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जेनेरिक दवाओं के माध्यम से काफी पैसे बचाए जा सकते हैं, पर क्या ये सुरक्षित हैं?

Rashmi Tripathi द्वारा Rashmi Tripathi
23 April 2017
in मत
जेनेरिक दवाओं के माध्यम से काफी पैसे बचाए जा सकते हैं, पर क्या ये सुरक्षित हैं?
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उत्तरप्रदेश के चिकित्सा एवम् स्वास्थ्य मंत्री श्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने गुरुवार को जनपथ सचिवालय के सभागार में संयुक्त सचिव, केमिकल एवं फ़र्टिलाइज़र मंत्रालय, भारत सरकार के साथ आयोजित उच्च स्तरीय बैठक में यह जानकारी दी, कि उत्तर प्रदेश के सभी जनपद में जनता को “स्तरीय एवम् सस्ती” दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए “प्रधामंत्री जन औषधि परियोजना” के अंतर्गत “जन औषधि केंद्र” खोले जाएंगे। इन औषधि केंद्रों में सभी जेनेरिक दवाईयां उपलब्ध रहेगी।

इसकी जानकारी देते हुए सिद्धार्थ नाथ सिंह सिंह ने कल ट्वीट करते हुए लिखा – “आखरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी मिलेगी सस्ती औषधियाँ ”

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सिद्धार्थ नाथ सिंह के अनुसार इन केंद्रों पर गरीबों को जहाँ अच्छी और सस्ती दवाइयां मिल सकेंगी वही इन केंद्रों से व्यापक स्तर पर बेरोज़गार फार्मासिस्टों को रोज़गार भी मिल सकेगा। इस परियोजना में लगभग 600 जेनेरिक दवाएं तथा 155 सर्जिकल आइटम्स शामिल हैं।सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बताया कि इन केंद्रों पर मिलने वाली जेनेरिक दवाओं का मूल्य ब्रांडेड दवाओं से काफ़ी काम होगा जिससे ग़रीबो को बहुत फ़ायदा होगा।

सरकारी चिकित्सालयों के अलावा बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, एवं महत्वपूर्ण स्थलों पर भी औषधि केंद्र खोलने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जायेगा। यहाँ तक कि इन प्रधामंत्री जन औषधि केंद्रों को खोलने के लिए 2.5 लाख रुपये की वित्तीय सहायता भी दी जाएगी, जो कि अपने आप में एक सराहनीय प्रयास है।

इसके साथ ही सिद्धार्थ नाथ सिंह ने यह भी बताया कि ह्रदय रोगों के लिए कार्डिक स्ट्रेंथ मरीज़ों को वर्तमान में लगभग 55000 से लेकर 1.45 लाख रूपये में दवाइयां मिल रही हैं जो कि इन केंद्रों में 7000 से 25000 रुपये में ही मिल जाएंगी। अब आप ख़ुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि यह केंद्र खुलने से आम जनता जो की महंगाई और ग़रीबी के चलते इतनी महँगी दवाएं ख़रीदने में असमर्थ है उसे कितना फ़ायदा होगा।

प्रश्न ये है कि आख़िर जेनेरिक दवाएं इतनी सस्ती कैसे होती हैं?

क्या जेनेरिक दवाओं के सेवन से उतना ही फ़ायदा होता है जितनी अन्य ब्रांडेड दवाओं से?

आजतक जेनेरिक दवाएं बाज़ार में क्यों नहीं बिक रही थी?

विस्तार से समझते हैं –

“जेनेरिक दवा”  वह दवा है जो बिना किसी पेटेंट के बनायी और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवाओं के फार्मूलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसके एक्टिव इंग्रीडिएंट (घटक) पर पेटेंट नहीं होता। किसी भी बीमारी या रोग के लिए तमाम शोध के बाद उसके इलाज़ के लिए एक केमिकल कम्पोजीशन तैयार किया जाता है,जिससे वह रोग ठीक हो सके।

यही केमिकल कम्पोजीशन अलग अलग कंपनियां अलग अलग नाम से बेचती हैं । जेनेरिक दवाइयों का नाम उस औषधि में उपस्थित एक्टिव इंग्रीडिएंट (घटक ) के नाम के आधार पर, एक विशेषज्ञ समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है। पूरी दुनिया में किसी दवा का जेनेरिक नाम एक ही होता है। जेनेरिक दवाइयां गुणवत्ता में किसी भी तरह ब्रांडेड दवाइयों से कम नहीं होती है। उनका असर और डोज़ और साइड इफ़ेक्ट भी ब्रांडेड दवाइयों जितना ही होता है।

जेनेरिक दवाएं उत्पादक से सीधे रिटेलर तक पहुचती हैं और इनके प्रचार प्रसार पर भी कंपनियों को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता। एक ही कंपनी की पेटेंट और जेनेरिक दवा के मूल्य में काफी अंतर होता है। जेनेरिक दवाओं का मूल्य सरकार निर्धारित करती है और पेटेंट दवाओं के मूल्य कंपनी खुद निर्धारित करती है। इसलिए जेनेरिक दवाएं काफी सस्ती होती हैं।

दवा कंपनियां अपनी ब्रांडेड दवाओं से ख़ास मुनाफा पाती हैं और इसलिए अपने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स के जरिये डॉक्टरों को अपनी ही ब्रांडेड दवा लिखने के लिए अच्छे ऑफर देती हैं। आपने कई बार यह देखा होगा की कई बार डॉक्टर जो दवा लिख के देता है वह उसके आस पास के मेडिकल स्टोर्स में ही पायी जाती है। जबकि आपको मालूम होना चाहिए की डॉक्टर आपको जो दवा लिख के दे रहा है , ठीक उसी दवा के साल्ट वाली जेनेरिक दवा आपको उससे कई सस्ते दामों में मिल सकती है। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण ऐसा नहीं हो पाता है।

उदाहरण के तौर पर एक ब्रांडेड दवा के 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रूपए का है ,तो उसकी एक गोली करीब 55 रुपये की पड़ी। इसी साल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता सिर्फ 59 रूपए में ही उपलब्ध है। जिसका मतलब की एक गोली लगभग 6 रूपए की पड़ी। खास बात है कि किडनी, यूरिन, बर्न, हार्ट संबंधी रोग, न्यूरोलॉजी, डायबिटीज़ जैसी बिमारियों में जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं में काफ़ी भारी मात्रा में अंतर पाया जाता है।

अपने निजी स्वार्थ के लिए डॉक्टर जेनेरिक दवा का नाम लिख कर नहीं देते हैं और यदि आप किसी मेडिकल स्टोर पर जाकर जेनेरिक दवा का नाम बता भी दे तो वो उपलब्धता की कमी बता के आपको चलता कर देते हैं।

जिन बीमारियों का महीने भर का लाखों में खर्च देख कर गरीब आदमी अपना घर बार, खेत, जमीन जायदाद बेच देता है, वही बीमारियां अगर कम कीमत पर ठीक होने लगे तो सोचिये जनता का कितना भला हो जायेगा। जरुरत है सिर्फ जागरूक होने की, जिससे कि कम से कम सरकार द्वारा इन जन औषधि केंद्रों का सही उपयोग हो सके और प्रदेश और देश के लोग स्वस्थ हो सके।

Tags: उत्तर प्रदेशजेनेरिक दवाईसिद्धार्थ नाथ सिंह
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