सन् 1928 का भारत आज़ादी की ज्वाला से जल रहा था। एक ओर देशभक्त भारत माता की परतंत्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए संघर्ष कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार भारतीयों के दमन हेतु कठोर कानून लागू कर रही थी। इसी क्रम में जॉन साइमन के नेतृत्व में साइमन कमीशन का गठन किया गया, जो पूरे भारत में भ्रमण कर रहा था।
साइमन कमीशन का विरोध और लाला लाजपत राय
साइमन कमीशन का देशभर में तीव्र विरोध हुआ। 30 अक्टूबर 1928 को जब साइमन लाहौर पहुँचा, तब पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन पर पुलिस अधीक्षक स्कॉट और उसके साथियों ने बेरहमी से लाठियाँ बरसाईं। लाला जी के सिर पर लगी गहरी चोट के कारण वे गंभीर रूप से घायल हुए और अंततः 17 नवम्बर 1928 को उनका देहांत हो गया।
बदले का संकल्प
लाला लाजपत राय की मृत्यु से क्रांतिकारियों का खून खौल उठा। उन्होंने इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने का निश्चय किया।
निर्णय हुआ कि दोषी अधिकारी को दंड दिया जाएगा। इस कार्य के लिए योजना बनाई गई—
भगत सिंह – मुख्य कार्य
राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और जयगोपाल – सहयोग
सुखदेव – ठहरने और पलायन की व्यवस्था
कार्यवाही की तिथि तय हुई—17 दिसम्बर 1928 की शाम।
योजना और तैनाती
जयगोपाल पुलिस कार्यालय के बाहर साइकिल लेकर ऐसे खड़े हुए मानो साइकिल ठीक कर रहे हों। कुछ दूरी पर भगत सिंह और राजगुरु छात्रों की तरह बातचीत करते खड़े थे। पुलिस कार्यालय के सामने स्थित डी.ए.वी. कॉलेज के फाटक की आड़ में चंद्रशेखर आज़ाद माउज़र लेकर तैनात थे।
सांडर्स वध की घटना
ठीक शाम पाँच बजे, पुलिस अधिकारी जे.पी. सांडर्स कार्यालय से बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा। जयगोपाल ने उसे स्कॉट समझकर संकेत दे दिया। राजगुरु और भगत सिंह ने अपनी पिस्तौल निकाल ली। भगत सिंह चाहते थे कि सांडर्स और पास आए, परंतु राजगुरु ने प्रतीक्षा किए बिना गोली चला दी।गोली लगते ही सांडर्स मोटरसाइकिल सहित गिर पड़ा। भगत सिंह आगे बढ़े और अपनी पिस्तौल की सारी गोलियाँ उस पर दाग दीं, ताकि उसके बचने की कोई संभावना न रहे।
पुलिस से मुठभेड़
गोली की आवाज सुनकर पुलिस अधिकारी मिस्टर फर्न दौड़कर आया। राजगुरु ने उसे पकड़कर जमीन पर पटक दिया। तीन सिपाही पीछा करने लगे। चंद्रशेखर आज़ाद ने उन्हें चेतावनी दी। दो सिपाही लौट गए, पर हवलदार चानन सिंह आगे बढ़ता रहा। आज़ाद ने उसके पैर में गोली मारी, जिससे वह गिर पड़ा।
सफल पलायन और ऐतिहासिक संदेश
कार्यवाही सफल रही। सभी क्रांतिकारी सुरक्षित ठिकानों पर पहुँचे और पुलिस को चकमा देकर लाहौर से बाहर निकल गए। यद्यपि जिस पुलिस अधीक्षक स्कॉट को दंडित करना था, वह बच गया, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत को यह स्पष्ट संदेश मिल गया कि—राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने के लिए भारतीय क्रांतिकारियों की सामर्थ्य और साहस असीम है।
आखिरकर जीत भारत के क्रांतिकारियों की हुई, अंग्रेजों को उनकी अवकात पता चल गई….भारतीय सैनिकों ने अपने देश की सुरक्षा की.





























