उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही बूचड़खानों को बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी हैं। खास तौर पे ऐसे बूचड़खाने जो अवैध हैं और साथ ही संदिग्ध तौर पर जिनमें गाय काटने का शंका हैं। दरअसल उत्तरप्रदेश भारत में गाय काटने या गाय के मांस को बेचने पर प्रतिबंध लगाने वाला शुरआती राज्यों में से एक हैं। उत्तरप्रदेश में गौहत्या रोकथाम अधिनियम 1955 से पारित हैं। इस अधिनियम के तहत गाय, गाय की संतान, बैल, सांड की हत्या करना या इनका मांस बेचना अपराध हैं। अधिनियम के अनुसार,
“उत्तरप्रदेश में कोई भी व्यक्ति बूचड़खाने या अन्य स्थल पर गाय, बैल, सांड या इनकी संतान की हत्या करता हैं, या गौहत्या का कारण बनता हैं, या गौमांस की खरीद-बिक्री करता हैं तो वह कानूनन अपराधी होगा।”
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दुर्भाग्य से 6 दशक से अधिक समय से चले आ रहे इस कानून के बावज़ूद गौहत्या उत्तरप्रदेश में एक मुख्य मुद्दा बना हुआ हैं। अवैध बूचड़खाने, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बेहिसाब अवैध पशु तस्करी के साथ साथ इनको मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण की वजह से प्रदेश में गौहत्या के साथ पशुवध का अवैध धंधा फल-फुल रहा हैं।
वैसे तो गाय का पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, किन्तु भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में भी गायों की संख्या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। भारतीय एवं मुख्यतः हिंदुओं के लिये गाय ना सिर्फ पशु हैं अपितु जनभावनाओं के आस्था का प्रतीक भी हैं।
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में जनता से वादा किया हैं क़ि वह तत्काल प्रभाव से लाइसेंसी यांत्रिकी बूचड़खानों के साथ-साथ सभी बूचड़खाने बंद कराएगी। चूँकि अब प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी की सरकार स्थापित हो चुकी हैं तो लोगों को अब उम्मीद हैं क़ि गौ हत्या के प्रतिबंध को लेकर सरकार कुछ कड़े और सकारात्मक कदम उठाएगी। वहीं दूसरी तरफ देखे तो इसे कार्यप्रणाली में लाना उतना आसान भी नहीं होगा। प्रदेश की सरकार को गौहत्या और बूचड़खाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से पूर्व कुछ क्षेत्रों में विशेष ध्यान देना होगा:
1. पुराने गौहत्या अधिनियम में सुधार: पुराने गाय वध अधिनियम में बहुत सी कमिया और अनौचित्य चेतावनी हैं। अधिनियम की धारा 3 राज्य सरकार द्वारा प्रमाणित बूचड़खाने को गाय की हत्या की अनुमति देती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में पूर्ण गौहत्या प्रतिबन्ध के खिलाफ याचिका की सुनवाई करते हुये प्रमुख रूप से कहा था क़ि “गाय का गोबर, कोहिनूर से भी बहुमूल्य हैं” साथ ही पशु उपयोगी हो या नहीं लेकिन फिर भी गुजरात में जारी सभी तरह के पशुवध पर प्रतिबन्ध को उचित ठहराया था। इसके बाद हाल ही में महाराष्ट्र और हरियाणा में भी ऐसे ही कानून लागू किये गए हैं। इसके अलावा कानून तोड़े पाये जाने पर दंड और जुर्माना अत्यंत ही कम हैं जिस पर गुजरात की तर्ज पर अधिक कड़े क़ानून के साथ अधिक जुर्माने पर विचार किया जाना चाहिये। कुछ धाराओं के तहत गाय के मांस को बंद डब्बों में आयत किया जाता हैं यह न्यायिक बाधा बन सकते हैं, अतः ऐसी धाराओं को हटा देना चाहिये।
2. स्पेशल टास्क फोर्स: अवैध बूचड़खानों के क्षेत्रों में कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा फैली व्यापक रिश्वतखोरी की वजह से भी इसे बंद करना एक मुश्किल काम हैं। इसके लिये एक स्पेशल टास्क फोर्स की आवश्यकता पड़ेगी जो अवैध बूचड़खाने वालों पर सीधे कार्यवाही करे। जवाबदेही की जिमेदारी के साथ यह फोर्स अवैध बूचड़खानों में शामिल लोगों को पकड़ने और अपराधी साबित करने में सहयोगी साबित होगी।
3. बांग्लादेश से गाय तस्करी: जमीं से लेकर पानी तक मार्गों से उत्तरप्रदेश से बांग्लादेश में गाय की तस्करी अब बदतर रूप ले चुकी हैं। प्रदेश के हालात यह हैं क़ि अब उत्तरप्रदेश का गाय की तस्करी के लिये गोदाम के रूप में इस्तेमाल हो रहा हैं। उत्तर भारत के राजस्थान और हरियाणा जैसे प्रदेशों से सड़क मार्गों से उत्तरप्रदेश में लाये पशुओं को पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय के रास्ते बॉर्डर पार करा कर बांग्लादेश पहुँचाया जा रहा हैं। गाय की इस तस्करी से प्रदेश के व्यापारी लगभग 10 हजार करोड़ रुपये अवैध तरीके से कमा रहे हैं, जोकि कालेधन का भी एक रूप हैं। गाय की तस्करी के रोकथाम के लिये नए कानून या अधिनियम में संशोधन कर मवेशियों की खरीद-बिक्री पर नज़र रखने और नियम को और कड़ा करने की आवश्यकता हैं।
4. बीफ़ के प्रकार को पृथक (अलग) करना: बीफ़ सामान्यतः गाय एवं भैंस दोनों के मांस को कहा जाता हैं। पिछले वर्ष उत्तरप्रदेश के सर्वाधिक योगदान के साथ भारत बीफ़ का सबसे बड़ा निर्यातक था। बीफ़ निर्यात में गाय के मांस होने और बढ़ने के संदेह के बाद बंदरगाहों में केंद्र सरकार ने गौमांस के जाँच करने की प्रयोगशाला को स्थापित किया। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुये राज्य सरकार को संदिग्ध क्षेत्रों में कटे मांस के नमूने की जाँच के लिये प्रयोगशालाएं स्थापित करनी चाहिये।
निष्कर्ष में यह निकलता हैं क़ि, यदि भारत का संविधान किसी राज्य को गाय की हत्या पर प्रतिबंध लगाने का परमिट देता हैं और राज्य ने 6 दशक पहले ही यह कानून लागू कर रखा हैं तो गाय की हत्या पर ‘पसंदगी’ और ‘नापसंदगी’ गैरप्रासंगिक ही हैं।
अब राज्य सरकार को उत्तरप्रदेश की सड़कों पर घूमते और भटकते गायों पर विचार करने की आवश्यकता हैं। सरकार उन गायों के लिये गौशाला का निर्माण करा सकती हैं जहाँ दुधारू गायों से दूध निकाल कर गौशाला के आसपास के क्षेत्रों के बेरोजगार लोगों को रोजगार दे सकती हैं। साथ ही अन्य गायों से निकले गोबर से कंडे, गोबर गैस, गोबर खाद जैसे उपयोगी चीजो का भी उत्पादन किया जा सकता हैं। इससे गायें भी सुरक्षित रहेंगी साथ ही रोजगार भी उत्पन्न होगा।