गोवा इन्क्विज़िशन औपनिवेशिक इतिहास की सबसे क्रूर घटनाओं में से एक था, जिसमें पुर्तगाली शासकों ने ढाई सौ वर्षों तक हिंदुओं को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया। 1560 से 1812 तक चले इस धार्मिक अत्याचार में हिंदुओं पर जबरन धर्मांतरण, यातनाएँ, सामूहिक हत्याएँ और सांस्कृतिक विनाश थोपे गए। इस अंधेरे दौर में हजारों हिंदुओं की जान गई, लेकिन यह त्रासदी आज भी मुख्यधारा के इतिहास में लगभग भुला दी गई है।
इन्क्विज़िशन की स्थापना और उद्देश्य
1560 में पुर्तगाल के राजा सेबेस्टियन के आदेश पर गोवा इन्क्विज़िशन की स्थापना की गई। पुराने गोवा में वायसराय के महल को “पालासियो दो इन्क्विज़िशन” में बदल दिया गया, जो भय और यातना का केंद्र बन गया। इस संस्था की शक्ति वायसराय से भी अधिक थी और इसका उद्देश्य कैथोलिक धर्म को सख्ती से लागू करना था।
इसके मुख्य निशाने पर हिंदू थे, हालांकि मुसलमानों, यहूदियों और उन ईसाइयों को भी दंडित किया गया जो अपने पुराने धर्म में लौटने के संदेह में थे। जेसुइट पादरियों, विशेषकर फ्रांसिस जेवियर जैसे लोगों ने हिंदू परंपराओं को “शैतानी” बताकर उन्हें समाप्त करने का अभियान चलाया
आरोप, गुप्त मुकदमे और दमन
इन्क्विज़िशन की कार्यप्रणाली अत्यंत भयावह थी। गुप्त शिकायतें, बंद दरवाज़ों के पीछे मुकदमे और लगातार उत्पीड़न आम बात थी। हिंदुओं को मूर्ति रखने, पूजा करने या मृतकों का दाह-संस्कार करने तक के लिए गिरफ्तार किया जाता था—ये सभी अपराध मृत्यु-दंड योग्य थे।
ब्राह्मणों को सबसे पहले निष्कासित किया गया। अप्रैल 1560 में वायसराय डोम कॉन्स्टेंटाइन डी ब्रागांज़ा ने उन्हें पुर्तगाली क्षेत्रों से बाहर निकाल दिया। हजारों मंदिर तोड़ दिए गए और उनकी जगह चर्च बनाए गए। हिंदू त्योहार, विवाह और धार्मिक ग्रंथों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तुलसी का पौधा रखना या जनेऊ धारण करना भी कोड़े या जलाकर मारने का कारण बन सकता था।
अमानवीय यातनाएँ
इन्क्विज़िशन के यातना कक्षों में ऐसे अत्याचार किए जाते थे, जिन्हें देखकर यूरोप के लोग भी सिहर उठते थे। लोगों को रस्सियों से बांधकर ऊपर उठाया और अचानक नीचे गिराया जाता था, जिससे जोड़ उखड़ जाते थे। पानी की यातना में जबरन पानी पिलाया जाता और लोहे की छड़ों पर बैठाकर रीढ़ को कुचला जाता था।
पैरों पर गंधक लगाकर आग पर रखा जाता, जब तक कि पीड़ित “स्वीकारोक्ति” न दे दे। धर्मांतरण से इनकार करने वाली महिलाओं के स्तनों को काट दिया जाता था। पुरुषों के हाथ “हाटकत्रो खंभ” नामक स्तंभ पर काट दिए जाते और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता था, ताकि दूसरों में भय फैले।
































