उमर-अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती और बाकी कश्मीरी नेता PoK में पाकिस्तान की हिंसा पर क्यों चुप हैं?

PoK के लोग भी मुसलमान हैं, लेकिन उनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता क्योंकि उनके कातिल भी मुसलमान हैं। यही सबसे बड़ा पाखंड है, चाहे दुनिया हो या भारत की राजनीति।

उमर-अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ्ती और बाकी कश्मीरी नेता PoK में पाकिस्तान की हिंसा पर क्यों चुप हैं?

पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) में हज़ारों लोग अब पाकिस्तान की हुकूमत और फौज के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आए हैं। महँगाई, टैक्स और रोज़मर्रा की ज़रूरतों से शुरू हुआ आंदोलन अब पाकिस्तान के ज़ुल्म और कब्ज़े के ख़िलाफ़ बग़ावत में बदल चुका है। अवामी एक्शन कमेटी (AAC) के नेतृत्व में लोग 38 माँगें रख रहे हैं। लेकिन जब उन्होंने विरोध किया तो पाकिस्तानी सेना ने उन पर गोलियाँ चला दीं। इसमें कई लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। सरकार ने इंटरनेट भी बंद कर दिया है। हालात काबू से बाहर हैं, फिर भी लोग “पाकिस्तान मुर्दाबाद” के नारे लगा रहे हैं और पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) में जनता का ग़ुस्सा

हज़ारों लोग पाकिस्तान की जालिम सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर आ गए हैं। लेकिन सोचने वाली बात है कि फारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, सज्जाद लोन और इंजीनियर राशिद जैसे नेता कहाँ हैं? पाकिस्तान की फौज जब निहत्थे मुसलमानों पर गोलियाँ चला रही है, तो ये सब चुप क्यों हैं? ये वही लोग हैं जो भारत पर बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाने में पीछे नहीं हटते, लेकिन असली ज़ुल्म पर आँख मूँद लेते हैं। ताज़ा हालात में पाकिस्तानी फौज और पुलिस की गोलीबारी में 12 लोग मारे गए और 200 से ज़्यादा घायल हुए हैं। आंदोलन की कमान अवामी एक्शन कमेटी (AAC) के हाथ में है, लेकिन “कश्मीरी हक़” के ये नेता खामोश बैठे हैं।

आम लोगों का बग़ावत में बदलता आंदोलन

शुरुआत में ये आंदोलन सिर्फ़ महँगाई और रोज़मर्रा की दिक़्क़तों के ख़िलाफ़ था, लेकिन धीरे-धीरे यह पाकिस्तान की सरकार और फौज के ख़िलाफ़ बग़ावत बन गया। अवामी एक्शन कमेटी ने 38 माँगें रखी हैं, जिनमें टैक्स में राहत, आटा और बिजली सस्ती करना और अधूरे विकास काम पूरे करना शामिल है। सबसे बड़ी माँग है कि पाकिस्तान में रह रहे शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 सीटें ख़त्म की जाएँ, क्योंकि इनका इस्तेमाल पाकिस्तानी एजेंसियाँ PoK की राजनीति को अपने कब्ज़े में रखने के लिए करती हैं।

जब फौज ने लोगों पर गोलियाँ चलाईं, तो ग़ुस्सा और बढ़ गया। दादयाल, मुज़फ़्फ़राबाद, रावलकोट, नीलम वैली और कोटली तक लोग “पाकिस्तान मुर्दाबाद” के नारे लगा रहे हैं। हालात काबू करने के लिए पंजाब से हज़ारों सैनिक बुलाए गए और इंटरनेट बंद कर दिया गया ताकि बाहर की दुनिया को सच न पता चल सके। लेकिन जनता डरी नहीं और पीछे हटने से साफ़ इनकार कर रही है।

पाकिस्तान की दोगली पॉलिसी और दुनिया की चुप्पी

ये दोहरा खेल साफ़ नज़र आता है। भारत में अगर छोटी-सी बात भी हो जाए तो BBC, रॉयटर्स और अल जज़ीरा जैसे चैनल तुरंत “भारतीय ज़ुल्म” की ख़बरें दिखाते हैं। लेकिन आज जब पाकिस्तान की फौज निहत्थे मुसलमानों को मार रही है, तो वही मीडिया खामोश है। जो लोग गाज़ा के नाम पर इंसाफ़ की बातें करते हैं, वो PoK के मुसलमानों पर चुप हैं। क्यों? क्योंकि ये उनकी राजनीति के हिसाब से ठीक नहीं बैठता।

पाकिस्तान का सरकारी मीडिया भी सरकार के आदे श पर इस आंदोलन की ख़बरें छिपा रहा है। और जो इस्लामी देश भारत को अल्पसंख्यकों के नाम पर सीख देते हैं, वो भी चुप्पी साधे हुए हैं। सच्चाई यही है कि जब मुसलमान ही मुसलमानों को मारते हैं, तो दुनिया की इंसानियत कहीं ग़ायब हो जाती है।

भारत की साफ़ राय

भारत इस पूरे हालात पर ध्यान दे रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि PoK में जो बर्बरता हो रही है, वो पाकिस्तान की ज़ुल्मी नीतियों और वहाँ के संसाधनों की लूट का नतीजा है। भारत का साफ़ कहना है कि पाकिस्तान को PoK में किए जा रहे इन अत्याचारों का जवाब देना ही होगा।

कश्मीरी नेताओं की चुप्पी – सबसे बड़ा पाखंड

भारत में जो नेता अपने आप को कश्मीर का नेता कहते हैं – फारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, सज्जाद लोन और इंजीनियर राशिद – उनकी चुप्पी बहुत शर्मनाक है। जब भारत पर झूठे इल्ज़ाम लगाना हो तो ये तुरंत बोलते हैं, लेकिन जब पाकिस्तान PoK के लोगों पर गोलियाँ चला रहा है, तब ये सब चुप हैं।

अगर इन्हें सच में कश्मीरियों की फ़िक्र होती तो ये PoK के लोगों के लिए भी आवाज़ उठाते। लेकिन सच ये है कि इन्हें सिर्फ़ अपनी राजनीति की चिंता है, इंसाफ़ की नहीं। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बोलने में इन्हें डर लगता है कि कहीं उनकी राजनीति न बिगड़ जाए।

पाकिस्तान की घबराहट और बढ़ता असर

खबरें हैं कि पाकिस्तान की सेना ध्यान भटकाने के लिए LoC पर कोई नई हरकत कर सकती है। भारतीय सेना पूरी तरह सतर्क है। वहीं PoK में प्रदर्शनकारियों ने कई पाकिस्तानी पुलिसवालों को पकड़ लिया और उनकी तस्वीरें वायरल हो गई है।

यह आंदोलन अब विदेशों तक भी पहुँच गया है। ब्रिटेन के बर्मिंघम में रहने वाले कश्मीरी मूल के लोगों ने पाकिस्तान के कौंसल जनरल के सामने विरोध जताया। कहा जा रहा है कि PoK में यह अब तक का सबसे बड़ा जन आंदोलन है, जिसमें लोग जाति, धर्म और वर्ग भेद छोड़कर एकजुट हुए हैं।

PoK के बहादुर लोग और दूसरों की कायरता

PoK के लोग अब अपने खून से नया इतिहास बना रहे हैं। उनकी लड़ाई दिखा रही है कि पाकिस्तान का कब्ज़ सिर्फ़ ज़ुल्म और गोलियों पर टिका है, हक़ पर नहीं। वहीं, जो नेता खुद को “कश्मीरी आवाज़” कहते हैं, वो चुप हैं और यही उनकी असली सच्चाई दिखाता है।

PoK के लोग भी मुसलमान हैं, लेकिन उनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता क्योंकि उनके कातिल भी मुसलमान हैं। यही सबसे बड़ा पाखंड है, चाहे दुनिया हो या भारत की राजनीति।

फिर भी, PoK के लोग अपने साहस से बता रहे हैं कि सच्चाई और हिम्मत कभी दबाई नहीं जा सकती।

 

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