नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार को केंद्र में बैठे तीन साल हो चुके हैं। पिछले तीन-चार सालों में भाजपा से कई नयी पार्टियों ने गठबंधन किया वहीं नीतीश कुमार के जनता दल (यू) ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन तोड़ लिया था और अभी शिवसेना और भाजपा के संबंध में भी थोड़ी तल्खी नज़र आ रही है। वैसे इस सब से भाजपा को कोई खास फ़र्क़ नहीं पड़ा है, बिहार और दिल्ली में हुयी बड़ी हार के अलावा भाजपा ने लगभग सभी राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है।
उत्तरप्रदेश, गोआ, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल प्रदेश में सरकार बना कर भाजपा ने अपना प्रभुत्व बढ़ाया है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष अभी भी जमीन की तलाश में है। विपक्ष को अभी तक नरेंद्र मोदी की टक्कर का कोई चेहरा नहीं मिल पाया है जिसकी आम जनता में स्वीकार्यता हो। विपक्षी पार्टियां वैसे तो तीसरा मोर्चा के पक्ष में जाती दिख रही थी, लेकिन बिहार और उत्तरप्रदेश की तर्ज पर महागठबंधन के रूप में ही दूसरे मोर्चे पर उनका ज्यादा जोर है।
बिहार में नीतीश कुमार के चेहरे पर जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा के खिलाफ़ चुनाव लड़ा था और बड़ी जीत हासिल की थी। उत्तरप्रदेश में भी अखिलेश बाबू इस गठबंधन को दोहराना चाहते थे और उन्होंने कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ा जिसमें उनकी करारी हार हुयी है। कुछ ही समय में भारत में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। विपक्ष एक होकर अपना साझा उम्मीदवार उतारना चाहता है जिसके लिए चर्चा सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई थी। इसी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष 2019 चुनाव के महागठबंधन की जमीन तैयार करने की कोशिश में लगा हुआ है।
वैसे विपक्ष में ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, लालू यादव, मुलायम-अखिलेश, मायावती और लेफ्ट के नेता सब मिलकर नीतीश के पक्ष में माहौल तैयार करने में जुटे थे, या शायद उनको राजनैतिक शहीद करने की कोशिश कर रहे थे। कांग्रेस भी इस गठबंधन में खुद को सीनियर की तौर पर चाहती थी। नितीश कुमार को शायद इसी का आभास हुआ और उन्होंने अभी ताजा बयान दिया है जो कि भारतीय राजनीति के भविष्य के लिए अहम है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि वे 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे। पटना में आयोजित ‘लोक संवाद कार्यक्रम’ में पत्रकारों के सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा, ‘हम इतने मूर्ख नहीं हैं, 2019 के दावेदार हम नहीं हैं। मेरे बारे में व्यक्तिगत आकांक्षा दिखाकर तरह-तरह की बात की जाती है। शरद जी अध्यक्ष नहीं बन सकते थे, इसलिए मुझे अध्यक्ष बनाया गया तो इसे मेरे राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के तौर पर देखा जाने लगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि “मैं 2019 के लिए प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं हूं। हमारी पार्टी अभी छोटी है। प्रधानमंत्री वही बनता है जिसमें क्षमता होती है। आखिर पांच साल पहले किसने सोचा था कि मोदी प्रधानमंत्री होंगे, लेकिन जनता को उनमें क्षमती दिखी और आज वह प्रधानमंत्री हैं, आगे भी जिसमें क्षमता होगी वह 2019 में आगे आएगा।”
नीतीश कुमार के इस बयान को काफी गंभीरता से लिया जा सकता है। आखिर जिसे विपक्ष अपना सबसे बड़ा चेहरा मानकर चल रहा हो उसकी तरफ से ही ऐसा बयान आना विपक्षियों के लिए दुखदायी है। नीतीश कुमार भी समय समय में केंद्र और मोदी सरकार की बड़ाई करते रहते हैं वहीं दूसरी ओर उनके और लालू प्रसाद यादव के बीच कड़वाहट की खबरे आती रहती है। कई मुद्दों पर दोनों पार्टियों की राय एक दूसरे से जुदा रहती है। नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक पर लालू सरकार को घेर रहे थे वहीं नीतीश बाबू ने सरकार का समर्थन किया था। नीतीश बाबू को जनता के नब्ज़ की अच्छी पकड़ है, लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त लालू और उनके मंत्री बेटे अब उनके लिए गले ही हड्डी बन रहें हैं। हाल ही में तेजस्वी और तेजप्रताप के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आये हैं।
नीतीश कुमार की छवि एक ईमानदार नेता की है। जाहिर सी बात है उनकी छवि को आरजेडी की वजह से बहुत कुछ समझौता करना पड़ता है। वैसे कुछ ही दिन पूर्व भाजपा से जेडीयू को समर्थन का बयान आया था, तो अभी नीतीश कुमार के बयान से यह समझा जा सकता है कि वह खुद अभी फँसे हुए जाल में निराश हैं और उनकी छटपटाहट उनके भाजपा के पास जाने के संकेत दे रही है।
नीतीश कुमार का ताजा बयान अब उमर अब्दुल्ला के उस बयान की याद दिलाता है जो उन्होंने उत्तरप्रदेश चुनाव के परिणाम के बाद कहा था। उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि ‘विपक्ष को 2019 को भुलाकर 2024 की तैयारी करनी चाहिए।’