13 दिसंबर 2001—वह तारीख जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता। आज से 24 वर्ष पहले ठीक इसी दिन देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था- संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े आतंकी संसद भवन के भीतर घुस कर सांसदों और भारत के पूरे तंत्र को अपने कब्जे में लेना चाहते थे। उनका मकसद था भारत की रीढ़ तोड़ना, भारत के स्वाभिमान को खत्म करना।
वो अपने मकसद में कामयाब होने के क़रीब भी थे, लेकिन हमारे बहादुर जवान भारत और आतंकियों के बीच में आ गए।
पास लगी सफेद कार से घुसे आतंकी
सुबह के करीब 11:20 बजे थे। संसद में ताबूत घोटाले को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा चल रहा था। कार्यवाही स्थगित होने के बाद कुछ सांसद बाहर निकल आए, तो वहीं कुछ अन्य अंदर ही चर्चा में लगे हुए थे। इसी बीच संसद मार्ग पर असामान्य हलचल शुरू हो चुकी थी। उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के निकलने की सूचना पर गेट नंबर 11 के सामने उनके काफिले की गाड़ियां तैनात थीं।ठीक उसी वक्त एक सफेद एंबैसडर कार तेज़ी से गेट नंबर 11 पार कर गेट नंबर 12 की ओर बढ़ी।
पुरानी संसद में इस गेट का इस्तेमाल राज्य सभा में प्रवेश के लिए होता था। कार को वाइस प्रेसिडेंट के काफिले की ओर बढ़ता देख सुरक्षाकर्मियों ने उसे रोकने का इशारा किया, लेकिन रुकने की जगह कार की रफ्तार और तेज़ हो गई।
वहां तैनात ASI जीतराम तेजी से कार के पीछे भागे ताकि उसे रुकवा सकें। उन्हें पीछे आते देख चालक ने घबराहट में कार पीछे मोड़ी, लेकिन वो उसे कंट्रोल नहीं कर सका और वो सीधा जाकर उपराष्ट्रपति काफिले की एक गाड़ी से टकरा कर रुक गई।
आतंकियों से अकेले ही भिड़ गए ASI जीतराम
गाड़ी के रुकते ही ASI जीतराम ने चालक को पकड़ लिया। कार के अंदर सेना की वर्दी पहने लोग बैठे थे। जीतराम को संदेह हो गया, उन्होने रिवाल्वर निकाली और चालक की तरफ़ तान दी- लेकिन तभी उसने कार तेजी से गेट नंबर 9 की तरफ़ दौड़ा दी।
वहां तैनात जवान जेपी यादव ने वायरलेस पर अलर्ट जारी कर संसद के अंदर के सभी गेट बंद कराने को कहा। आनन फ़ानन में सदन के भीतर जाने वाले संसद के लकड़ी के भारी भरकम दरवाजे बंद कर दिए गए।
इस बीच एंबैसडर किनारे फुटपाथ पर चढ़कर रुक गई। कार रुकते ही, उसमें सवार पाँचों लोग नीचे उतर आए और बाहर निकल कर तार बिछाने लगे—अब स्पष्ट था के ये सेना के जवान नहीं बल्कि आतंकी हैं।
आतंकियों को देखकर ASI जीतराम ने अपनी पिस्तौल से आतंकियों पर गोली चलानी शुरू कर दी। उनकी गोली एक आतंकी के पैर में लगी और वो घायल हो गया, लेकिन जवाबी फायरिंग में वो भी वीरगति को प्राप्त हो गए।
कमलेश कुमारी निहत्थे ही आतंकियों से भिड़ गईं
इस हमले में CRPF की कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी भी शहीद हो गई थीं। कमलेश की ड्यूटी संसद के गेट नंबर 1 पर थी, जहां वो आने-जाने वालों की चेकिंग का काम देख रही थीं। लेकिन जैसे ही आतंकी अंदर घुसे और गोलीबारी शुरू हुई, उन्होने एक आतंकी को अपने शरीर पर विस्फोटक बांधे देख लिया।
वो गेट नंबर 11 की तरफ बढ़ रहा था, जहां से राज्य सभा में प्रवेश किया जाता है। दुर्भाग्य से उस वक्त महिला सुरक्षाकर्मियों को हथियार नहीं दिए जाते थे, ऐसे में कमलेश कुमारी ने पहले तो अपने सीनियर्स और अन्य सुरक्षाकर्मियों को आतंकियों के बारे में सूचित किया, फिर उस फिदायीन आतंकी की तरफ सुरक्षाकर्मियों का ध्यान खींचने के लिए तेजी से चिल्लाते हुए आतंकियों की तरफ दौड़ीं। उन्हें आगे बढ़ता देख आतंकियों ने उन पर फायरिंग कर दी।उन्हें 11 गोलियां लगीं और उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई।
हालांकि अपना बलिदान देकर भी उन्होने न जाने कितने लोगों की जान बचा ली थी, क्योंकि अगर आतंकी गेट नंबर 11 से अंदर घुसकर खुद को उड़ा लेता तो उस स्थिति की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी।
शहीद कमलेश कुमारी को उनकी वीरता के लिए मरोणपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, जो शांतिकाल में देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।
सदन में मौजूद थे गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी
आतंकियों ने कार को उड़ाने की कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रहे। इसके बाद उन्होने ऑटोमैटिक रायफलों से अंधाधुंध फायरिंग और ग्रेनेड फेंकना शुरू कर दिया। गोलियों और धमाकों की गूँज से संसद परिसर दहल उठा। जवाब में वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभाला और आतंकियों को एंगेज करने के साथ साथ वहां मौजूद सांसदों और मीडियाकर्मियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। उस समय 100 से अधिक सांसद, संसद परिसर में मौजूद थे। गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य वरिष्ठ नेता भी उस वक्त सदन के अंदर मौजूद थे, जिन्हें एक सुरक्षित गोपनीय स्थान पर ले जाया गया।
मुठभेड़ और आतंकियों का अंत
संसद के सभी गेट बंद किए जा चुके थे, फोन लाइनें काट दी गई थीं।
इधर आतंकी गेट नंबर 9 से अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन पर भारी फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में तीन आतंकी वहीं ढेर हो गए। एक आतंकी गेट नंबर 5 तक पहुंच गया, लेकिन उसे भी मार गिराया गया।
पांचवां आतंकी गेट नंबर 1 पर पहुंचा- ये गेट मीडिया एंट्री और सामान्य प्रवेश के लिए था। आतंकी का प्लान था कि वो अंदर घुसकर ख़ुद को उड़ा ले, लेकिन तभी सुरक्षाकर्मियों की एक गोली सीधा उसके शरीर पर बंधे विस्फोटक से लगी और धमाके के साथ उसके चीथड़े उड़ गए।
पांचों आतंकी ढेर हो चुके थे, फिर भी ऐहतियातन पूरे परिसर की सघन तलाशी ली गई।
संसद को बंधक बनाना चाहते थे आतंकी
करीब 30 मिनट चली मुठभेड़ के बाद स्थिति नियंत्रण में आई। एंबैसडर की तलाशी में हथियारों के साथ करीब 30 किलो आरडीएक्स मिला। यानी अगर आतंकी कार को ले जाकर लकड़ी के दरवाज़ों से टकरा देते तो न सिर्फ गेट उड़ जाता, बल्कि आतंकी भी आसानी से अंदर दाखिल हो जाते। उस स्थिति की सिर्फ कल्पना करने से ही सिहरन पैदा हो जाती है।
आतंकियों की कार से खाने-पीने का सामान भी मिला था, इससे स्पष्ट था कि वो सांसदों को बंधक बनाने की तैयारी के साथ आए थे कांधार हाईजैक के बाद उनके इरादे बुलंद थे और इस बार वो सीधा देश के दिल यानी दिल्ली और लोकतंत्र की आत्मा यानी संसद तक पहुँच गए थे।लेकिन 9 वीर सुरक्षाकर्मियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर आतंकियों ही नहीं, उनके आकाओं और पड़ोसी मुल्क के
ना ‘पाक’ इरादे भी नाकाम कर दिए थे।
ये देश हमेशा उन बलिदानी जवानों का कृतज्ञ है, और उन जांबाज़ों को सलाम करता है, जिन्होने लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।





























