बड़े- बुजुर्ग कह गए हैं कि एक आदर्श परिवार वही होता है जिसके सदस्य स्वयं का स्वार्थ त्याग करके परिवार में आपसी सदभाव को बनाये रखतें हैं, अगर सदस्यों पे स्वार्थ हावी हो गया तो परिवार में मतभेद और कलह बढ़ना तय है। यह बात उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार पे एकदम सटीक बैठती है क्योंकि आजकल इस परिवार में घमासान मचा हुआ है। वैसे तो ‘चाचा-भतीजे’ की दोस्ती के कई किस्से सुने हैं मैंने मगर तनातनी का यह किस्सा शायद पहली बार सुनने को मिल रहा है। अभी तक तो आप समझ ही गए होंगे कि यहाँ बात उस परिवार की हो रही है जिसने राजनीति को अपना “फैमली बिज़नेस” बना लिया है, परिवारवाद की सबसे बड़ी मिसाल ‘समाजवादी पार्टी’। वैसे तो इस परिवार में मन-मुटाव की छोटी-मोटी कहानियां आये दिन सुनने को मिल जाती हैं लेकिन इस बार मसला थोड़ा गंभीर है। एक बार फिर इस परिवार के मतभेद यूपी के राजनितिक गलियारों से निकलकर नुक्कड़ की चाय दुकानों पर पहुँच गए हैं और पुरे प्रदेश में चर्चा का मुद्दा बन गए हैं। आइये जानते हैं समझते हैं पूरा मामला और इसके हर पहलु का बारीकी से विश्लेषण भी करते हैं।
दरअसल शिवपाल के पास शिकायत आई थी कि मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव के आदमी मैनपुरी में गरीबों की जमीन हड़प रहे थे। शिवपाल ने इसपर संज्ञान लिया और जिला प्रशासन से करवाई का अनुरोध किया। शिवपाल यादव के अनुरोध के बावजूद जिला प्रशासन ने कोई करवाई नहीं की, कौमी एकता दल के सपा से विलय को लेकर ‘चाचा-भतीजा’ में पहले से ही खीच-तान चल रही थी और तभी उनके अनुरोध को इस तरह से अनदेखा किया जाना शिवपाल को बेहद नागवार गुजरा। इस पुरे प्रकरण से शिवपाल यादव इतने नाराज हुए कि बीते रविवार को मैनपुरी के एक कार्यक्रम में उन्होंने यह बयान दे दिया की पार्टी और सरकार में उनकी बात नहीं सुनी जा रही है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो वे मजबूर हो कर इस्तीफा दे देंगे। जाहिर सी बात है की इस बयान पे बवाल मचना ही था परन्तु इससे पहले की बात और बढ़ती सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव डैमेज कण्ट्रोल करने हेतु बीच में आ गए। सोमवार को सपा कार्यालय में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने अखिलेश यादव को खूब खरी-खोटी सुनाई, उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मेहनत नहीं करते हैं, उनके मंत्री बोझ हैं, भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। मुलायम सिंह ने यहाँ तक कहा की कुछ लोग शिवपाल के पीछे पड़े हैं अगर शिवपाल पार्टी छोड़ के गए तो पार्टी को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा। जब मुलायम ये बयान दे रहे थे तो वहां अखिलेश स्वयं मौजूद थे और सभी बातें सुन रहे थे मगर उन्होंने किसी भी बात का जवाब नहीं दिया।
इस पुरे प्रकरण में किसी भी निष्कर्ष पे जाने से पहले विवाद के दो प्रमुख कारण यानि मुख़्तार अंसारी और रामगोपाल यादव की भूमिका का भी विश्लेषण अनिवार्य हो जाता है तभी हम पुरे मतभेद को अच्छे से समझ पाएंगे। तो आइये इनके विषय में भी जान लेते हैं-
- मुख़्तार अंसारी-
मुख़्तार अंसारी को आमजन का विलेन और राजनीति का हीरो भी कहा जा सकता है, फ़िल्मी हीरो नहीं चुनावी समीकरण वाला हीरो। कौमी एकता दल के सर्वे-सर्वा मुख़्तार अपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता हैं, गाजीपुर जिले में इनकी अच्छी पैठ है और इनकी पार्टी कौमी एकता दल की बनारस, गाजीपुर, बलिया, मऊ और बिहार के बक्सर जिले में ‘अंसारी’ मुसलमानों पे अच्छी पकड़ है। मुख़्तार अंसारी भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और अन्य मामलों में अभी सलाखों के पीछे है। पार्टी का काम-काज उसके भाई अफजाल और सिबगतुल्ला संभालते हैं। चुनाव नजदीक हैं और यादव व मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाली सपा को बसपा ने लगभग सौ सीटों पे मुसलमानों को टिकट बाँट कर कड़ी चुनौती दी है। बसपा को जवाब देने के लिए शिवपाल ने अंसारी बंधुओं को विलय के लिए मना लिया था और विलय की तैयारियां भी शुरू हो चुकी थी।
ऐन वक्त पे अखिलेश ने इस विलय पर ग्रहण लगा दिया क्योंकि इससे उनकी ‘विकासवादी’ छवि को नुकसान पहुंच रहा था। उन्हें इस बात का भी डर था कि बीजेपी इस मुद्दे पे सपा को घेर लेगी। यह बात शिवपाल और अंसारी बंधुओं दोनों का नगावार गुजरी थीं। शिवपाल की नराजगी की शुरुआत यहीं से हुई थी और उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
- रामगोपाल यादव-रामगोपाल यादव मुलायम और शिवपाल के चचेरे भाई हैं और हालिया विवाद की शुरुआत इन्हीं के आदमियों के कारण हुई थी। असल में रामगोपाल पे निशाना साधना शिवपाल की चाल थी, यहाँ उन्होंने उंगली तो रामगोपाल पे उठाई मगर असली निशाना अखिलेश ही थे। मेरी इस बात को इसलिए भी ठोस आधार मिलता है क्योंकि जमीनों पर अवैध कब्जा करने वालों का सबसे ज्यादा शह शिवपाल ने ही दे रखी है, मथुरा में रामवृक्ष यादव को भी उनका ही संरक्षण प्राप्त है ऐसी चर्चा समय-समय पर उठती ही रहती है। अब सवाल उठता है कि जब शिवपाल का पार्टी में इतना दबदबा है तो वे इस तरह के कदम क्यों उठा रहें हैं? दरअसल, शिवपाल इस बात के लिए जमीन तैयार करने में लगे हैं कि अगर पार्टी हारती है तो सारी जिम्मेदारी अखिलेश यादव के ऊपर आ गिरें।
बहरहाल अगर देखा जाये तो यह सब महज एक नौटंकी भी प्रतीत होता है।
मेरा मानना है कि ये सब आपसी सहमती से हो रहा है, एक तरफ अखिलेश पार्टी की कार्यप्रणाली की आलोचना करके अपनी ‘विकासवादी’ छवि को मजबूती प्रदान कर रहें हैं और मुलायम और शिवपाल सरकार की आलोचना करके पार्टी को मजबूत कर रहें हैं।
लेकिन वो लोग जिन बातों पर सवाल उठा रहें हैं उनसे जनता भली-भाँति परिचित है और ऐसे में उन्हें कोई खास लाभ मिलने की उम्मीद मुझे नजर नहीं आती।