उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद का विध्वंस: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर महाकाल मंदिर के विकास और पार्किंग विस्तार को दिया संरक्षण

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने याचिका खारिज कर दी और उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी रूप से संपन्न हो चुकी है और मुआवजा भी प्रदान किया जा चुका है।

उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद का विध्वंस: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर महाकाल मंदिर के विकास और पार्किंग विस्तार को दिया संरक्षण

जनवरी 2025 में यह मस्जिद ध्वस्त की गई थी।

उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर के विकास और पार्किंग सुविधा के विस्तार को लेकर हुई भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई में लगभग 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद को गिराए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में चुनौती प्रस्तुत की गई थी, जिसमें मस्जिद के विध्वंस को अवैध ठहराने और उसके पुनर्निर्माण की मांग की गई थी।

हालांकि, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने याचिका खारिज कर दी और उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी रूप से संपन्न हो चुकी है और मुआवजा भी प्रदान किया जा चुका है। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ताओं ने पहले ही अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका वापस ले ली थी। सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने टिप्पणी की, अब बहुत देर हो चुकी है, कुछ नहीं किया जा सकता।

याचिकाकर्ता मोहम्मद तैयब और 12 अन्य लोगों ने दावा किया था कि मस्जिद 1985 से वक्फ की संपत्ति थी और वे वहां नियमित नमाज अदा करते थे। इसके साथ ही उन्होंने राज्य सरकार द्वारा मस्जिद के पुनर्निर्माण और जिला कलेक्टर सहित भूमि अधिग्रहण अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग भी की।

कोर्ट ने क्या कहा, जानें

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एमआर शमशाद ने तर्क दिया कि मस्जिद को एक अन्य धार्मिक स्थल के लिए पार्किंग स्थान बनाने के नाम पर ध्वस्त कर दिया गया। उन्होंने उच्च न्यायालय के विचार का विरोध किया कि याचिकाकर्ता कहीं और प्रार्थना कर सकते हैं। मुआवजे के भुगतान के संबंध में भी याचिकाकर्ता यह दावा कर रहे थे कि यह अनधिकृत व्यक्तियों को दिया गया। कोर्ट ने हालांकि स्पष्ट किया कि मुआवजे संबंधी विवाद अलग से कानूनी उपायों के माध्यम से संबोधित किए जा सकते हैं।

इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ कि महाकाल मंदिर परिसर के विकास और व्यापक पैमाने पर सार्वजनिक सुविधाओं के निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। उज्जैन के महाकाल मंदिर जैसी राष्ट्रीय और धार्मिक महत्व की संपत्ति के लिए पार्किंग विस्तार और विकासात्मक योजनाओं को लागू करना राज्य सरकार का संवैधानिक अधिकार है। मस्जिद का विध्वंस इस योजना के तहत किया गया और इसके पीछे कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया।

जनवरी में ध्वस्त की गई थी मस्जिद

जानकारी हो कि जनवरी 2025 में यह मस्जिद ध्वस्त की गई थी। प्रशासन का यह कदम केवल मंदिर परिसर के विकास के लिए था, जिसमें नागरिकों और तीर्थयात्रियों के लिए पार्किंग की सुविधा बढ़ाना शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में पहले से ही उच्च न्यायालय का आदेश था और याचिकाकर्ता द्वारा दी गई चुनौती कानून के दृष्टिकोण से अब व्यावहारिक रूप से मान्य नहीं रही।

विश्लेषक बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय राज्य सरकार की क्षमता और कानूनी अधिकारों को मजबूत करता है। उज्जैन जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर में सार्वजनिक सुविधाओं और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा तथा सुविधा को प्राथमिकता देना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कानून और विकास के बीच संतुलन बनाए रखा और यह संकेत दिया कि विकास कार्यों में कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है।

साथ ही, यह मामला यह भी दर्शाता है कि धार्मिक संपत्ति और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण के कानूनी प्रावधानों और मुआवजे की प्रक्रिया का पालन किया गया है, और इस प्रकार इस विवाद को अब आगे बढ़ाने की कोई वैध कानूनी राह शेष नहीं रही।

पार्किंग के विस्तान को मिली संवैधानिक मंजूरी

उज्जैन में महाकाल मंदिर परिसर का यह विस्तार न केवल तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाजनक होगा, बल्कि यह पूरे शहर की विकास योजनाओं का हिस्सा भी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राज्य सरकार को अपने विकासात्मक लक्ष्यों को निष्पक्ष और कानूनी तरीके से लागू करने की मंजूरी दी है।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक हित और विकासात्मक योजनाओं को रोकने का प्रयास कानूनी दृष्टि से असंगत है। उज्जैन में पार्किंग विस्तार के लिए मस्जिद के विध्वंस को कानूनी मंजूरी मिलने के साथ ही यह एक मिसाल बन गई कि देश में विकास और सुशासन के मार्ग पर कानूनी प्रक्रियाओं के पालन की अहमियत सर्वोपरि है।

Exit mobile version