दुर्लभ मृदा तत्व आधुनिक सभ्यता की नींव हैं, लेकिन आम लोगों की नजरों से लगभग ओझल रहते हैं। विज्ञान और उद्योग से बाहर बहुत कम लोग इनके बारे में जानते हैं, जबकि इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियाँ, उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स और सैन्य तकनीक इन्हीं पर निर्भर करती हैं। इनका महत्व इस कारण नहीं है कि ये प्रकृति में बहुत दुर्लभ हैं, बल्कि इसलिए है क्योंकि इन्हें आधुनिक तकनीक की माँग के अनुसार शुद्ध रूप में निकालना और उपयोग करना बेहद कठिन है।
दुर्लभ मृदा तत्व क्या हैं?
रसायन विज्ञान में दुर्लभ मृदा तत्व कुल 17 धात्विक तत्वों का समूह हैं। इनमें 15 लैन्थेनाइड तत्व (लैंथेनम से लेकर ल्यूटेटियम तक) और इनके साथ स्कैंडियम तथा यिट्रियम शामिल हैं।
आवर्त सारणी में लैन्थेनाइड तत्वों को मुख्य सारणी के नीचे अलग पंक्ति में दिखाया जाता है, जबकि स्कैंडियम और यिट्रियम तीसरे समूह में पाए जाते हैं। ऐसा उनके विशेष इलेक्ट्रॉनिक ढाँचे और रासायनिक व्यवहार के कारण है।
“दुर्लभ मृदा” नाम तब पड़ा जब ये तत्व पहली बार ऑक्साइड पाउडर (जिन्हें पहले “अर्थ” कहा जाता था) के रूप में खोजे गए। इन्हें अलग करना बहुत कठिन था, इसलिए इन्हें दुर्लभ माना गया। वास्तव में, इनमें से कई तत्व सोने से भी अधिक मात्रा में पृथ्वी की परत में पाए जाते हैं।
दुर्लभ मृदा तत्व क्यों महत्वपूर्ण हैं?
इन तत्वों का रणनीतिक महत्व उनकी विशेष चुंबकीय, विद्युत और प्रकाशीय विशेषताओं के कारण है। इनका उपयोग
स्थायी चुंबक
इलेक्ट्रिक मोटर और जनरेटर
उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट)
प्रकाश और डिस्प्ले प्रणालियाँ
उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों
में होता है।
इनका सबसे अहम उपयोग नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन चुंबकों में है, जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली स्थायी चुंबक हैं। इलेक्ट्रिक वाहन, पवनचक्कियाँ और आधुनिक मशीनें इन्हीं पर निर्भर हैं। कई मामलों में इनका कोई प्रभावी विकल्प नहीं है; इनके बिना उपकरण भारी, कम दक्ष और कम भरोसेमंद हो जाते हैं।
चुंबकीय और प्रकाशीय विशेषता
दुर्लभ मृदा तत्वों की चुंबकीय शक्ति उनके परमाणुओं के भीतर मौजूद 4f इलेक्ट्रॉनों से आती है। ये इलेक्ट्रॉन मजबूत चुंबकीय गुण रखते हैं और लंबे समय तक स्थिर रहते हैं।
इसी तरह, यूरोपियम और टरबियम जैसे तत्व प्रकाश तकनीक में उपयोग होते हैं। इनके कारण LED, टीवी स्क्रीन, लेज़र और ऑप्टिकल संचार प्रणालियाँ चमकदार, सटीक और टिकाऊ बनती हैं।
असली समस्या खनन नहीं, शोधन है
दुर्लभ मृदा तत्व आम तौर पर पृथ्वी में फैले होते हैं, लेकिन एक जगह अधिक मात्रा में नहीं मिलते। इन्हें निकालने के बाद सबसे कठिन काम होता है अलग-अलग तत्वों को एक-दूसरे से अलग करना। चूँकि इनके रासायनिक गुण बहुत समान होते हैं, इसलिए यह प्रक्रिया महँगी, जटिल और पर्यावरण-संवेदनशील होती है।
चीन का वर्चस्व
हालाँकि दुर्लभ मृदा भंडार कई देशों—जैसे भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्राज़ील और रूस—में मौजूद हैं, फिर भी चीन का दबदबा सबसे अधिक है। इसका कारण खनन नहीं, बल्कि शोधन, पृथक्करण और चुंबक निर्माण पर उसका नियंत्रण है। दुनिया के लगभग 90% से अधिक दुर्लभ मृदा शोधन और चुंबक उत्पादन पर चीन का प्रभुत्व है।
रणनीतिक सच्चाई
दुर्लभ मृदा तत्व स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा प्रणालियों की रीढ़ हैं। इसलिए आज देश केवल नई खदानें खोलने पर नहीं, बल्कि शोधन और प्रसंस्करण क्षमता विकसित करने पर ध्यान दे रहे हैं।
आज की दुनिया में दुर्लभ मृदा तत्वों पर नियंत्रण केवल औद्योगिक लाभ नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक शक्ति का स्रोत बन चुका है।
































