पाकिस्तान का असली चेहरा: हिंदू हो तो दुश्मन, सिख हो तो ‘मेहमान’, और मुसलमान हो तो ‘असली इंसान’

गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर पाकिस्तान गए 14 भारतीय हिंदुओं को चुन-चुनाकर बस से उतार दिया गया, क्योंकि वे हिंदू थे। इस घटना ने पाकिस्तान की धर्म आधारित नीति और अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी संस्थागत भेदभाव को उजागर कर दिया है। वैश्विक मीडिया इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए तत्काल कवरेज होता है। जानें पूरी कहानी और पाकिस्तान की इस दोहरी नीति के पीछे की सच्चाई।

पाकिस्तान का असली चेहरा: हिंदू हो तो दुश्मन, सिख हो तो ‘मेहमान’, और मुसलमान हो तो ‘असली इंसान’

अगर दुनिया ने इस तथ्य को अभी भी नहीं देखा है, तो यही सबसे बड़ी चुप्पी है।

पाकिस्तान की असली पहचान किसी सीमा विवाद, आतंकवाद या चर्चित मामलों से नहीं, बल्कि बस की उस छोटी सी घटना में उभरकर सामने आई, जहां 14 भारतीय हिंदुओं को सिर्फ इसलिए उतार दिया गया क्योंकि वे हिंदू थे। ये लोग गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व के अवसर पर पाकिस्तान के गुरुद्वारों में मत्था टेकने आए थे और उनके साथ करीब 1900 सिख श्रद्धालु भी मौजूद थे। कोई कानून का उल्लंघन नहीं, कोई सुरक्षा खतरा नहीं, सिर्फ़ धर्म की वजह से चुन-चुनकर बहिष्कार। अमर चंद और उनके छह सदस्यों वाले परिवार को और लखनऊ से आए सात अन्य लोगों को बस से उतार दिया गया। उन्हें टिकट पर खर्च किए गए पैसे भी वापस नहीं किए गए। यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था, यह पाकिस्तान की आत्मा की परख थी, उसकी राज्य नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण था।

पाकिस्तान के लिए धर्म ही उसकी नागरिकता और राष्ट्र का आधार है। जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत की धुरी पर खड़ा यह मुल्क हमेशा से ही मुसलमानों के लिए ‘सुरक्षित’ और गैर-मुसलमानों के लिए ‘असुरक्षित’ रहा है। स्वतंत्रता के बाद से लगातार अल्पसंख्यक समुदायों का पलायन, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों और गुरुद्वारों की अतिक्रमण की घटनाएं इस वास्तविकता को पुष्ट करती हैं। हिंदू, सिख, ईसाई, अहमदिया, बलोच, हज़ारा सभी इस सिलसिले में पीड़ित रहे हैं। यह घटना इस पूरे ढांचे की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति मात्र है। पाकिस्तान का संविधान और प्रशासनिक तंत्र इस्लाम को आधार बनाकर गैर-मुसलमानों को न केवल राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखते हैं, बल्कि उनकी आस्था और आस्थाओं का सार्वजनिक और औपचारिक सम्मान भी छीनते हैं।

वैश्विक मीडिया का दोहरा मानदंड

दुनिया के मीडिया संगठन, जिनमें BBC, Al Jazeera और New York Times शामिल हैं, अक्सर भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर तीखी रिपोर्ट बनाते हैं, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर। भारत में किसी विवादित कानून या किसी कथित असमानता को लेकर ग्लोबल मीडिया तुरंत ​ब्रेकिंग न्यूज बना देता है, इसके बाद घंटों का विश्लेषण प्रसारित करता है, और रिपोर्टर्स को घटनास्थल पर भेजता है। लेकिन जब पाकिस्तान 14 हिंदुओं को बस से उतार देता है, जो सिर्फ धार्मिक पहचान के कारण अपनी आस्था निभाने गए थे, तो वही मीडिया अचानक मौन हो जाता है। यही दोहरा मापदंड है, यही वैश्विक नैरेटिव की असमानता है। हिंदू पीड़ा न तो सुर्ख़ियों में आती है और न ही रिपोर्टिंग का हिस्सा बनती है क्योंकि वह ‘विक्टिम नैरेटिव’ में फिट नहीं होती।

हिन्दुओं को लगातार दी जाती रहीं यातनाएं

यहां बता दें कि पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या अब मात्र 1.6 प्रतिशत के आसपास रह गई है। जबकि, 1947 में यह संख्या लगभग 15 प्रतिशत थी। इस 76 साल में संस्थागत, सामाजिक और प्रशासनिक तरीकों से हिंदू समुदाय का लगातार निर्वासन किया गया। यह कोई हिंसक गृहयुद्ध या महामारी नहीं, बल्कि एक धीमा, व्यवस्थित और कानूनी रूप से अभिज्ञापित सांस्कृतिक पलायन रहा है। उनके मंदिर, गुरुद्वारे और अन्य धार्मिक स्थल लगातार अधिग्रहित हुए, महिलाओं के अपहरण और जबरन निकाह जैसी घटनाएं आम रही हैं। पाकिस्तान के लिए यह सब ‘सामान्य’ है, इसकी राष्ट्रीय नीति का अंग है, और यह समझौता करने वाला मामला नहीं। यही कारण है कि हिंदू श्रद्धालुओं को बस से उतराना उसके लिए कोई असामान्य घटना नहीं, बल्कि रोज़मर्रा का नियम है।

यह घटना केवल पाकिस्तान के आंतरिक अधिकार का मामला नहीं है, बल्कि उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि का भी आईना है। पाकिस्तान लगातार दुनिया को भारत में मुसलमानों की कथित ‘असुरक्षा’ के लिए चेताता है, UNHRC में बयान देता है, विदेशी मीडिया के सामने भाषण देता है। लेकिन जब खुद वह अपने देश में हिंदुओं के साथ वही व्यवहार करता है, तो उसकी आड़ में झूठ और पाखंड खुलकर सामने आता है। यह दिखाता है कि पाकिस्तान की विदेश नीति केवल नैरेटिव की राजनीति पर आधारित है, वास्तविक मानवाधिकार या धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर नहीं।

इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान का राज्य हमेशा से ही ‘धर्म आधारित’ रहा है। भारतीय सीमा पार से दिखाए गए किसी मानवाधिकार के आरोपों का सामना करने के लिए वह चतुराई से नैरेटिव तैयार करता है, और भारत की आलोचना में विश्व मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों का लाभ उठाता है। लेकिन जब खुद उसकी नीतियों और घटनाओं की बात आती है, तो वह छिप जाता है। यही दोहरा मापदंड उसकी अंतरराष्ट्रीय राजनीति की खासियत है।

पाकिस्तान के लिए अल्पसंख्यक केवल औपचारिक पीड़ित

पाकिस्तान ने सिख श्रद्धालुओं को अनुमति दी, लेकिन हिंदुओं को नहीं। यह केवल धार्मिक भेदभाव नहीं, बल्कि चयनात्मक सह-अस्तित्व का प्रमाण है। सिख समुदाय राजनीतिक रूप से कम चुनौतीपूर्ण, और धार्मिक रूप से ‘अनुकूल’ प्रतीत होता है, इसलिए उन्हें अनुमति दी गई। हिंदू, जो पाकिस्तान के दृष्टिकोण में एक ‘सदाबहार प्रतिद्वंद्वी’ हैं, उनके लिए जगह नहीं है। यह स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान के लिए अल्पसंख्यक केवल औपचारिक पीड़ित हैं, वास्तविक मानव नहीं।

यह घटना हमेंं यह भी सिखाती है कि वैश्विक मीडिया की नैतिकता और रिपोर्टिंग का पैमाना केवल राजनीतिक रूप से सुगम पीड़ित के आधार पर तय किया जाता है। यदि यह 14 मुसलमान होते, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया तुरंत खड़ा हो जाता। लेकिन हिंदू पीड़ा को महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि वह वैश्विक नैरेटिव में फिट नहीं होती। यही पाकिस्तान की साज़िश और वैश्विक मीडिया की निष्ठुर चुप्पी का संयोजन है।

अन्ततः, यह घटना यह याद दिलाती है कि पाकिस्तान एक “धर्मनिर्मित राष्ट्र” है, जो अपने संविधान, कानून और प्रशासन के माध्यम से अल्पसंख्यकों को नागरिक, राजनीतिक और धार्मिक अधिकारों से वंचित रखता है। भारत एक सभ्यतामूलक राष्ट्र होने के नाते अभी भी अपने नागरिकों को सम्मान और आस्था की स्वतंत्रता देता है, जबकि पाकिस्तान धर्म के नाम पर इंसानियत को चुन-चुनकर बाहर निकालता है। यह सिर्फ 14 हिंदुओं की घटना नहीं, यह उस पूरे तंत्र का प्रतीक है, जिसने सैकड़ों सालों में अपने नागरिकों के अधिकारों और सम्मान को लगातार सीमित किया है।

अगर दुनिया ने इस तथ्य को अभी भी नहीं देखा है, तो यही सबसे बड़ी चुप्पी है। 14 हिंदू बस से उतारे नहीं गए, बल्कि पाकिस्तान की सांस्कृतिक आत्मा ने उन्हें बाहर निकाल दिया। यह संकेत है कि धर्म के नाम पर राज्य और समाज किस हद तक इंसानियत के मूल सिद्धांतों को दरकिनार कर सकते हैं। और यही पाकिस्तान की सबसे बड़ी असली पहचान है। दुनिया चाहे देखे या न देखे, यह सच तब भी रहेगा और हर पीड़ित भारतीय के लिए यह स्मरणीय होगा कि धर्म के नाम पर निर्मित राष्ट्र की सीमा कहां तक जाती है।

यह कहानी खत्म नहीं होती। यह चेतावनी है, यह आईना है, और अंतिम हकीकत यह है कि पाकिस्तान का असली अपराध उसके काम नहीं, उसकी स्वीकार्यता है, और दुनिया की चुप्पी उसका सबसे बड़ा साथी है। यह बस एक पल का दृश्य नहीं, बल्कि एक सभ्यता के खिलाफ लगातार जारी सांस्कृतिक युद्ध का संकेत है। दुनिया की नजरें चाहे कहीं भी हों, लेकिन यह सच है कि 14 हिंदुओं को बस से उतारकर बाहर करना पाकिस्तान के बहुपरतीक्षित “धर्म आधारित राष्ट्रीय दर्शन” का सबसे स्पष्ट प्रदर्शन है।

यही सत्य स्मैश करता है, यही दिमाग़ में चोट करता है, यही सोचने पर मजबूर करता है कि पाकिस्तान केवल एक देश नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, और विचारधारा का यह पक्ष किसी भी मानव की आस्था और पहचान पर कब्ज़ा करने से पीछे नहीं हटता।

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