संघ पर रिसर्च करने वाले एक पाश्चात्य लेखक ने लिखा है कि “दुनिया के किसी अन्य हिस्से में ऐसा कोई संगठन नहीं है, जो बुनियादी ढांचे और कार्यशैली में आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा हो।”
दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना की गई होगी, वह भी बिना किसी ठोस आधार के। सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी और इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते हुए भी संघ न सिर्फ सफलतापूर्वक 100 वर्ष पूरे कर चुका है, बल्कि निरंतर उसका विस्तार भी हो रहा है।
इसका श्रेय जाता है नागपुर के डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार को, जिन्होने महज़ 36 वर्ष की आयु में आज से ठीक 100 वर्ष पूर्व 1925 में एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। इसी स्वयंसेवी संगठन की छत्रछाया में विकसित और शिक्षित होकर निकले कार्यकर्ता आज देश की नीतियों को तय कर रहे हैं, भारत निर्माण में सकारात्मक योगदान दे रहे हैं।
भारत रत्न की मांग तेज़
और आज जब संघ अपना शताब्दी समारोह मना रहा है, तब संघ के स्वयंसेवकों और देश के अन्य लोगों के बीच ये सवाल भी जगह बना रहा है कि— क्या संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को भारत रत्न मिलेगा?
सूत्रों की मानें तो संघ परिवार की ओर से यह इच्छा जताई गई है कि इस अवसर पर डॉ. हेडगेवार को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा जाए। सूत्रों के अनुसार संघ ने इस विषय में सरकार को अवगत करा दिया है और अब निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को लेना है। माना जा रहा है कि सरकार भी इसे लेकर जल्द ही फैसला ले सकती है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि हेडगेवार को भारत रत्न प्रदान किया जाता है, तो यह केवल संघ परिवार के लिए ही नहीं बल्कि उन करोड़ों स्वयंसेवकों के लिए गर्व का विषय होगा, जो जाति, वर्ग, भाषा और क्षेत्र से ऊपर उठकर संगठन के कार्यों में जुटे रहते हैं और जिन्होने बिना किसी अपेक्षा के अपना जीवन संघकार्य में और राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया।
वैसे भी संघ और भाजपा के बीच अनबन की खबरों के बाद, बीते कुछ वक्त से भाजपा आलाकमान और सरकार के द्वारा संघ को साधने की कोशिशें भी की जा रही हैं— जैसे शताब्दी वर्ष पर स्मृति सिक्का जारी करना और संघ पृष्ठभूमि से आने वाले सी.पी. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद पर चुनना। इसे भाजपा और संघ के बीच की कथित दूरियों को पाटने की पहल के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान संघ की तारीफ़ कर चुके हैं।
समाजसेवा और राष्ट्रनिर्माण में भूमिका
संघ ने अपने सौ सालों के सफर में शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा राहत के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। विद्या भारती आज 20 हजार से अधिक विद्यालय और शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान चला रही है, जिनमें लाखों छात्र–छात्राएं शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। तो वहीं सेवा भारती जैसा संस्था देश के दुर्गम इलाकों में भी अनगिनत सेवाकार्य संचालित कर रही है।
भारत विभाजन हो या चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध, 1971 में आया ओडिशा चक्रवात हो या भोपाल गैस त्रासदी, 1984 के सिख विरोधी दंगे हों, या फिर कारगिल युद्ध, गुजरात में आया भूकंप रहा हो या फिर सुनामी और उत्तराखंड और पंजाब में आई आपदा– राष्ट्र के सामने आए हर संकट में संघ के स्वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में दिखाई दिए हैं।
प्रणब मुखर्जी ने डॉ. हेडगेवार को कहा था भारत मां का महान सपूत
आज अगर संघ 100 वर्षों के इस गौरवशाली पड़ाव तक पहुँच सका है तो इसके सूत्रदार डॉ. हेडगेवार ही हैं। शायद इसीलिए जून 2018 में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी संघ मुख्यालय (नागपुर) पहुंचे थे, तो उन्होने न सिर्फ डॉ हेडगेवार के निवास का दौरा किया और बल्कि विज़िटर बुक में लिखा, ”मैं आज यहां भारत मां के महान सपूत डॉ के बी हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने आया हूं.”
डॉ केशव बलिराम हेडगेवार कौन थे, कहां से आते हैं, उन्होंने संघ को कैसे खड़ा किया, उनके मुताबिक इसकी क्या ज़रूरत थी, और आज संघ कहां है? इन सभी सवालों पर काफी मंथन हो चुका है।
व्यक्तिगत आलोचनाओं से परे इस पर किसी को संशय नहीं होना चाहिए है कि डॉ. हेडगेवार एक सच्चे राष्ट्रभक्त व मां भारती के सच्चे सपूत थे, जिन्होने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का सपना देखा और हिंदुओं को संघ (संगठन) की शक्ति समझाई।
संघ संस्थापक को कब मिलेगा भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान?
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन राष्ट्रभक्ति और संगठन निर्माण को समर्पित था। वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य भी रहे और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होकर दो बार जेल गए। 1920 में अंग्रेजों के खिलाफ भाषण देने और 1930 में महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में हिस्सा लेने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
उनका मानना था कि व्यक्ति निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण संभव है। इसी सोच के साथ उन्होंने संघ की स्थापना की, जिसने अनुशासन और संगठन की शक्ति को केंद्र में रखा।शायद इसीलिए आज जब संघ अपने 100 वर्ष पूरा कर रहा है तो संघ के स्वयंसेवकों और संघ परिवार के बीच ऐसी भावना बलवती हो रही है कि संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा जाना चाहिए। संघ परिवार को अब इंतजार है कि क्या सरकार हेडगेवार को भारत रत्न से सम्मानित कर इस ऐतिहासिक शताब्दी को और भी यादगार बनाएगी।