Kohinoor: भारत सरकार ने अपने हलफनामे में कोहिनूर को ब्रितानिया हुकूमत को बतौर तोहफा दिए जाने का ज़िक्र क्या किया, सभी सेक्युलर जमात वालो को अपनी भारतीय अस्मिता का एहसास हो उठा, जिसका ह्रास अंग्रेज़ो ने किया था।
पिछले साठ साल से जैसे हम अंग्रेज़ो से कोहिनूर हासिल करने के लिए अदालत में मुक़द्दमा लड़ रहे थे और जैसे अंग्रेज़ो से पैसा खाकर मोदी सरकार ने पलटी मार दी।
A brief History of Kohinoor
कोहिनूर को हमेशा से लूट के माल ए गनीमत के तौर पे ही सबने बाटा। कोहिनूर को काकतियो से ख़िलजी का आशिक़ मालिक काफूर लूट कर दिल्ली ले गया, वह से यह मुग़ल राजाओ के हत्थे चढ़ा, जब नादिर शाह ने 1739 में दिल्ली लूटी तो उसे अपने साथ ईरान ले गया। वहा से ये उसके सिपहसालार और बर्बर लुटेरे अहमद शाह अब्दाली के हाथ आया। अब्दाली की सल्तनत उसके कमज़ोर पोते से न सम्भली। उदीयमान सिख शक्ति के झंडाबरदार महाराजा रणजीत सिंह जी को अब्दाली के पोते शाह शुजा से बतौर तोहफे काबुल के तख़्त पे गद्दीनशीन होने के लिये उनके समर्थन के लिए दिया। 1813 से 1849 तक यानि की द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध के पश्चात से लन्दन चला गया बतौर लाहौर की संधि के तहत। 1850 में 1 बार इंग्लैंड की जनता के दबाव में जोकि कोहिनूर से संभन्दित अन्धविश्वास से सहमी थी की कोहिनूर जिस भी शक्ति के पास गया वह तबाह हो गयी लेकिन 1853 से वापस ब्रितानिया हुकूमत के पास गया। 1953 में इसे शाही ताज में वर्तमान स्वरुप में जगह मिली जब साम्राज्ञी के तौर पे एलिज़ाबेथ द्वितीय की ताजपोशी हुई।
What is so special about Kohinoor?
कोहिनूर पे ही यह ख़ास इनायत क्यों की सिर्फ उसे ही वापस लाया जाए। कोहिनूर के साथ साथ उसके बड़े भाई दरिया-ए-नूर को भी लाया जाना चाहिए। पर उसके ज़िक्र पर सभी को साँप सूंघ जायेगा क्योंकि दरिया-ए-नूर किसी ब्रितानिया हुकूमत के पास नहीं बल्कि ईरान के केंद्रीय बैंक की मिलिकयत हैं। यह ईरान के तात्कालिक शाही मुकुट का हिस्सा हैं। इसी में 1और लूट का माल सामरिया स्पाइनल भी शामिल हैं जोकि इसी शाही मुकुट का हिस्सा हैं। तो प्रश्न यह हैं की सिर्फ कोहिनूर को क्यों वापस माँगा जाए।भारतीय अस्मिता सिर्फ 1 हीरे पे क्यों टिके जब कम से कम वह औपचारिक तौर पे तोहफे के तौर पे दिया गया। यह दोनों तो अभी भी किसी को तोहफे में नहीं दी गयी , ईरान से बाहर नहीं गयी, और लूटी भी ईरानियों ने। पर इसकी मांग कभी नहीं उठनी, कभी नहीं। सेकुलरिज्म पे आंच आएगी तो सो आएगी ही पर यह लाल बिंदी, झोला छाप ब्रिगेड ने शायद ही इन पत्थरों ले बारे में सुना होगा। बात यही खत्म हो जाती तो भीं ठीख ही था, अरे नादिर शाह तो अपने साथ हिंद के मुग़लिया बादशाह का तख़्त भी अपने साथ ले गया था। उसे लाने के रोना धोना क्यों नहीं, वजह उसके कुछ टुकड़े तुर्की उत्तमान खलीफा के तख्त का हिस्सा बन गए। अकबर शाह हीरा, शाह हीरा, तैमूर रूबी सब नादिर शाह ले गया या अब्दाली ले गया लेकिन उन्हें लाने के लिए कवायद शुरू करने के लिए बोले तो बोले कैसे? शाह हीरा तो रूसि संसद क्रेमलिन की शोभा बढ़ा रहा हैं और रूस तो भारतीय वामपंथ का अघोषित पिता तुल्य हैं। उनसे भला कैसे कभी कुछ भी मांग सकते हैं?
There are more pressing issues than Kohinoor
इस ब्रिगेड को इस बात का दुःख नहीं की नादिर शाह,अब्दाली जैसे आक्रांताओ ने कितनी औरतो को अपना जरखरीद बनाया, कितने बच्चों को काटा और कितनो बेच दिया, इनको कुछ याद आया तो हीरा वह भी तब जब सरकार ने हलफनामे पे उसकी मांग को गैरवाजिब कहा।
Those yacking about Kohinoor, what about the stolen statues?
बीते वक़्त में भारत से बाहर जा चुकी कई मूर्तियां मोदी शासनकाल में वापस आई, जिसमें की हाल ही में दसवी शताब्दी में चोरी हुई दुर्गा मूर्ती को जर्मनी द्वारा वापस किया जाना उल्लेखनीय हैं। इसकी कीमत कुछ 15 लाख डॉलर के आस पास थी। इस मूर्ती की Stuttgart के संग्रहालय से वापसी के लिए कवायद मोदी काल में ही शुरू हुई। अगस्त 2014 से, भारतीय पुरातत्व विभाग ने जर्मनी के समकक्ष विभाग से कश्मीर से चोरी हुई इन मूर्तियों की वापसी के लिये प्रयास शुरू किये और नतीजे हमारे सामने हैं। कुछ ऐसी ही वापसी ऑस्ट्रेलिया से 2 मूर्तियो की हुई जोकि ग्यारहवीं शताब्दी की थी और चोरी हो चुकी थी। यह दोनों मूर्तियां तमिल नाडु से चोरी हुई थी और चोल कालीन थी।
लेकिन भारतीय वामपंथ को इससे क्या करना, मजे की बात यह भी हैं की बात के तार्किक पक्ष को कोई नहीं देख रहा और चुनिंदा भर्त्सना करे जा रहे हैं क्योंकि वही करना आसान हैं। मांग करो तो सबकी करो नहीं तो चुप रहो, हर लकीर को 1 ही पटरे से नापे,जीवन सुगम और सरल रहता हैं।
http://www.thehindu.com/news/national/gifted-to-britain/article8489902.ece