ट्रम्प ने की इज़राइल-हमास युद्ध ख़त्म होने की घोषणा की, इज़राइल को बंधकों की रिहाई का इंतज़ार

इसराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने ‘ऑपरेशन रिटर्निंग होम’ शुरू किया है, जो उन इसराइली नागरिकों को घर वापस लाने का मिशन है, जिन्हें 2023 में हमास ने बंधक बना लिया था।

ट्रम्प ने की इज़राइल-हमास युद्ध ख़त्म होने की घोषणा की, इज़राइल को बंधकों की रिहाई का इंतज़ार

इतिहास इसराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति बेहद कठोर रहा है।

लगातार दो वर्षों से जारी इसराइल-हमास संघर्ष ने अंततः उस मोड़ पर दस्तक दी ही है, जहां पहली बार दोनों पक्षों में बातचीत और समझौते की हल्की-सी उम्मीद दिखाई दे रही है। अमेरिकी मध्यस्थता में हुए नए युद्धविराम समझौते ने इस लंबे युद्ध की भयावहता से जूझ रही दुनिया को राहत की एक झलक दी है। इसी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पुरानी शैली में एक ऐसा बयान दिया, जिसने राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक हलचल मचा दी है। ट्रंप ने ऐलान किया कि यह युद्ध खत्म हो चुका है।

ट्रंप के इस बयान के साथ ही उन्होंने मध्यपूर्व दौरे की घोषणा भी की, जिसमें वे इसराइल और मिस्र जाकर नए शांति समझौते का उत्सव मनाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि यह एक बहुत खास समय है। हर कोई खुश है। यहूदी, मुस्लिम, अरब सभी एक साथ जश्न मना रहे हैं। यह पहली बार है, जब सभी एकजुट दिख रहे हैं। ट्रंप का यह बयान जितना भावनात्मक था, उतना ही राजनीतिक भी, क्योंकि ट्रंप आने वाले महीनों में खुद को फिर से वैश्विक शांति निर्माता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

ऑपरेशन रिटर्निंग होम की शुरुआत

इसराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने इस मौके पर ‘ऑपरेशन रिटर्निंग होम’ शुरू किया है, जो उन इसराइली नागरिकों को घर वापस लाने का मिशन है, जिन्हें 2023 में हमास ने बंधक बना लिया था। सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एयाल ज़ामिर ने कहा कि यह दो साल की लंबी लड़ाई और निरंतर कूटनीतिक दबाव का परिणाम है। उनके शब्दों में, कुछ ही घंटों में हम सब एक होंगे—एक लोग, एक राष्ट्र। यह हमारी जीत है और अब हम ऐसी सुरक्षा स्थिति बनाएंगे जिससे गाज़ा फिर कभी इसराइल के लिए खतरा न बने।

सूत्रों के मुताबिक, हमास इन बंधकों को तीन समूहों में छोड़ेगा। पहला समूह सुबह 10:30 बजे तक, दूसरा कुछ ही देर बाद और तीसरा समूह उसके एक घंटे के भीतर रिहा किया जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस की निगरानी में होगी। हालांकि, इसराइल के अधिकारियों ने चेताया है कि सभी बंधक जिंदा नहीं लौटेंगे। हम जानते हैं कि कुछ गिर चुके हैं और उनके शवों की वापसी आज संभव नहीं हो पाएगी।

इस समझौते के तहत इसराइल भी अपनी तरफ से 250 फिलिस्तीनी कैदियों को और 1,700 ग़ज़ावासियों को रिहा करेगा, जिन्हें 2023 के बाद की सैन्य कार्रवाई में गिरफ्तार किया गया था।

दो वर्षों का युद्ध, 66 हज़ार से ज़्यादा मौतें

बता दें कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास के उस आतंकी हमले ने, जिसमें लगभग 1,200 इसराइली मारे गए थे, पूरे क्षेत्र को जलते हुए बारूद के ढेर में बदल दिया था। इसके जवाब में इसराइल ने गाज़ा पर व्यापक सैन्य हमला शुरू किया। वायुसेना, टैंक और ज़मीनी बलों के साथ। दो वर्षों में यह संघर्ष इतना विनाशकारी साबित हुआ कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों में इसे 21वीं सदी का सबसे बड़ा मानवीय संकट कहा गया। इस दौरान 66 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश नागरिक हैं और गाज़ा का अधिकांश हिस्सा मलबे में तब्दील हो चुका है।

इसी बीच अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता गया। अमेरिका और यूरोपीय देशों के भीतर भी इसराइल की कार्रवाई को लेकर तीखी आलोचना हुई। गाज़ा में लगातार जारी नाकेबंदी और खाद्य सामग्री पर प्रतिबंधों ने अकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी। ऐसी पृष्ठभूमि में यह युद्धविराम न केवल राहत का संकेत है, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी एक अहम मोड़ है।

ट्रंप का ‘गाज़ा पीस प्लान’

डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले कुछ महीनों में पर्दे के पीछे रहकर एक 20-सूत्रीय गाज़ा पीस प्लान तैयार किया था। इस योजना में उन्होंने न केवल युद्धविराम बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता के लिए कई प्रावधान भी रखे थे। इसराइल और हमास ने इनमें से कुछ बिंदुओं पर सहमति जताई जैसे कि युद्धविराम, बंधकों की अदला-बदली, इसराइली सेना की आंशिक वापसी, मानवीय सहायता के रास्ते खोलना और फिलिस्तीनियों के जबरन निष्कासन पर रोक।

इस समझौते के तहत पिछले हफ्ते इसराइल ने कुछ इलाकों से अपनी सेना पीछे हटाई थी और हजारों विस्थापित परिवारों को अपने घरों में लौटने की अनुमति दी। ट्रंप ने इसे अमेरिका की एक ऐतिहासिक मध्यस्थता बताया और कहा कि यह शांति अब स्थायी होगी, क्योंकि सभी युद्ध से थक चुके हैं।

ट्रंप की योजना में यह भी है कि आने वाले महीनों में गाज़ा के पुनर्निर्माण के लिए एक विशेष अंतरराष्ट्रीय कोष बनाया जाए। अरब देशों और अमेरिका के निवेश से गाज़ा के स्कूल, अस्पताल और सड़कें दोबारा बनाई जाएंगी। हालांकि, हमास ने स्पष्ट किया है कि वह राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं होगा और केवल मिस्र व क़तर के माध्यम से बात करेगा।

शर्म अल-शेख सम्मेलन, उम्मीद की खिड़की

युद्धविराम के बाद अब सारी निगाहें मिस्र के रेड सी रिसॉर्ट शर्म अल-शेख पर टिक गई हैं, जहां आने वाले दिनों में गाज़ा शांति सम्मेलन आयोजित होगा। यह सम्मेलन ट्रंप की पहल पर हो रहा है, जिसमें 20 से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इसका उद्देश्य है मध्यपूर्व में स्थायी शांति, गाज़ा के पुनर्निर्माण की रूपरेखा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए साझा ढांचा बनाना।

भारत की ओर से इस सम्मेलन में केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री किर्ति वर्धन सिंह भाग लेंगे। यह पहली बार है, जब भारत को औपचारिक रूप से इस स्तर की शांति प्रक्रिया में आमंत्रित किया गया है। हालांकि, इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भागीदारी को लेकर अब भी अनिश्चितता बनी हुई है। हमास ने तो पहले ही घोषणा कर दी है कि वह इस सम्मेलन में उपस्थित नहीं होगा।

राजनीतिक परतें और शक्ति समीकरण

यह युद्धविराम और शांति योजना केवल मानवीय राहत नहीं है, बल्कि मध्यपूर्व की शक्ति-समीकरण को भी बदलने की क्षमता रखती है। अमेरिका, जिसने पिछले दो वर्षों में अपने रुख को अपेक्षाकृत निष्क्रिय बनाए रखा था, अब ट्रंप की पहल के ज़रिए वैश्विक नेतृत्व की फिर से स्थापना करना चाहता है। दूसरी ओर, इसराइल इस सैन्य सफलता को कूटनीतिक लाभ में बदलने की कोशिश कर रहा है।

हमास, जिसे अब तक सिर्फ सैन्य संगठन माना जाता था, एक बार फिर राजनीतिक वार्ताकार के रूप में चर्चा में आ गया है। अरब देशों, खासतौर पर मिस्र, क़तर और सऊदी अरब के लिए यह अवसर है कि वे क्षेत्रीय राजनीति में अपनी भूमिका मज़बूत करें। वहीं ईरान और तुर्की इस शांति प्रक्रिया को सशंकित दृष्टि से देख रहे हैं, क्योंकि यह उनके प्रभाव क्षेत्र को सीमित कर सकता है।

क्या यह शांति टिकेगी?

इतिहास इसराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति बेहद कठोर रहा है। 1993 का ओस्लो समझौता, 2020 का अब्राहम एकॉर्ड्स, हर बार उम्मीदें जगीं, लेकिन जमीनी हालात ने उन्हें निगल लिया। आज का यह युद्धविराम भी ऐसी ही नाजुक स्थिति में खड़ा है। गाज़ा के खंडहरों के बीच जीवन का लौटना शुरू जरूर हुआ है, लेकिन अविश्वास की दीवारें अभी भी कायम हैं।

ट्रंप इसे एक नया युग कह रहे हैं। लेकिन, मध्यपूर्व के जानकारों का कहना है कि असली परीक्षा आने वाले हफ्तों में होगी जब बंधक लौट आएंगे, जब कैदी रिहा होंगे और जब पहली बार गाज़ा की सड़कों पर फिर से बच्चे स्कूल जाते दिखाई देंगे। तभी तय होगा कि यह शांति कितनी टिकाऊ है।

गाज़ा की राख में उम्मीद का एक अंकुर फूटा है, लेकिन यह तभी खिल पाएगा जब राजनीतिक इच्छाशक्ति, मानवीय संवेदना और क्षेत्रीय सहयोग, तीनों एक साथ आएं। हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि सब लोग खुश हैं, लेकिन इस खुशी को इतिहास में स्थायी रूप से दर्ज करने के लिए अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

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