लंबे चुनाव अभियान के बाद अब जबकि वोटों की गिनती हो रही है और शुरुआती रुझान बता रहे हैं कि जनता नीतीश रिटर्न पर मुहर लगा चुकी है, तो ये बात तुक्के में नहीं है। इसे आप ऐसे समझिए कि हर गाँव और पंचायत में नीतीश कुमार की सीधी पकड़ रही और उन्होने ऐसे लोग बनाए जिन्हें नीतीश कुमार की वजह से आजीविका और सम्मान दोनों बराबर मिलता रहा।
ये लोग थे, नीतीश कुमार की-
ममता दीदी
विकास मित्र
न्याय मित्र
तालीमी मरकज
शिक्षा सेवक
रात्रि प्रहरी
स्वक्षता ग्राही
स्वक्षता पर्यावेक्षक
पंचायत रोजगार सेवक
पंचायत तकनीकी सेवक
ग्राम कचहरी सचिव
किसान सलाहकार
इनमें सबसे बड़ा रोल उन शिक्षा मित्रों और बाद में उन बीपीएससी शिक्षकों का है जहाँ नीतीश कुमार की सरकार ने ऐतिहासिक नियुक्तियां का प्रावधान करवाया। इसके अलावा ‘जीविका दीदी’ को दस हज़ार देने से पहले उन्हें संगठित और स्वावलंबी बनाने में नीतीश की भूमिका कोई कैसे भूल सकता है।
कोई ये कैसे भूल सकता है कि प्रजापति, शर्मा (बढ़ई), ठाकुर, चंद्रवंशी, चौहान, बिंद, कालवार, नोनिया, साव, साहू, जमादार, विश्वकर्मा जैसे ईबीसी जातियों को संवैधानिक सुरक्षा देकर मुखिया, पंचायत समिति, जिला पार्षद, प्रमुख और मेयर, चेयरमैन जैसे पदों पर नियुक्तियां दी गईं।
इन्हें पंचायत और नगर पंचायत के ज़रिए हर ताक़तवर पदों पर जगह मिली, चाहे वो मांझी हो, चौधरी हो, रविदास हो, पासवान हो या कोई अन्य समाज। जिन समाजों का ऊपर जिक्र किया गया है, उस समाज के लोग खुद्दारी से कहते हैं कि चाहे वो 90 के पहले हो या 90 के बाद उनका अचीवमेंट यहां तक सीमित था कि वे वोट देना ही उपलब्धि समझते थे और नीतीश काल में वो वोट देने की उपलब्धि से आगे जाकर ख़ुद उस राजनीति का हिस्सा बने। आप इसे सामान्य बात समझ सकते हैं लेकिन ये ऐतिहासिक और तारीखी बात है |
कोई ये कैसे भूल सकता है कि जिस बिहार में महिलाओं के लिए नौकरी किसी सपने या मिथ जैसी लगती थी वहाँ नीतीश मॉडल ने बिहार पुलिस से लेकर, शिक्षा, स्वास्थ्य तक में उनकी ऐतिहासिक बहाली की। यही नहीं वृद्धा पेंशन में बढ़ोतरी का क्रेडिट भी उनके खाते में गया। महिलाओं में नीतीश कुमार का खास आकर्षण दिखा, तो ये भी स्वाभाविक ही है- नकद सहायता राशि के अतिरिक्त ग्रेजुएशन पास करने पर लड़कियों को 50,000 रुपये की मदद दी गई। इसी तरह इंटरमीडिएट पास करने वाली छात्राओं को 25 हजार रुपये और 10 वीं की परीक्षा पास करने वाली मेधावी बच्चियों को 10 हजार रुपये की सहायता दी गई। इसने नीतीश कुमार को जाति-वर्ग से परे सर्वमान्य और सर्वस्वीकार्य नेता बना दिया।
राजद का अतीत और भाजपा के वर्तमान नेतृत्व फ़िलहाल बिहार के मतदाताओं का वैसा भरोसा अब तक नहीं हासिल कर सका है, इसलिए बहुत अच्छा प्रदर्शन करने के बाद और तमाम किंतु परंतु के बाद भी नीतीश सिंगल लार्जेस्ट पार्टी मुझे इस चुनाव में दिखते हैं
