जिहाद की नई प्रयोगशाला: जैश का महिला ब्रिगेड और भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नापाक चाल

जैश-ए-मोहम्मद ने अब अपने खूनी मंसूबों को पूरा करने के लिए कश्मीर और उत्तर प्रदेश की मुस्लिम महिलाओं को ‘जिहाद’ के नाम पर ब्रेनवॉश करने की साजिश शुरू की है।

जिहाद की नई प्रयोगशाला: जैश का महिला ब्रिगेड और भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नापाक चाल

कश्मीर से लेकर उत्तर प्रदेश तक, इस्लामी कट्टरता के लिए जमीन तैयार की जा रही है।

भारत के खिलाफ पाकिस्तान की जंग अब बंदूकों और बमों तक सीमित नहीं रही। यह अब एक अदृश्य युद्ध में बदल चुकी है, जहां निशाना है भारत का सामाजिक ताना-बाना और हथियार हैं वही लोग जो कभी घर के भीतर पवित्रता और मातृत्व के प्रतीक माने जाते थे। जैश-ए-मोहम्मद ने अब अपने खूनी मंसूबों को पूरा करने के लिए कश्मीर और उत्तर प्रदेश की मुस्लिम महिलाओं को ‘जिहाद’ के नाम पर ब्रेनवॉश करने की साजिश शुरू की है। यह वही संगठन है, जिसने पुलवामा हमले से लेकर संसद पर हमले तक भारत की रगों में जहर घोला। अब यह नया मोर्चा ‘जमात अल-मुमिनात’ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के इशारे पर भारतीय समाज के भीतर विभाजन और विध्वंस का एक और अध्याय लिख रहा है।

श्रीनगर की शांत घाटी में, जहां कभी सूफीवाद की खुशबू बहती थी, वहां अब इंटरनेट के जरिए जहरीले संदेश भेजे जा रहे हैं। धर्म और आस्था की भाषा में लिपटा यह जहर, ‘इस्लामी सुधार’ और ‘धार्मिक जागृति’ का नाम लेकर पेश किया जा रहा है। लेकिन असल में यह एक सुनियोजित ब्रेनवॉशिंग अभियान है, जिसमें महिलाओं को यह यकीन दिलाया जा रहा है कि उनका धर्म खतरे में है और उन्हें अपने ईमान की रक्षा के लिए ‘जिहाद’ में उतरना चाहिए। इन संदेशों में मक्का-मदीना की तस्वीरें हैं, कुरान की आयतों का दुरुपयोग है और बीच-बीच में वे शब्द भी हैं जो सीधे पाकिस्तान के बहावलपुर स्थित जैश के मुख्यालय से निकलते हैं।

जिन्हें यह लगता है कि आतंकवाद सिर्फ गरीब, अशिक्षित और निराश लोगों का खेल है, वे इस नई रणनीति को समझ नहीं पा रहे। इस बार निशाना हैं शहरी, पढ़ी-लिखी, संभ्रांत परिवारों की महिलाएं, वे जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, जो अपनी बात रखने में सक्षम हैं और जो समाज में प्रभाव रखती हैं। आतंकियों ने समझ लिया है कि एक महिला के भीतर अगर वे विचारों का जहर भर दें, तो वे पूरे परिवार की सोच बदल सकते हैं। इसलिए अब वॉट्सऐप, टेलीग्राम और एन्क्रिप्टेड ग्रुपों पर ‘कम्युनिटी ऑफ बिलीविंग वीमेन’ जैसे नामों से नेटवर्क बनाए जा रहे हैं। शुरुआत में सब कुछ धर्म, संस्कार और समाज सेवा के नाम पर होता है, लेकिन धीरे-धीरे बातचीत कट्टरता में बदल जाती है।

पाकिस्तान इस पूरे खेल का असली सूत्रधार है। वहां की धरती पर पल रहे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों को अब एहसास है कि भारत के सुरक्षा बलों ने उनके लड़ाकू नेटवर्क की कमर तोड़ कर रख दी है। 2019 के बाद से जिस तरह आतंक के ठिकानों पर लगातार स्ट्राइक हुईं, उसने पाकिस्तान की रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया। अब वह महिलाओं और किशोरियों के जरिए सॉफ्ट टेररिज्म का रास्ता अपना रहा है। पाकिस्तान की इस नई रणनीति की सबसे खतरनाक बात यह है कि इसमें बंदूकें नहीं, बल्कि विचारों के जरिए जंग लड़ी जा रही है।

खुफिया सूत्रों के मुताबिक, जैश का यह महिला विंग ‘जमात अल-मुमिनात’ केवल रिक्रूटमेंट या प्रशिक्षण तक सीमित नहीं है। इसका उद्देश्य है एक वैचारिक माहौल तैयार करना, ताकि भारत के मुस्लिम समाज के भीतर अलगाव और कट्टरता का बीज बोया जा सके। इसमें धर्म के नाम पर राजनीतिक संदेश, सामाजिक असंतोष और भारत-विरोधी नैरेटिव को मिलाकर एक ‘नया जिहादी समाजशास्त्र’ तैयार किया जा रहा है। यह वही फॉर्मूला है जो कभी ISIS ने सीरिया और अफ्रीका में अपनाया था, जहां महिलाओं को ‘धर्मरक्षक’ के रूप में प्रचारित किया गया, लेकिन असल में वे ब्रेनवॉश्ड हथियार बन गईं।

यही वह ज़हर है जो आज पाकिस्तान भारत में घोलना चाहता है। उसका उद्देश्य है कि भारत के भीतर से ही भारत के खिलाफ आवाजें उठें, ताकि गोली चलाने की जरूरत ही न पड़े। इस्लाम के नाम पर महिलाओं को बरगलाने का यह खेल न सिर्फ घृणित है, बल्कि यह उस पवित्रता के भी खिलाफ है जिसके लिए इस्लाम खड़ा है।

कश्मीर से लेकर उत्तर प्रदेश तक, इस्लामी कट्टरता के लिए जमीन तैयार की जा रही है। मदरसों, धार्मिक गैर-सरकारी संगठनों और फर्जी दान श्रृंखलाओं के जरिए फंडिंग चलाई जा रही है। तारीखें तय होती हैं, बैठकें होती हैं और पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगना निर्देश जारी करते हैं। ‘13 रबी-उल-थानी’ जैसी तारीखें अब खुफिया रिकॉर्ड में एक संकेत बन चुकी हैं, यह बताने के लिए कि यह सब संयोग नहीं, बल्कि योजनाबद्ध है।

लेकिन भारत कोई कमजोर राष्ट्र नहीं। 2014 के बाद से इस देश ने आतंकवाद के खिलाफ जिस तरह की नीति अपनाई है, उसने पाकिस्तान की धरती तक यह संदेश भेज दिया है कि अब नया भारत न तो झुकेगा, न रुकेगा। यह वही भारत है जिसने बालाकोट के पहाड़ों में छिपे आतंकियों को ढूंढकर उनके ठिकाने मिटा दिए थे। यह वही भारत है जिसने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर पाकिस्तान के ‘नैरेटिव के कलेजे’ में छुरा घोंपा था। यह वही भारत है, जो अब महिलाओं को इस वैचारिक आतंकवाद से बचाने के लिए तैयार है।

इस्लामाबाद को यह समझ लेना चाहिए कि भारत की मुस्लिम महिलाएं जिहाद की नहीं, शिक्षा और सशक्तिकरण की आवाज़ हैं। वे अब किसी मसूद अजहर या हाफिज सईद के झूठे धर्मरक्षण के झंडे तले नहीं आने वालीं। भारत की बेटी, चाहे वह कश्मीर की हो या कानपुर की, अब जानती है कि उसका असली धर्म अपने बच्चों को पढ़ाना है, बम उठाना नहीं।

फिर भी सवाल यह है कि आखिर पाकिस्तान बार-बार इस तरह के पाप क्यों दोहराता है? जवाब सीधा है, क्योंकि वह डरता है उस भारत से जो आज आत्मनिर्भर है, मजबूत है और अपने शत्रुओं को उन्हीं की भाषा में जवाब देना जानता है। जब वह LOC पर गोली नहीं चला पाता, तो इंटरनेट के जरिए हमारी बेटियों को निशाना बनाता है। यह उसकी कायरता है, उसका चरित्र है, उसका DNA है।

भारत को अब इस मनोवैज्ञानिक युद्ध का जवाब केवल बंदूक से नहीं, बल्कि समाज की चेतना से भी देना होगा। हर स्कूल, हर कॉलेज, हर सोशल प्लेटफॉर्म पर यह संदेश जाना चाहिए कि आस्था की आड़ में जहर फैलाने वालों को माफ नहीं किया जाएगा। हर महिला को यह एहसास दिलाना होगा कि उसके भीतर की शक्ति किसी जिहाद की नहीं, बल्कि भारत माता की सेवा की है।

आज जब जैश-ए-मोहम्मद जैसी संस्थाएं महिलाओं को आतंकवाद के मोहरे में बदलने की कोशिश कर रही हैं, तब भारत को अपने समाज, अपनी मातृशक्ति और अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र को पहले से ज्यादा सशक्त बनाना होगा। यह सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं, बल्कि सभ्यता की रक्षा की लड़ाई है और इस लड़ाई में जीत निश्चित रूप से उसी की होगी, जो सच्चाई और राष्ट्रभक्ति के साथ खड़ा है। आखिरकार, यह भारत है, जहां की मिट्टी आतंक से नहीं डरती, बल्कि आतंक को मिटा देती है।

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