भारत में राजनीति की बात करते ही कुछ अजीब सा लगने लगता है। नेतागिरी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, फ्री वाई-फाई, फ्री बिजली-पानी, और कितने ही चुनावी जुमले। यह सबकुछ दिमाग में आ जाता है। अभी हाल ही में हुये 5 राज़्यों के चुनाव में भी यह सब भरपूर देखने को मिला। लेकिन देश में एक राज्य ऐसा भी है जो इन सब से कोसो दूर है। मध्यप्रदेश से अलग होकर 1 नवंबर 2000 में बना राज्य छत्तीसगढ़, जिसके पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी थे। छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक, सामाजिक एकता के साथ साथ राजनीति में भी एक अलग ही खूबी है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पिछले 17 वर्षों में कभी साम्प्रदायिकता की बू नहीं आई। आदिवासी बहुल राज्य होने के बाद भी छत्तीसगढ़ में जातिवाद या धर्म की गन्दी राजनीति कभी नहीं खेली गयी। छत्तीसगढ़ की राजनीति हमेशा मुद्दों की रही है, चाहे वो किसान वर्ग का मुद्दा हो या युवा वर्ग के रोजगार का। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी राजनीति चमकाने के लिये लोगो को लड़ाना पड़ता है, लोगो में फूट डालनी पड़ती है। छत्तीसगढ़ में यह काम पहले कांग्रेस ही करती थी लेकिन अब यह काम कांग्रेस को अघोषित ‘बी टीम’ कर रही है। अब यह अघोषित बी टीम है कौन ? ‘छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी)’ यह एक नयी पार्टी है जिसके मुखिया अजीत जोगी है।
दरअसल पिछले वर्ष अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी एक राजनैतिक षड़यंत्र करते पकड़े गए थे जिसके बाद अमित जोगी को कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। ये वही अमित जोगी है जो पिता के बड़े पद होने का घमंड लिये रहता था। अमित जोगी और उसके 29 अन्य साथियों के ऊपर तत्कालीन एनसीपी के कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी के खून का इल्जाम लगा था जिसके बाद इन्हें कई दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। लेकिन अचानक सिर्फ अमित जोगी बच गए और सभी दोषी पाये गए। इसी बेटे के निष्कासन के बाद अजीत जोगी ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और खुद की राजनैतिक पार्टी खड़ी कर ली, लेकिन पूरी पार्टी के 90% कार्यकर्ता कांग्रेस से ही शामिल हुये हैं। अब बिल्ली अपना नाम शेर रख ले तो असल में शेर थोड़ी ना हो जायेगा!
अजीत जोगी ने हाल ही में बयान दिया कि “छत्तीसगढ़ में हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्तान नहीं चलेगा! यहाँ के सतनामी, कबीरपंथी और कुछ आदिवासी खुद को सनातनी हिन्दू नहीं मानते तो भाजपा का नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ने से कोई फायदा नहीं होगा।”
अब बताईये कि जिस छत्तीसगढ़ की भूमि ने इन्हें इतना नाम दिया उसे खुद की और अपने बेटे की राजनीति चमकाने के चक्कर में अजीत जोगी हिन्दू-मुस्लिम-इसाई, सतनामी, आदिवासी में बांटना चाहते हैं। सिर्फ और सिर्फ सत्ता के लोभ में।
छत्तीसगढ़ में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव है, जिसकी तैयारी अजीत जोगी और उनकी पार्टी लोगों को बाँटकर, आम जनमानस में फूट डालकर ही करना चाहते हैं।
छत्तीसगढ़ की जमीन पर आज तक किसी भी तरह के कोई जातिवादी या सांप्रदायिक दंगे नहीं हुये हैं। आज तक किसी भी नेता ने हिन्दू-मुस्लिम फैक्टर को इस्तेमाल करने का भी नहीं सोचा, क्योंकि यह सब एक तरह की राजनैतिक नीचता है, लेकिन अजीत जोगी पुरे घमंड और जोश के साथ छत्तीसगढ़ के वासियों को आपस में लड़ाने के लिये तत्पर हैं। अजीत जोगी खुद को आदिवासी नेता बताते फिरते हैं लेकिन असल में वह एक परिवर्तित ईसाई हैं। उनके पिताजी ने ईसाई धर्म स्वीकार किया था जिसके बाद इनके घर में मिशनरियों की मदद पहुंची थी। अजीत जोगी छत्तीसगढ़ में जाति विवाद में भी फँसे हुये हैं। विरोधियों के हिसाब से अजीत जोगी ने ईसाई में परिवर्तन होने के बाद भी अपनी जाति का गलत इस्तेमाल किया है। अब सोचिये जो व्यक्ति खुद परिवर्तित है, जो खुद हिन्दू नहीं है वो हिंदुओं में फूट डालकर उन्हें तोड़ने की कोशिश नहीं करेगा तो क्या करेगा?
अजीत जोगी कांग्रेस से राज्यसभा-लोकसभा सांसद, विधायक के साथ साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके हैं। कहा जाता है कि वह काफी हद तक तिकड़मी हैं। अपने तिकड़म से ही वो विद्याचरण शुक्ल के रहते भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने थे। अजीत जोगी के बारे में कहा जाता है कि वो राजीव गांधी से दोस्ती बढ़ाने के लिये रायपुर के कलेक्टर रहते हुये जब भी उनका विमान आता था वो अपने घर से नाश्ता-खाना खिलाने पहुँच जाते थे। आज उसी तिकड़म का इस्तेमाल कर अजीत जोगी छत्तीसगढ़ में जातिवाद पैदा करना चाहते हैं। यही नहीं छत्तीसगढ़ की राजनीति में परिवारवाद का पर्याय भी खुद अजीत जोगी है। अपने बेटे और पत्नी रेणु जोगी को विधायक बनाने के बाद उन्होंने सांसद बनने की पूरी तैयारी कर ली थी। 2014 लोकसभा चुनाव में वो महासमुंद से चुनाव लड़े लेकिन हार गए थे। इस बार तो खुद की पार्टी है तो पत्नी, बेटा, बहु सब चुनाव लड़ेंगे, पार्टी के मुख्य पदों पर भी परिवार ही विराजमान है, तो जो व्यक्ति कांग्रेस से निकला हो तो उसकी सोच भी वैसी ही होगी ना!
सबसे बड़ी बात यह है कि छत्तीसगढ़ में अब कांग्रेस के साथ-साथ अजीत जोगी की स्वीकार्यता भी लगभग ख़त्म हो चुकी है। छत्तीसगढ़ की जनता भोली जरूर है लेकिन बेवकूफ नहीं। इस राज्य ने कभी आपस में लड़ाने और फूट डालने वाले को स्वीकार नहीं किया है। अजीत जोगी और उनकी पार्टी को शायद यह आभास नहीं कि छत्तीसगढ़ का पूरा समाज सबका साथ सबका विकास चाहता है ना कि जातिवाद और सांप्रदायिक हिंसा।