जब अपने ही लोग आप के विरूद्ध हो जाएँ तो आप वचनों द्वारा अपनी सफाई पेश कर उनका समर्थन वापिस हाँसिल नहीं कर सकते। उसका सबसे अच्छा तरीका है अपने कर्मों द्वारा जवाब देना। कुछ बातें ऐसी होती हैं कि आप उन्हें समझा तो नहीं सकते पर कर के दिखा सकते है। ऐसा ही कुछ कल भारत के गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कर दिखाया है।
राजनाथ सिंह सातवें SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) सम्मलेन में भाग लेने के लिए इस्लामाबाद, पाकिस्तान में थे, जहाँ पश्चिमी एशिया के 8 देशों ने भी भाग लिया।
राजनाथ सिंह पहली बार पाकिस्तान में थे। यह दौरा इसलिए भी ख़ास हो जाता है क्योंकि पठानकोट पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के बाद वे पहले भारतीय राजनेता हैं जो पाकिस्तान गए हैं।
कश्मीर में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से पैदा हुए तनाव में लगभग 50 लोगो की जान चली गई है। जहाँ भारत कश्मीर में स्थितियां सामान्य करने के लिए अथक परिश्रम कर रहा था वहीँ पाकिस्तानी सदर का बयान आता है कि बुरहान वानी एक शहीद था। ऐसी परिस्थितियों में आश्चर्य नहीं कि उनका यह दौरा तनावों से भरा रहा। इस्लामाबाद, जहाँ यह क्षेत्रीय देशों की बहुपक्षीय बैठक होनी थी वहां राजनाथ सिंह के विरोध प्रदर्शन के लिए पाकिस्तान की सरकार ने हुर्रियत कांफ्रेंस, हिजबुल मुजाहिद्दीन, यूनाइटेड जिहाद कांउंसिल और अन्य ऐसे समूहों को पूर्ण आज़ादी दी हुई थी। वहीँ यासीन मालिक की पत्नी ने लाहौर में विरोध प्रदर्शन किया।
हालाँकि ऐसा कोई लिखित रिवाज तो नहीं है कि जब कोई गृहमंत्री बहुपक्षीय बैठक के लिए आएँगे तो उनके स्वागत के लिए पाकिस्तानी समकक्ष नेता वहां उपस्थित होंगे। परन्तु 2010 में जब चिदम्बरम इस्लामाबाद में SAARC सम्मलेन में भाग लेने गए थे तब उनका स्वागत करने के लिए हवाईअड्डे पर तब के पाकिस्तानी गृहमंत्री अब्दुल रहमान मलिक मौजूद थे। इसबार ऐसा कुछ नहीं हुआ। जब राजनाथ सिंह अपने पाकिस्तानी समकक्ष नेता चौधरी नासिर अली खान से सम्मेलन स्थान पर मिले तो दोनों ने ढंग से हाथ तक नहीं मिलाया। नासिर अली खान ने सम्मलेन में आये महमानों के लिए दोपहर के खाने का प्रबंध किया हुआ था जिसमे राजनाथ सिंह ने शिरकत नहीं की। अब ऐसे तनावपूर्ण माहौल में द्विपक्षीय वार्ता तो होनी ही कहाँ थी सो नहीं हुई।
अपने वक्तव्य में भी राजनाथ सिंह ने रही सही कसर पूरी करते हुए पाकिस्तान को कड़े शब्दों में चेताया कि “आतंकवादियों का शहीदों की तरह से स्तुतिगान नहीं होना चाहिए। क्योंकि अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद जैसा कोई विभाजन नहीं है। एक देश का आतंकवादी दुसरे देश के लिए शहीद नहीं होना चाहिए।”
जो राजनाथ सिंह कल तक तथाकथित राष्ट्रवादियों के क्रोध का कारण बने हुए थे वे पाकिस्तान में दिखाए अपने दबंग अवतार के लिए आज तारीफ़ पा रहे हैं। राष्ट्रवादी सोच रहें हैं कि जो राज नाथ सिंह भारत में जालीदार टोपी पहन कर इफ्तार की बिरयानी खा रहे थे उन्हें पाकिस्तानी खाने से क्यों परहेज हो गया? जो राजनाथ सिंह कल तक पैलेट गन्स के इस्तेमाल के लिए सेना को रोक रहे थे वे आज पाकिस्तान को पाकिस्तान में आँखे दिखा कर आये हैं। ऐसा क्या अंतर आ गया? अंतर तो है। और यह अंतर राजनाथ सिंह ने परोक्ष रूप में जताया भी है। यह अंतर है एक सच्चे राष्ट्रवाद और एक खोखले राष्ट्रवाद में।
राजनाथ सिंह ने दिखाया है कि एक सच्चे राष्ट्रवादी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म से कोई आपत्ति नहीं है और न ही होनी चाहिए। उसका विरोध तो बस भारत के दुश्मनों के प्रति होना चाहिए। जो अपने हैं उन्हें माफ़ करने का दिल एक राष्ट्रवादी में होना ही चाहिए। राष्ट्रवाद का अर्थ इस्लाम का विरोध करना नहीं है। भारत का मुस्लमान कुछ भी हो आख़िरकार है तो भारतीय ही। शायद इस्लाम के प्रति अपने इस दोहरे आचरण से राजनाथ सिंह ने आज पाकिस्तानी मुस्लमान और हिन्दुस्तानी मुस्लमान के मौलिक अंतर को भी स्पष्ट कर दिया है। ऑनलाइन राष्ट्रवादियों को भी इसी परिभाषा को अपनाना चाहिए।