अंग्रेज शासन के दौरान कई अधिकारी छोटी-छोटी बातों पर कठोर दंड देकर समाज में भय का वातावरण बनाते थे। इसका उद्देश्य जनता को आतंकित करना और कोलकाता, दिल्ली व लंदन में बैठे उच्च अधिकारियों की नज़रों में अपनी “उपलब्धियाँ” दर्ज कराना था।
महाराष्ट्र के नासिक का जिलाधीश ए. एम. टी. जैक्सन ऐसा ही एक क्रूर अधिकारी था। उसने देशभक्तों का पक्ष लेने वाले वकील सखाराम की जेल में हत्या कराई। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को उनके लेखों के लिए छह वर्ष की सजा दिलवाई और देशप्रेम की कविताएँ लिखने के आरोप में श्री गणेश दामोदर सावरकर को आजीवन कारावास देकर अंडमान भेजा।
इन अत्याचारों से क्षुब्ध क्रांतिकारियों ने जैक्सन को दंडित करने का निर्णय लिया। इस अभियान के लिए सबसे आगे आए युवा क्रांतिवीर अनंत कान्हरे। 1891 में औरंगाबाद के ग्राम आयटीमेटे खेड़ में जन्मे अनंत ‘अभिनव भारत’ के सदस्य थे। उनके आदर्श मदनलाल धींगरा थे, जिन्होंने लंदन में कर्ज़न वायली का वध किया था।
अनंत का साहस अद्भुत था। अपनी अडिगता सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बार जलती चिमनी पर हथेली रखी और दो मिनट तक नहीं हटाई। इसी बीच जैक्सन का तबादला पुणे हो गया। विदाई के अवसर पर 21 दिसम्बर 1909 की रात नासिक के ‘विजयानंद सभा भवन’ में ‘शारदा’ नाटक का आयोजन रखा गया।
क्रांतिकारियों ने इसी सार्वजनिक सभा में जैक्सन को दंड देने की योजना बनाई। अनंत कान्हरे, विनायक नारायण देशपांडे और कृष्ण गोपाल कर्वे ने जिम्मेदारी ली। 21 दिसम्बर की शाम देशपांडे के घर अंतिम तैयारी हुई। लंदन से वीर सावरकर द्वारा भेजी गई और चतुर्भुज अमीन द्वारा लाई गई ब्राउनिंग पिस्तौलें तीनों को सौंपी गईं।
योजना के अनुसार पहला वार अनंत को करना था; असफल होने पर देशपांडे और फिर कर्वे। समय से पहले पहुँचकर तीनों ने अपनी-अपनी जगह संभाल ली। जिस मार्ग से जैक्सन आने वाला था, अनंत वहीं कुर्सी पर बैठ गया।
निश्चित समय पर जैक्सन पहुँचा। स्वागत के दौरान भीड़ बढ़ी। जैसे ही वह आगे बढ़ा, अनंत ने गोली चलाई—पहली चूक गई, दूसरी जैक्सन की बाँह पर लगी और वह गिर पड़ा। गिरते ही अनंत ने पूरी पिस्तौल खाली कर दी। जैक्सन की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई—नासिक की विदाई सभा उसकी जीवन-विदाई बन गई।
भीड़ ने अनंत पर हमला किया; बाद में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया। मुकदमे के बाद 19 अप्रैल 1910 को ठाणे जेल में अनंत कान्हरे, विनायक नारायण देशपांडे और कृष्ण गोपाल कर्वे—तीनों को फाँसी दे दी गई। फाँसी के समय अनंत कान्हरे की आयु मात्र 18 वर्ष थी.
