कल नयी दिल्ली में 4 दिवसीय विश्व सूफी मंच की शुरुआत हुई । प्रधानमंत्री ने भी विश्व सूफी मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और उसी गलती करने वालो की फेहरिस्त में भी अपना नाम दर्ज करवाया जो सच नहीं अपना पाते । मोदीजी ने अल्लाह के 99 नाम गिनाये, इस्लाम की अच्छाइयाँ गिनाई, 1 के बाद 1 सूफी संतो की कहीं हुई बाते बताई । क्या बूल्लै शाह और क्या खुसरो, सबका ज़िक्र किया मोदीजी ने । यह तरीफे काबिल भी हैं । लेकिन समस्या यह नहीं हैं की किसने क्या कहा हैं, समस्या यह हैं की किसने कितना सुना हैं । जिसे इस्लाम में मौजूद शान्ति और सद्भाव में विश्वास हैं उसने आमिर खुसरो और रूमी को उसी अंदाज़ में सुना जैसा की मोदीजी ने कल बताया, लेकिन बहुत ऐसे भी हैं जिन्होंने इन सबको सुना लेकिन दिल के कही किसी कोने में अरसे से संजोया हुआ ग़ज़वा ए हिन्द का ख्वाब बदस्तूर ज़िंदा कर रखा हैं ।
इसी विश्व सूफी मंच में जिसमें कल भारत माता के जयकारे लगे उसमें 1 जनाब मुझे दिखे वह थे पकिस्तान के कनाडा से वापिस आये मौलाना ताहिर उल कादरी साहब । पूरा यूट्यूब इनके ग़ज़वा ए हिन्द को साकार करते हुए उपदेशो से पटा पड़ा हैं ।1 वीडियो हैं जिसमें मौलाना साहब ने ज़िक्र किया हैं की आखरी फतह के बाद हिन्दुस्तान के बादशाह को बेडियो में बाँध कर सड़क पर घुमाया जायेगा कुछ उसी अंदाज़ में जिसमें गुरु तेग बहादुर को शाहजहाँ ने और औरंगज़ेब ने अपने भाई दारा को घुमाया था । अब हिन्दुस्तां में बादशाहत तो रही नहीं तो सीधी सी बात हैं की जो घुमाया जायेगा वह मुल्क का वज़ीर ए आज़म यानि की प्रधानमन्त्री ही होगा । कल तो वह हाथ भर की दुरी पर था, लेकिन मौलाना साहब अपने सपने को अंजाम न दे सके । वजह न मौका था, न दस्तूर था ।
जब ऐसा था, तो यहाँ भारत माता के जयकारे लगाने आये थे । यह भी नहीं ही मानते क्योंकि ग़ज़वा ए हिन्द का फरमान कही और से नहीं आया हैं । तो फिर क्या वजह थी की मौलाना साहब यहाँ थे??
वजह इन 6 में से कोई 1 हो सकती हैं :
- तकिया : इस्लाम के प्रचार के लिए किया गया छल।
- तौरीया : अस्पष्टता द्वारा किया गया छल ।
- कितमान : चूक द्वारा छल ।
- मुरुना : शरिया का अस्थायी निलंबन ।
- तैसिर: सुगमता द्वारा किया गया छल ।
6 . दरूरा : ज़रुरत के लिये किया गया छल ।
तो अब सोचे की जो भी इस विश्व सूफी मंच पे हो रहा हैं वह इनमें से क्या हैं??
इस्लाम का प्रचार जैसे की सूफियों ने किया,बदस्तूर हुआ । मौलाना ताहिर उल कादरी ने अपने ग़ज़वा ए हिन्द के सपनो को लगाम दी और दिखाने का प्रयास किया की वह भारत माता की जय कहने से नहीं हिचकते । तैसिर भी थी क्योंकि मोदी साहब जोकि उनको फूटी आँख नहीं सुहाते उनके साथ मंच साझा कर रहे थे ।
अब जो सूफी सिलसिलों के दौरान होता था वह कितमान,तकिया से कितना अलग था ? ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने पृथ्वीराज चौहान के सामंत राय पिथौरा को इस्लाम कबूल करवाने में असमर्थ रहने पे चिश्ती साहब मुहम्मद ग़ोरी को हिन्द पे चढ़ाई का न्योता दे आये । उसके बाद जो हुआ उसका गवाह तरैन का मैदान और पृथ्वीराज चौहान के बाद शुरू हुए इस्लामिक राज में हिन्दुओ के दोयम दर्जे की ज़िन्दगी हैं । जज़िया चूका कर धिम्मी बन कर रहना हो सकता हो रोमिला थापर,इरफ़ान हबीब जैसो के लिए सहिष्णुता होगी पर किसी भी गैरतपरस्त इंसान के लिए नहीं हो सकती ।
ऐसे ही 1 सूफी संत हैं उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में सालार ग़ाज़ी के नाम से जिनके सालाना उर्स में करोडो का चढ़ावा चढ़ जाता हैं । यह वही सालार ग़ाज़ी हैं जोकि मेहमूद ग़ज़नवी के भतीजे थे और जिन्हें महाराज सुहेलदेव पासी ने बहराइच की जंग में जन्नत रवाना कर दिया था । आज आलम यह हैं की उनके किले को कोई पूछने वाला नहीं हैं लेकिन सालार मसूद ग़ाज़ी की मज़ार जोकि फिरोज शाह तुग़लक़ ने बनवायी थी वह मेला लगता हैं ।
अगला नंबर आमिर खुसरो का और हिन्दुओ को लेकर आमिर खुसरो अपनी पुस्तक नूह सिफिर में लिखते हैं की ,” पुरे हिन्द की ज़मीन,ग़ज़ियो की तलवार के साये में 1 नंगे जंगल मैं तब्दील हो चुकी हैं,शिर्क का धुँआ मिट चूका हैं । हिन्दुओ मैं सबसे मज़बूत भी आज नज़राना देता हैं । इस्लाम का इकबाल बुलंद हैं, बुतपरस्ती दब चुकी हैं । कानून अगर जज़िया की इजाज़त न देता तो आज हिन्द और हिन्दुओ का नामोनिशां मिट चूका होता “।
ऐसा कहते हैं की जो तारिख(इतिहास) को मस्ख कर देता हैं, तारिख उसको मस्ख कर देता हैं । हर बार जब आप किसी पीर,फ़क़ीर,दरवेश की मज़ार पर चादर-फूल चढ़ाते हैं तो आप हर उस शहीद हिन्दू की कुर्बानी ज़ाया कर रहे हैं जो अपने धर्म की आन-बान और शान के लिए विदेशी अक्रान्ताओ से लड़ बैठा । चाहे पर्शिया हो,या मेसोपोटामिया हो,पहले आक्रमण के 20 साल के भीतर ही वहा की मूल सभ्यताओ का नाश हो गया, ग़ज़वा ए हिन्द के नापाक मंसूबे पिछले 1400 साल से अधूरे ही रहे हैं । इसकी वजह का विश्लेषण खुद करे, 33 कोटि देवी देवता हैं, आपके पास, सभी कोई न कोई डिपार्टमेंट देखता ही हैं, आज़मा ले ।
जितना फ्रॉड कोई बाबा हैं उतना ही फ्रॉड पीर,फ़क़ीर,दरवेश,सूफी थे । सूफी संप्रदाय के अनुसार कुरान शरीफ की हर आयत के 6 मतलब हो सकते हैं । सवाल हैं की सिर्फ 6 ही क्यों,7,8 या 600 क्यों नहीं । इसका कोई जवाब नहीं हैं ।जिसको अपनी किताब का नहीं पता वह आपकी परेशानी क्या हल करेगा जनाब । इसलिए खुद को बेआबरू करना बंद कीजिये और अपनी संस्कृति की रक्षा कीजिये । यह किसी सांस्कृतिक उपनिवेशवाद से कम नहीं ।