नियंत्रण रेखा (LoC) के पार इस समय फिर से एक बेचैनी मिश्रित सन्नाटा पसरा हुआ है। ध्यान रहे कि यह वही सन्नाटा जो किसी अनहोनी से पहले आता है। हाल के दिनों में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने लगातार चेतावनी दी है कि पाकिस्तान की धरती पर आतंकी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे संगठन फिर से सक्रिय होते दिख रहे हैं। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार करीब 120 आतंकवादी, आधुनिक हथियारों और नाइट विज़न उपकरणों से लैस होकर, बर्फ़बारी से पहले घुसपैठ की फिराक में हैं।
इसी बीच, पाकिस्तानी सेना ने भी एलओसी के नज़दीक अपनी तैनाती बढ़ा दी है। इंफैंट्री, मेकेनाइज्ड कोलम और आर्टिलरी की यूनिटें उस क्षेत्र में सक्रिय हैं, जहां हाल तक शांति दिख रही थी। इन गतिविधियों का एक ही अर्थ है, पाकिस्तान फिर वही पुराना रास्ता अपनाने जा रहा है, जिससे उसकी हर विफलता ढकी जा सके: भारत का विरोध।
अफगान मोर्चे से बिखरता पाकिस्तान
पाकिस्तान आज खुद अपने बनाए दलदल में धंसा हुआ है। पश्चिम में अफगानिस्तान के साथ उसका संघर्ष अब छिपा नहीं है। तालिबान, जिसे कभी पाकिस्तान ने अपनी रणनीतिक गहराई के लिए पैदा किया था, अब उसी के खिलाफ बंदूक ताने खड़ा है। पिछले महीनों में डूरंड लाइन पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आईं और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।
अफगान सीमा से लगातार हमले, बढ़ता आतंक और अंदरूनी विद्रोह, इन सबने पाकिस्तानी सेना की मजबूत छवि को खोखला कर दिया है। उसकी जनता आज बिजली, महंगाई और बेरोज़गारी के संकट में है और उसके नेता देश चलाने के बजाय भारत से बदला की पुरानी कहानी दोहराने की साजिशों में जुट रहे हैं।
फील्ड मार्शल असीम मुनीर की स्थिति भी कुछ वैसी ही है, जैसी 1971 में याह्या खान की थी। हताशा, अपमान और आत्मघाती गर्व का मिश्रण। तब भी पाकिस्तान ने अपनी अंदरूनी विफलताओं को ढकने के लिए युद्ध का रास्ता चुना था। परिणाम सब जानते हैं, ढाका ढह गया और पाकिस्तान आधा रह गया।
आज, जब पाकिस्तान फिर आर्थिक दिवालियेपन की कगार पर है और विदेशी मुद्रा भंडार कुछ सप्ताह का ही बचा है, असीम मुनीर को एक बाहरी दुश्मन चाहिए। यही कारण है कि एलओसी पर आतंकियों और सैनिकों का यह असामान्य जमावड़ा देखा जा रहा है।
‘ब्लीड इंडिया’ की पुरानी बीमारी
पाकिस्तान की रणनीति का मूल दर्शन वही है, जिसे उसके रणनीतिकारों ने कभी ब्लीड इंडिया थ्रू अ थाउज़ेंड कट्स कहा था। यानी भारत को हज़ार छोटे घाव देकर थकाना। लेकिन, उसे याद नहीं कि नई सदी का भारत अब खून नहीं बहाता, जवाब देता है।
2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद से पाकिस्तान की सोच को सबसे बड़ा झटका लगा है। उसे पहली बार एहसास हुआ कि भारत अब सिर्फ शब्दों से नहीं, प्रहारों से बोलता है। अब जब भारतीय सेना ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों में आतंकी ढांचों को जड़ से उखाड़ चुकी है, तो पाकिस्तान के लिए कश्मीर फिर कोई सॉफ्ट टारगेट नहीं मिल रहा।
भारत का नया सुरक्षा दर्शन: संयम नहीं, संकल्प
भारतीय सेना के पश्चिमी कमान प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने हाल ही में कहा कि जो सीजफायर हुआ था, उसके आगे की कार्रवाई करेंगे। पिछली बार जो हुआ था, उससे भी ज्यादा करेंगे। यह बयान उस बदले हुए भारत की घोषणा है जहां अब प्रतिक्रिया नहीं, पहले से तय प्रतिकार नीति ही काम करती है। भारत अब अपने शत्रु की मंशा को पहचानता है और उसे जन्म लेने से पहले ही कुचलने की तैयारी करता है।
एलओसी पर आज हर चौकी, हर चौकीदार और हर सिपाही यह जानता है कि सीमा की रक्षा अब प्रतीक्षा नहीं, प्रत्युत्तर से होती है। सर्विलांस ड्रोन, ग्राउंड सेंसर, सैटेलाइट इमेजिंग और मल्टी-लेयर एंटी-इन्फिल्ट्रेशन ग्रिड, ये सब सिर्फ उपकरण नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक चेतना का विस्तार हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की कूटनीतिक हार
पाकिस्तान का आतंकवाद अब किसी वैचारिक संघर्ष का हिस्सा नहीं, बल्कि एक बेकार व्यापार बन चुका है। एफएटीएफ ने उसे ग्रे लिस्ट से बाहर भले ही निकाल दिया हो, लेकिन उसकी आर्थिक साख अब भी शून्य ही है। अमेरिका, जो कभी पाकिस्तान को मुख्य सहयोगी कहा करता था, आज उसे मुश्किल से देखता है। वॉशिंगटन अब इस्लामाबाद की नहीं, नई दिल्ली की तरफ झुक चुका है, रक्षा, प्रौद्योगिकी, और भू-राजनीतिक स्थिरता के लिए।
चीन, जिसे पाकिस्तान अपना आयरन ब्रदर कहता है, वही अब उसकी असफलता से परेशान है। सीपेक परियोजना (CPEC) आज एक कर्ज़ का जाल बन चुकी है। बलूचिस्तान में हमले, ग्वादर बंदरगाह पर विरोध और चीनी इंजीनियरों की हत्याएंख् यह सब बीजिंग को संकेत दे रहा है कि पाकिस्तान अब उसके लिए जोखिम है, संपत्ति नहीं।
इधर, रूस पहले ही इस्लामाबाद से दूरी बनाए हुए है। खाड़ी देश भी धीरे-धीरे भारत की ओर झुक रहे हैं। सऊदी अरब और यूएई अब भारत को निवेश और सहयोग का केंद्र मानते हैं, जबकि पाकिस्तान से दूरी बना रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में पाकिस्तान के पास बचे हैं सिर्फ दो हथियार आतंकवाद और प्रचार। लेकिन, दोनों ही भारत की नई नीति के सामने निष्प्रभावी हो चुके हैं।
कश्मीर: यहां अब डर नहीं, दृढ़ता है
कश्मीर अब 1990 का कश्मीर नहीं रहा। 370 हटने के बाद वहां की सुरक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक ढांचा और निवेश की स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। जो घाटी कभी पत्थरबाज़ी की आवाज़ों से गूंजती थी, आज वहां पर्यटक और उद्योग के स्वर हैं। पाकिस्तान की पुरानी रणनीति लोकल असंतोष के सहारे अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप अब पूरी तरह असफल हो चुकी है। भारत ने कश्मीर में न सिर्फ सुरक्षा बल्कि मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर भी जीत दर्ज की है। अब पाकिस्तान को यह मालूम है कि सीमा पार से भेजे गए 10 या 20 आतंकवादी न तो घाटी का माहौल बदल सकते हैं, न ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई दबाव बना सकते हैं।
चीन का समीकरण और सीमा का संतुलन
पाकिस्तान की हालिया हलचल को भारत-चीन समीकरण से भी जोड़कर देखा जा सकता है। बीजिंग चाहता है कि भारत उत्तरी और पश्चिमी दोनों सीमाओं पर व्यस्त रहे। लेकिन भारत ने रणनीतिक रूप से इस कोशिश को विफल कर दिया है। लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत की स्थिति अब स्थिर और सशक्त है, जबकि पश्चिम में उसने पाकिस्तान को चेतावनी की स्थिति में रखा है।
इस संतुलन ने भारत को वह सामरिक आत्मविश्वास दिया है, जो शीतयुद्ध के किसी भी दौर में उसके पास नहीं था। चीन अब यह समझ चुका है कि पाकिस्तान उसके लिए प्रॉक्सी का काम नहीं कर सकता।
भारत की वैश्विक स्थिति: नयी शक्ति-संरचना का केंद्र
आज भारत विश्व राजनीति के केंद्र में है। वॉशिंगटन से लेकर पेरिस और टोक्यो तक, नई दिल्ली अब सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखला स्थिरता का भरोसेमंद भागीदार मानी जाती है। क्वाड (QUAD), I2U2 और कई नये सामरिक गठजोड़ों में भारत की भूमिका यह दिखाती है कि अब उसका कूटनीतिक प्रभाव सीमित नहीं रहा। ऐसे में पाकिस्तान की किसी भी नयी हरकत को वैश्विक समर्थन नहीं मिलेगा।
अमेरिका अब कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की बात नहीं करता, यूरोप भी पाकिस्तान की कहानी सुनना बंद कर चुका है। जब भी इस्लामाबाद अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का दमन कहता है, तो दुनिया उसे आतंकवाद के साथ जोड़कर देखती है। यह पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी पराजय है, उसकी कथा अब कोई नहीं सुनता।
‘सिंदूर 2.0’ की तैयारी
भारतीय सेना के अंदर चल रही तैयारियां इस बात का संकेत हैं कि कोई भी दुस्साहस इस बार पहले से कहीं ज़्यादा महंगा पड़ेगा। ऑपरेशन सिंदूर ने पहले ही पाकिस्तान के कई लॉन्च पैडों को ध्वस्त कर दिया था, अब यह कहा जा रहा है कि नई रणनीति ऑफेंसिव-डिफेंस पर आधारित होगी, यानी जब भी सीमा पार से खतरा दिखेगा, उसका जवाब उसी ज़मीन पर दिया जाएगा।
यह नीति वही है जो आधुनिक युद्धशास्त्र की सबसे प्रभावी धारणा मानी जाती है। डिटरेंस बाय डिस्ट्रक्शन यानी प्रतिरोध, विनाश की संभावना से।
पाकिस्तान का भविष्य, भारत की दृढ़ता
पाकिस्तान आज एक ऐसे मोड़ पर है जहां हर दिशा एक दीवार है। न अर्थव्यवस्था संभल रही है और न ही कूटनीति, न जनमत। वह अब भी अपने पुराने नशे में जी रहा है, कश्मीर आज़ाद होगा। लेकिन कश्मीर अब विकास की ओर है, आतंक के नहीं। भारत ने यह दिखा दिया है कि शांति कमजोरी नहीं, बल्कि नियंत्रण है। और नियंत्रण वही रख सकता है जिसके पास शक्ति हो।
भारतीय सेना और सरकार दोनों इस समय सक्रिय शांति के दर्शन पर काम कर रहे हैं, यानी शांति को हथियार बनाकर दुश्मन को विवश करना।
रावलपिंडी और इस्लामाबाद में शायद यह बात अब भी समझ नहीं आई है कि नई दिल्ली अब प्रतिक्रियावादी नहीं रही, वह निर्णायक है। अगर पाकिस्तान फिर किसी आग से खेलने की कोशिश करेगा, तो यह वही आग होगी जो इस बार सीमा पार नहीं रुकेगी।
भारत अब उस मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां वह शांति चाहता भी है और अगर ज़रूरत पड़ी तो युद्ध भी उसी दृढ़ता से लड़ेगा। यही आज के भारत की नई परिभाषा है शांत, पर निर्णायक। संयमी, पर प्रचंड। यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता भी है।