“कुलभूषण जाधव” एक नाम जो कुछ दिन पहले तक शायद किसी को पता भी नही था और आज भारत के हर व्यक्ति की जुबान पर है। कुलभूषण जाधव मुंबई के रहने वाले एक पूर्व नौसेना अधिकारी है जो निवृत्ति ले कर ईरान के छभहार बंदरगाह पे अपना व्यापर कर रहे थे। वहीं से कुलभूषण जाधव का अपहरण कर पाकिस्तान लाया गया और फिर उनपे जासूसी का झूठा मुकदमा चलाया गया। मुक़दमे के बाद अब उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गयी। जबकि जिस कबूलनामे का जिक्र कर ये सजा सुनाई गयी उस कबूलनामे वाले वीडियो में ये साफ दिख रहा था कि कुलभूषण जाधव बस आगे लिखा कुछ पढ़कर बता रहे हैं। साथ ही उस वीडियो में काफी कट लिए गए साफ दिख रहे है। तो फिर अब अलग से बताने की जरूरत ही नहीं है कि कुलभूषण जाधव से वो कबूलनामा कैसे लिया होगा। 2016 में दर्ज हुये 275 केस में से पाकिस्तान के आर्मी न्यायालय ने 161 लोगो को फाँसी की सजा सुनाई है, इससे प्रतीत होता है के महज एक साल के अंदर पाकिस्तान का जो न्यायालय लगभग 60 प्रतिशत केस में फाँसी की सजा सुनाता हो उसका काम कैसे चलता होगा।
कुलभूषण जाधव की घटना ने कुछ यादों की परते और खोल दी। कुलभूषण यादव ने वो 54 अधिकारी याद दिला दिए जो 1971 से पाकिस्तान की जेलो में बेवजह सड़ रहे है। कुछ की तो पाकिस्तान द्वारा दी जाने वाली यातनाओ के चलते अपना मानसिक संतुलन तक खो चुके होने की खबरे आती रही है। 1971 का वो युद्ध जिसमें हमने पाकिस्तान के दो टुकड़े करवा के बांग्लादेश बनाया था, और उसी युद्ध में पाकिस्तान ने हमारे 54 जवानो को युद्धबंदी बना लिया था। जिनमें से एक नागपुर के रहने वाले फ्लाईट लेफ्टिनेंट तांबे भी है। पर दुःख की बात तो यह है कि जिस शिमला करार के चलते हमने उनके 90 हजार से अधिक युद्ध कैदियों को रिहा कर दिया था, हमारी तत्कालीन सरकार उसी करार से अपने 54 जवान तक वापस ना ले सकी। हालांकि इन कैदियो को छोड़ने का नाटक पाकिस्तान कई बार कर चूका है। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने भी इन 54 युद्ध कैदियों को छोड़ने की बात कही थी पर आगे कुछ हुआ नही। इन युद्धकैदियों के परिजनों को भी एक बार पाकिस्तान के जेलो का सर्वेक्षण करने भेजा गया पर कहने की जरूरत नहीं है के तब पाकिस्तान में बंद उन भारतीय जवानो को बड़ी खूबी से पाकिस्तान ने कही और छुपा के रखा था।
सैकड़ों लोगो का हत्यारा अजमल आमिर कसाब जिसके खिलाफ सबूत मौजूद होते हुये भी हमारे देश ने उसे एक संवैधानिक पद्धति से अपनी बात रखने का मौका दिया, उसे न्यायालयीन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया। और एक तरफ है पाकिस्तान जैसा देश जहाँ कोई साबुत न होने पर भी कुलभूषण जाधव जैसे न जाने कितने शिकार हो चुके है। न जाने आज तक कितने बेगुनाह भारतीयो का न्यायलयीन प्रक्रिया से खून किया होगा। 1999 में भी शेख शमीम नाम के भारतीय को बिना किसी साबुत पाकिस्तानी कोर्ट फाँसी दे चुका है।
सरबजीत सिंह, किरपाल सिंह और चमेल सिंह न जाने ऐसे कितने भारतीयो ने संशयास्पद स्थिति में पाकिस्तानी जेलो में अपनी जान गवायी है। किरपालसिंह का तो जब भारत में दोबारा शवविच्छेदन किया गया तो उसमे शरीर के कुछ महत्वपुर्ण अंगो को लापता पाया गया।
हालाँकि केंद्र सरकार ने कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान स वापस लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहे चुके है कि कुलभूषण जाधव को वापस लाने के लिए हर जरुरी कदम उठाया जायेगा, और भारत सरकार जाधव को बचाने के लिए किसी भी हद्द तक जाने को तैयार है।
लेकिन डर इसलिए लगता है क्योंकि जिस देश की हम बात कर रहे है वो पाकिस्तान है, जिसमें कुछ भी “पाक” नही है। नैतिकता का तो मनो इस देश से कोई नाता ही नहीं है। ये तो हम जानते है के पाकिस्तान में कानून नाम की कोई चीज नहीं है। और वो एक देश नही जंगल है। पर जंगल के भी तो कुछ कानून होते है ना।