मिलिए देश के ‘सबसे घटिया’ वित्त मंत्रियों से
आचार्य चाणक्य ने स्पष्ट लिखा था, "सर्वाश्च सम्पद: सर्वोपाये परिग्रहेत्”, अर्थात एक कुशल राजा का दायित्व है कि वह सभी प्रकार से अर्थात अपनी बुद्धिकौशल से सभी प्रकार की संपत्तियां प्रजा हेतु ग्रहण करे। ऐसे ही नीतियों के बल ...