हमारे देश में कई समस्याएं हैं, कहीं दंगे हो रहें हैं तो कहीं पे अलगाववाद कि आंधी चल रही है, कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहाँ बिना किसी समस्या के भी समस्या खड़ी की जा रही है परन्तु इन सब समस्यायों के होते हुए भी भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बना हुआ है। इसे पिछली सरकारों की देन कह लीजिये या गैरजिम्मेदाराना प्रशासनिक रवैया, भ्रष्टाचार हमारे देश कि सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। इस समस्या से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कई कड़े कदम उठाये हैं, भ्रष्टाचार की उपज काले धन को रोकने और बैंकिंग व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए नोटबंदी जैसा कठोर फैसला तक ले लिया गया मगर अभी तक भ्रष्टाचार जड़ से खत्म नहीं हुआ है। कोई भी वितीय विश्लेषक इसके जड़ से खत्म ना होने की सौ वजहें आपके सामने प्रस्तुत कर सकता है मगर यहाँ बात उसे खत्म करने की नहीं हो रही है, यहाँ बात हो रही है कि इसे बढ़ावा देने के पीछे आखिर किसका हाथ है, कोई भी समझदार व्यक्ति बिना एक पल भी सोचे यह उत्तर दे सकता है कि बढ़ते भ्रष्टाचार के जिम्मेदार हमारे देश के नेतागण हैं और इस तरह के भ्रष्ट नेता आपको हर पार्टी में मिल जायेंगे और मेरा यह मानना है कि कोई भी पार्टी दूध की धुली हुई नहीं है।
लेकिन अगर मैं कहूँ कि वह पार्टी जो इस देश में भ्रष्टाचार खत्म करने के मकसद से राजनीति में आई थी, आज उसी के दामन पे भ्रष्टाचार का दाग लग गया है तो फिर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या आप इस बात पे यकीं करेंगे? वैसे तो आप अबतक समझ ही गए होंगें मगर फिर भी मैं आपका सामान्य ज्ञान दुरस्त करने के लिए बता दूँ की मैं ‘आम आदमी पार्टी’ की बात कर रहा हूँ। जी हाँ, एक बार फिर से आम आदमी पार्टी का नाम गलत कारणों से प्रकाश में आया है और इस बार सवालों के कठघरे में खड़े हैं और कोई नहीं बल्कि स्वयं दिल्ली के मुख्यमंत्री और ‘आप’ के संस्थापक श्रीमान अरविन्द केजरीवाल। माननीय मुख्यमंत्री के खिलाफ एक एनजीओ की शिकायत पर दिल्ली पुलिस की इकॉनमिक अफेंस विंग ने प्रारंभिक जाँच बैठा दी है। यह जाँच रोड और सीवर लाइनों के टेंडर में हुई गड़बड़ी को लेकर बिठाई गयी है।
जाँच के दायरे में अरविन्द केजरीवाल, उनके बेहद ही करीबी रिश्तेदार सुरेन्द्र कुमार बंसल और एक अन्य सरकारी अधिकारी शामिल हैं।
दरअसल पूरा मामला कुछ यूँ है कि किसलय पाण्डेय नामक वकील ने रोअड्स एंटी-करप्शन आर्गेनाईजेशन के तरफ से एक याचिका दायर की है जिसमे कहा गया है की पीडब्ल्यूडी द्वारा जारी रोड और सीवर लाइनों के निर्माण से जुड़े टेंडर में नियमों को ताक पे रखकर अरविन्द केजरीवाल के रिश्तेदार सुरेन्द्र बंसल को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया। उसके बाद बंसल ने पीडब्ल्यूडी के समक्ष फर्जी बिल पेश कर के बड़ा मुनाफा कमाया और साथ में यह आरोप भी लगाया की उनके पास ऐसे सबूत हैं जिनसे यह साबित हो जायेगा की काम को पूरा करने के लिए जरुरी सामग्री खरीदी तक नहीं गयी थी। याचिका में आगे कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी दिल्ली सरकार के अंतर्गत आती है इसलिए इसमें केजरीवाल के सीधे प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। एनजीओ ने यह याचिका महज दिल्ली पुलिस के पास नहीं लगाई है बल्कि साथ में इसे कोर्ट में भी दायर किया गया है, कोर्ट में दायर याचिका में सीआरपीसी की धारा 156/3 के तहत केस दर्ज करने कि मांग की गयी है, इस धारा के तहत पुलिस केस दर्ज करने के लिए बाध्य हो जाती है। याचिका में साफ़ तौर पे यह बतलाया गया है कि बंसल की इन धांधलियों के कारण पीडब्ल्यूडी को करीब दस करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा और इतना सबकुछ केजरीवाल और पीडब्ल्यूडी अधिकारीयों की मिलीभगत के कारण हुआ। एनजीओ का बंसल पे यह भी आरोप है कि वो कई डमी फर्म चलाता है और इन्हीं के द्वारा अपनी गैरकानूनी करस्तानियों को अंजाम देता है।
खैर, देर-सवेर ये मामला प्रकाश में आ ही गया मगर अब हमे आने वाले धरने और नौटंकी के लिए खुद को तैयार कर लेना चाहिये क्योंकि जैसा की अरविन्द केजरीवाल का पुराना रिकॉर्ड रहा है उसे ध्यान में रखते हुए हमे यह पहले से ही अंदाज़ा हो जाता है कि हमेशा की तरह केजरीवाल अपनी ऊपर बैठाई गयी जाँच को प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी कि साजिश बतलाते हुए किसी नुक्कड़ या चौराहे पे धरना देने लग जायेंगे और ये जताने की कोशिश करेंगे की उन्हें फंसाया जा रहा है परन्तु केजरीवाल जी जनता को बेवकूफ बनाना इतना भी आसान नहीं है क्योंकि जिस तरह से आप तथ्यों को तोड़-मोरोड़ कर पेश करते हैं वो तरीका अब पुराना हो चूका है। अफ़सोस तो सिर्फ इसी बात का है की जो पार्टी अपने भ्रष्टाचार-विरोधी मुद्दे को भुना कर सत्ता में आई थी वही पार्टी इतने कम समय में भ्रष्टाचार के रोज़ नए कीर्तिमान बनाये जा रही है, आम आदमी पार्टी गर्क में जा रही है और इस बात को कोई झुठला नहीं सकता चाहे इसके लिए कोई कितना भी धरना-प्रदर्शन क्यों ना कर ले।


























