अरविन्द केजरीवाल, एक ऐसी शख्सियत जिसे देश का बच्चा-बच्चा पहचानता है इसलिए नहीं की वे काफी मेहनती और ईमानदार छवि के नेता हैं बल्कि इसलिए कि अराजकता और झूठ की राजनीति करने में इनका कोई सानी नहीं है। केजरीवाल अक्सर अपने विरोधियों पे तरह-तरह के इल्जाम लगाते रहते हैं जबकि स्वयं उनके विधायकगण तरह-तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, वो कभी भी किसी भी नेता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा देते हैं और उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत होने का दावा करते हैं लेकिन आजतक उन्होंने ना इन सबूतों को सार्वजनिक किया ना ही सबूतों के आधार पर उक्त नेता के खिलाफ अदालत गए। कुल मिला कर ये कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए की केजरीवाल बस राजनैतिक लाभ के लिए किसी पर भी आरोप लगा सकते हैं।
एक क्षेत्रीय दल जिसकी सरकार बस एक केंद्र-शासित प्रदेश में है उसके मुखिया और गली के नुक्कड़ पे खड़े तीन-चार लफंगों में मुझे कोई अंतर ज्ञात नहीं होता, केजरीवाल सच्चाई से भागते हैं और सड़कछाप लफंगे पुलिस की जिप्सी देख कर। केजरीवाल के उलूल-जुलूल बयानों को ज्यादातर नेतागण अनदेखा कर देते हैं मगर इससे केजरीवाल के मन में ये बात पक्के तौर पे घर कर चुकी है कि वे लोग उनसे डरते हैं लेकिन कभी ना कभी तो उनका यह भ्रम टूटना ही था और टुटा भी वो भी वित्त मंत्री अरुण जेटली के हाथों।
हुआ दरअसल ये की केजरीवाल ने अरुण जेटली पे ये आरोप लगाया कि जब वे दिल्ली जिला क्रिकेट संघ(डीडीसीए) के अध्यक्ष थे तो उनके रहते उसमें भ्रष्टाचार हुआ था और वो भी उसमे लिप्त थे। ईमानदार और साफ़-सुथरी छवि वाले अरुण जेटली को ये बात नागवार गुजरी और उन्होंने केजरीवाल के खिलाफ व्यवहार और आपराधिक दोनों श्रेणी में मानहानि का मुकदमा कर दिया, जेटली का तर्क बिलकुल स्पष्ठ था कि ब्रह्मांड के मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के नेताओं ने उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है और वे कोर्ट से इंसाफ की गुहार लगाते हुए उन्होंने 10करोड़ के मुआवजे की मांग की, जेटली ने बाकायदा अदालत जाकर अपना बयान दर्ज करवाया और केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के छः विधायकों को नामजद किया।
केजरीवाल पे जेटली ने दो मुक़दमे दायर किये थे, एक में दो साल की कैद की मांग थी और दूसरा मानहानि का।
अरविंद केजरीवाल, जो गलफत पाले बैठे थी की न्यायालय को भी वे दिल्ली की जनता की तरह गुमराह कर सकते हैं, ने इस दलील के साथ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी की जेटली ने दो मुकदमे दर्ज किये हैं इसलिए एक मुकदमा रद्द होना चाहिए।
20अक्टूबर को इसी याचिका पे दिल्ली हाई कोर्ट का 30पन्नो का फैसला आया है, जस्टिस पीएस तेजी की बेंच ने अपने फैसले में यह कहा है कि जेटली द्वारा हाई कोर्ट में दायर मानहानि की अपील और सिविल कोर्ट में दायर की गयी आपराधिक मानहानि की अपील अलग-अलग हैं इसलिए किसी को भी ख़ारिज करने का कोई वाजिब कारण बनता ही नहीं है, कोर्ट ने साथ में ये भी जोड़ा की आजतक इस तरह की कोई भी अपील उसके पास नहीं आयी है।
अब इस फैसले का मतलब यह हुआ की निचली अदालत में अरविन्द केजरीवाल, राघव चड्डा, आशुतोष, कुमार विश्वास, संजय सिंह और दीपक बाजपेयी पे आपराधिक मुकदमा चलेगा जिसमे उन्हें जुर्माने के साथ दो साल की सजा भी हो सकती है और साथ ही में दिल्ली हाई कोर्ट में इन सभी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी चलेगा, यानी की अरविन्द केजरीवाल के लिए अब आगे कुआँ और पीछे खाई वाली स्थिति हो गयी है और ये सब उनकी ही करनी का फल है।
दरअसल क्या है ना की स्वाभिमानी व्यक्ति कभी भी गलत आरोप बर्दाश्त नहीं कर पाता है और वित्त मंत्री अरुण जेटली भी उसी प्रकार के व्यक्तियों में से एक हैं। जेटली चाहते तो केजरीवाल के इस आरोप का जवाब किसी सार्वजनिक मंच से दे सकते थे, इससे उन्हें और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक फायदा भी मिल सकता था मगर कानून के अच्छी जानकारी रखने वाले जेटली ने दूसरा रास्ता अख्तियार किया, उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अब हम ये बात भली-भांति जान रहे हैं कि ऐसा कर के उन्होंने केजरीवाल को नाको चने चबवा दिए हैं।
चाहे आज या कल अदालत तो अपना फैसला सुनाएगी ही और यही बात केजरीवाल की बेचैनी को कई गुना बढ़ा रही है।
अपने बेसिर-पैर के आरोपों के लिए पूरे देश में विख्यात केजरीवाल इस बार अपने ही खोदे हुए गड्ढे में गिरते नजर आ रहे हैं और फिलहाल तो उनके बच निकलने का कोई रास्ता दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। केजरीवाल को अपने असली काम यानी की दिल्ली की जनता के हितों को ध्यान में रखकर काम करने के बजाय देश में चल रही अन्य घटनाओं में ज्यादा दिलचस्पी है उनकी यही दिलचस्पी का दुष्परिणाम ये है कि आम आदमी पार्टी के सरकार में आये हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ है और दिल्लीवासी जानलेवा बीमारी के कारण त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है, मगर केजरीवाल जी उनकी सुनने को तैयार नहीं हैं और अपने में ही मग्न हैं। केजरीवाल के आधारहीन आरोप-प्रत्यारोप वाली राजनीति बहुत ही घटिया है और मुझे पूर्णतः विश्वास है कि अरुण जेटली बिना जुर्माने और मुआवजे की रकम के मानने वालों में से नहीं हैं।