मिलावट की माया
ज़ालिम ज़माने की मार से तंग आकर दिनोंदिन बढती महंगाई से घबरा कर हमने आत्महत्या की सोची फिर सोचा - ज़िन्दगी भूख में कटी है, अब भूखे क्यों मरें जब मरना ही है तो कुछ खाकर क्यों न मरें ...
ज़ालिम ज़माने की मार से तंग आकर दिनोंदिन बढती महंगाई से घबरा कर हमने आत्महत्या की सोची फिर सोचा - ज़िन्दगी भूख में कटी है, अब भूखे क्यों मरें जब मरना ही है तो कुछ खाकर क्यों न मरें ...
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