बीजेपी के स्टार प्रचारक एक बार फिर से फॉर्म में आ गए हैं!
भारतीय राजनीति में ऐसा कभी नहीं हुआ होगा जब सत्ताधारी पार्टी, विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के प्रचार करने के लिए इतने आतुर होते हैं जितने उस विपक्षी पार्टी के नेता के साथी नहीं करते होंगे। जी...
भारतीय राजनीति में ऐसा कभी नहीं हुआ होगा जब सत्ताधारी पार्टी, विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के प्रचार करने के लिए इतने आतुर होते हैं जितने उस विपक्षी पार्टी के नेता के साथी नहीं करते होंगे। जी...
अब धरती लगी फटने तो खैरात लगी बंटने, इस कथन के एक एक शब्द आम आदमी पार्टी पर सटीक बैठते हैं। अब पंजाब में जीतने के बाद जब लग रहा है कि राज्य चलाएंगे कैसे क्योंकि वादे...
भारतीय राजनीति के लिए यह बेहद दुखद है कि सरकारी संपत्ति को अपनी बपौती और पूरे देश को अपनी निजी संपत्ति समझा गया। इसकी रीत स्वयं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने कार्यकाल से ही...
एजेंडा कहाँ नहीं है? राजनीति से लेकर कलाकृति तक इसकी जड़ें चहुओर फ़ैल चुकी हैं। ऐसी ही एजेंडाधारी तुच्छ और सूक्ष्म सोच रखने वाली अनुपमा चोपड़ा अपने फिल्म रिव्यू प्लेटफॉर्म "फिल्म कंपेनियन" के साथ अपनी ओछी रिव्यू...
दूसरों को उपदेश देना जितना सरल है उससे अधिक कठिन है उसे अपने स्तर पर अमल में लाना। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद भी वही संस्था है जो ज्ञान देती है पर उसी ज्ञान को खुद के लिए...
चाटुकारिता की सीमा होती तो समाजवादी पार्टी के नेता कहाँ जाते, क्योंकि उनके सारे लक्ष्यों की प्राप्ति अखिलेश यादव को दंडवत करते शुरू होती है और वहीं खत्म भी होती है। इसी बीच चापलूसी की सीमा पार...
कागज़ तो दिखाने पड़ेंगे से लेकर बोरिया बिस्तर बांध लो, वी हैव कम आ लॉन्ग वे। मज़ाक से इतर यह बात बेहद संजीदा और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सरोकार देश की सुरक्षा, संसाधनों पर अधिकार और जमीन...
ज्ञान बहादुर बन दूसरों को ज्ञान देना पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है। आदत से मजबूर पाकिस्तान ने इस बार फिर उसी रीति-नीति पर चलते हुए भारत और पाकिस्तान के बंद पड़े क्रिकेट मैचों को पुनः चालू...
वर्ष 2014 के बाद से चुनाव जीतने की मशीनरी जैसी संज्ञाओं से सुशोभित हो चुकी भाजपा राज्यों में अब सत्ता प्राप्ति के लिए एक ही दांव चलने की जुगत में है, जिससे उसे हाल ही के 4...
किसी ने सही ही कहा है, “मुझे उस व्यक्ति से भय नहीं जिसने दस हज़ार दांव सीखे हों, मुझे उस व्यक्ति से भय है जिसने एक दांव पर दस हजार बार अभ्यास किया हो!” कूटनीति के परिप्रेक्ष्य...
युवा हाथ का साथ अब छोड़ सब परदेसी हो रहे हैं, ऐसी युवा शक्ति का क्या ही अर्थ जो अपने ही युवाओं को न संभाल पाए। कांग्रेस पार्टी वैसे भी अपने बुरे दौर से उबर नहीं पा...
उन वामपंथियों और कट्टरपंथियों के घर का चूल्हा भला कैसे जले जो बीते 7 वर्षों से बेरोजगार हुए पड़े हैं, आज उसका सर्वसाधारण उपाय बन चुका है हिन्दू धर्म और उसके अनुयायियों के आराध्यों के प्रति कुंठा...
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