस्तान से अब कोई बातचीत नहीं होगी, अगर होगी भी तो सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगान विदेश मंत्री के साथ बैठक में यह कहकर सब कुछ स्पष्ट कर दिया कि भारत और अफगानिस्तान की सीमा वाखान कॉरिडोर के जरिए जुड़ती है, जो अभी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। यह कोई सामान्य भूगोल की चर्चा नहीं थी, यह एक संदेश था, अब भारत अपनी हर इंच जमीन की पहचान और अधिकार दोनों वापस लेने को तैयार है।

क्या कहा था मोहन भागवत ने

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के शब्दों में कहें तो “भारत एक घर है, और इस घर का एक कमरा किसी ने कब्जा लिया है, अब उस कमरे को वापस लेना है।” यह केवल भावनात्मक प्रतीक नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय उद्घोषणा है। अब ‘अखंड भारत’ कोई सपना नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामरिक प्रतिबद्धता बन चुका है।

सामने आयी पाकिस्तान की घबराहट

पाकिस्तान की घबराहट तो देखिए, इस्लामाबाद में हड़कंप मच गया। अफगान दूत को बुलाकर उसे फटकार लगाई गई, संयुक्त बयान का विरोध किया गया और यहां तक कहा गया कि यह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उल्लंघन है। लेकिन, असली उल्लंघन तो पाकिस्तान ने उस दिन किया था, जब उसने कश्मीर की धरती पर कब्जा किया था। आज वह अंतरराष्ट्रीय कानून की दुहाई देता है, लेकिन उसका अपना चेहरा अपराधों और अवैध कब्जों से सना हुआ है।

दिलचस्प बात यह है कि तालिबान की सरकार, जिसे पाकिस्तान ने कभी अपने “रणनीतिक गहराई” का हथियार कहा था, अब उसी के खिलाफ खड़ी है। तालिबान अब पाकिस्तान से कह रहा है कि शांति या संबंध अगर नहीं चाहिए, तो “अन्य विकल्प” तैयार हैं। यह ‘अन्य विकल्प’ पाकिस्तान के लिए डर का दूसरा नाम है। इसका अर्थ न केवल कूटनीतिक अलगाव है, बल्कि वह खतरा भी है कि अफगान सीमा पर पाकिस्तान को अब अपनी सेना की नाकामी का सामना करना पड़ेगा।

तीन तरफ से घिर चुका है पाकिस्तान

यह पूरा परिदृश्य भारत के पक्ष में जा रहा है। पाकिस्तान अब तीन तरफ से घिर चुका है, पश्चिम में अफगानिस्तान की तल्ख़ी, पूर्व में भारत की दृढ़ता और उत्तर में चीन की स्वार्थी दूरी। दुनिया का कोई भी बड़ा देश अब पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करता। अमेरिका उसे मदद देने से कतराता है, सऊदी अरब अब शर्तें रखकर पैसा देता है और चीन भी अपने आर्थिक निवेश को “बचाने” की नीति पर है, न कि पाकिस्तान को “संवारने” की।

इधर पीओके के भीतर खुद जनता विद्रोह पर उतारू है। मुजफ्फराबाद, गिलगित, स्कर्दू, हर जगह लोग महंगाई, बिजली संकट और पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से परेशान हैं। जनता अब खुलकर पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगा रही है। “हम क्या चाहते हैं आज़ादी” के स्वर अब “भारत में शामिल होना है” की मांग में बदल रहे हैं। यह पाकिस्तान के टूटने की शुरुआत है। अंदर से फटता हुआ मुल्क बाहरी दबाव झेल ही नहीं सकता।

भारत की तैयारी भी पूरी

इधर, भारत ने अपनी तरफ से भी हर तैयारी पूरी कर ली है। अब रक्षा नीति का केंद्र “पहले प्रहार नहीं” से बदलकर “पहले खतरा खत्म करो” पर आ गया है। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब चुप रहने वाला राष्ट्र नहीं। सीमा पर हर चौकी, हर ड्रोन, हर सैटेलाइट इस मिशन का हिस्सा है, जिसका अंतिम लक्ष्य है पीओके की वापसी।

यह केवल सामरिक रणनीति नहीं, यह आत्मसम्मान की लड़ाई है। जिस कश्मीर को भारत की संसद ने अपना अभिन्न अंग घोषित किया, उसे अब व्यवहार में वापस लाने की तैयारी है। यह तैयारी केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विश्वास और जनता की इच्छाशक्ति से होगी।

पाकिस्तान के अंदर जो हो रहा है, वह 1971 की याद दिलाता है। उस समय भी पाकिस्तान ने अत्याचार किए, जनता भड़की और भारत ने निर्णायक कदम उठाकर नया इतिहास लिखा। आज वही परिस्थितियां दुबारा बन रही हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार आग पाकिस्तान की हर नस में लगी हुई है। बलूचिस्तान, सिंध और पीओके हर जगह अलगाव का स्वर है।

अब आ गया है समय

आरएसएस से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक, हर राष्ट्रवादी मंच अब एक ही दिशा में सोच रहा है कि पाकिस्तान द्वारा कब्जाया गया हर हिस्सा वापस लाना होगा। यह कोई सीमित मिशन नहीं, यह एक सभ्यता की पुनर्स्थापना है। भारत कभी अपने भूभाग को भूला नहीं, उसने बस सही समय का इंतजार किया। अब वह समय आ चुका है।

पाकिस्तान अब न भूगोल में स्थिर है, न राजनीति में। सेना का डर अब जनता में असर नहीं छोड़ रहा। उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है, उसका नैतिक आधार खो चुका है। ऐसे में जब अफगानिस्तान की तरफ से भी चुनौती मिलती है, तो यह साफ दिखने लगा है कि पाकिस्तान अब “केंद्र” नहीं, बल्कि “खंड” बनने की राह पर है।

ये है पाकिस्तान की सबसे बड़ी पराजय

आज अफगानिस्तान की सरकार, जो इस्लामी दुनिया की प्रतिनिधि है, भारत के पक्ष में खड़ी होकर यह संदेश दे रही है कि कश्मीर भारत का है। यह पाकिस्तान की सबसे बड़ी पराजय है, क्योंकि अब धर्म के नाम पर भी वह कश्मीर पर अपनी झूठी दावेदारी नहीं चला सकता। तालिबान की जुबान से निकला यह समर्थन, पाकिस्तान के गले में फंसी हड्डी बन गया है।

भारत का कूटनीतिक और सामरिक खेल अब बहुत साफ है। पहले उसने सीमा के भीतर आतंक की जड़ें काटीं, अब वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की जड़ों को उखाड़ रहा है। जब भारत बोलता है, तो केवल सत्तारूढ़ पार्टी नहीं बोलती, बल्कि 140 करोड़ आत्माओं की एक आवाज़ उठती है और वह आवाज़ है, “पीओके हमारा था, है और रहेगा।”

अब यह नारा नहीं, यह प्रतिज्ञा बन चुका है। अफगानिस्तान का बयान बस वह चिंगारी है जिसने बारूद को जला दिया है। अब भारत की मिट्टी से उठी यह आग सीधे पीओके की घाटियों तक पहुंचेगी और फिर वहां तिरंगा लहराएगा, जैसा 1947 में होना चाहिए था, लेकिन अधूरा रह गया था।

अब वह अधूरापन मिटेगा। अबकी बार, अखंड भारत बनेगा। और जब इतिहास लिखा जाएगा, तो यह पंक्ति जरूर होगी एक सदी बाद, भारत ने अपना खोया कश्मीर वापस पाया।

Exit mobile version