प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि दी और 30 दिसंबर 1943 को पोर्ट ब्लेयर में भारतीय तिरंगा फहराने के ऐतिहासिक क्षण को याद किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह घटना हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता केवल आकांक्षा से नहीं मिलती, बल्कि सामर्थ्य, कठिन परिश्रम, न्याय और संगठित संकल्प के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
प्रधानमंत्री ने हिंदी में X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट में इसे अत्यंत साहस और वीरता का उदाहरण बताते हुए कहा,
“आज ही के दिन, 30 दिसंबर 1943 को, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा फहराया। वह क्षण हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल आकांक्षा से नहीं, बल्कि सामर्थ्य, मेहनत, न्याय और संगठित संकल्प से आकार लेती है।”
पोस्ट में संस्कृत में एक श्लोक भी शामिल था:
“सामर्थ्यमूलं स्वातन्त्र्यं श्रममूलं च वैभवम्। न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् सङ्घमूलं महाबलम् ॥”
अर्थ: “स्वतंत्रता की नींव सामर्थ्य पर, वैभव का आधार श्रम पर, सुशासन न्याय पर और महान शक्ति संगठन और एकता पर निर्भर करती है।”
पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा फहराने का ऐतिहासिक महत्व
अज़ाद हिंद फौज (INA) के सर्वोच्च कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर में पहली बार भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया। यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक क्षण थी, जिसने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को पहले मुक्त क्षेत्र के रूप में घोषित किया।
बोस अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेताओं में से एक थे और 1943 में दक्षिण अंडमान जिले का दौरा किया। तिरंगा फहराना उनके उस वादे को पूरा करता था कि भारतीय राष्ट्रीय सेना उस वर्ष के अंत तक भारतीय भूमि पर कदम रखेगी।
संकल्प स्मारक
इस ऐतिहासिक घटना की याद में और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को सम्मानित करने के लिए पोर्ट ब्लेयर में बाद में संकल्प स्मारक का उद्घाटन किया गया। यह स्मारक समर्पण, कर्तव्य और बलिदान का प्रतीक है और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अमर विरासत को दर्शाता है।
नेताजी की वीरता और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सुभाष चंद्र बोस का योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि उन्हें आज भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। उनका साहस, निडर देशभक्ति और आक्रामक रणनीतियों ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया।
बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, ओडिशा में हुआ। भारतीय राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व करने के बाद उनकी ख्याति और बढ़ी। उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई में केवल कूटनीति पर भरोसा नहीं किया, बल्कि सशस्त्र और आक्रामक दृष्टिकोण अपनाया। उनका प्रसिद्ध नारा था: “मुझे खून दो, मैं तुम्हें स्वतंत्रता दूँगा।”
पराक्रम दिवस
2021 में भारत सरकार ने 23 जनवरी को “पराक्रम दिवस” घोषित किया, ताकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर युवाओं में साहस और देशभक्ति की भावना जागृत की जा सके।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कठिन परिस्थितियों में स्वतंत्रता के लिए कई संघर्षों का नेतृत्व किया। उनके साहसिक निर्णयों और आक्रामक रणनीतियों ने उन्हें उनके समकालीन नेताओं से अलग किया। उन्होंने अक्सर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से स्वतंत्रता की रणनीतियों को लेकर मतभेद जताए।
फिर भी, उनका योगदान निस्संदेह है और स्वतंत्र भारत के प्रति उनकी लगन आज भी लाखों लोगों के हृदय में जीवित है।































