बिहार में सम्पन्न 2015 के चुनाव में नया मोड आ गया था। 2014 के बाद पहली बार बीजेपी को किसी बड़े राज्य के विधानसभा में हार का सामना करना पड़ा। जिस मोदी शाह की जोड़ी ने बीजेपी को लोकसभा में विजयश्री दिलाई थी 2014 में, उसी जोड़ी की विजय रथ को बिहार में तगड़ा झटका लगा था। इसके बावजूद बीजेपी झुका नहीं और दूसरे राज्यों, मसलन मणिपुर, यूपी , असम इत्यादि एवं स्थानीय इकाइयों में दमदार प्रदर्शन करते हुये शानदार वापसी की। बिहार की हार ने हालांकि एक लगभग विलुप्त प्रजाति को फिर से एक नया जीवन प्रदान किया है, और वो है लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल [आरजेडी]। जुगत से भिड़ाई गयी राजनैतिक गणित् ने इस चुके हुए पार्टी को ही चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दे दिया।
जबसे महागठ्बंधन सत्ता में आई है, तबसे दोनों आरजेडी और जेडीयू [जनता दल [यूनाइटेड]] बराबरी से सत्ता में मलाई काट रहे हैं। हालांकि इस गठबंधन ने भी अपने उतार चढ़ाव देखे। नितीश कुमार, जिनकी काफी साफ सुथरी छवि थी, उन्हे एक ऐसे आदमी के साथ राज्य का शासन बांटना पड़ा, जो चारा घोटाले में न सिर्फ लिप्त है, बल्कि उसका दोषी भी सिद्ध किया जा चुका है। और इन सबके बावजूद उनका बीजेपी से मोह नहीं छूटा है, जो राजनीतिक विशेषज्ञों को यह अंदेशा देती है की जेडीयू बीजेपी के साथ दोबारा हाथ मिला सकती है।
ऐसे संकट की घड़ी में मुझे तो नहीं लगता है जेडीयू और आरजेडी की यह जोड़ी इन तूफानी दरियाओं को पार कर पाएगी, और इसके पीछे कई कारण भी है। जैसे शाहबुद्दीन प्रकरण में इन दोनों के बीच की दूरियाँ सबके सामने खुल के बाहर आ गयी, वैसे ही आरजेडी के मन में लालू के दोनों ही ‘सुयोग्य सुपुत्र’ में से किसी एक को गद्दी पर बैठाने की मंशा नितीश की सत्ता के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। ऐसे में नितीश बाबू की पुरजोर कोशिश रहेगी की किसी तरह से ये गठबंधन समाप्त हो, और उनकी सत्ता बनी रहे। एक और वजह भी है, जिससे नितीश बाबू ये रिश्ता तोड़ना चाहते हैं, और वो है आरजेडी दल का कई घोटालों और आपराधिक मामलों में संलिप्त होना।
आरजेडी और घोटालों का चोली दामन का साथ है। लालू यादव के विश्व प्रसिद्ध, करोड़ों में गिनती वाले चारा घोटाले से कोई बेवकूफ़ ही अंजान होगा। अपने पिता के पदचिन्हों पे चलते हुये इनके सुपुत्र तेज प्रताप यादव, एवं तेजस्वी यादव, दोनों ही क्रमश: मिट्टी और मौल घोटाले में लिप्त पाये गए हैं। रेपोर्ट्स के अनुसार बिना टेंडर के पटना चिड़ियाघर को यादवों की संपत्ति से मिट्टी निकालकर भेजी गयी थी। इस्से पहले की आरजेडी इस दलदल से बाहर निकल पाती, लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती को बेनामी भूमि डील केस में अभियुक्त पाया गया है। इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट ने इनकी सम्पत्तियों को इस केस से जोड़ने में सफलता हासिल की है।
जो जांच इस डील में बिठाई गयी है, उसके अनुसार इस डील का कुल मूल्य लगभग 1000 करोड़ रुपये के पार जा रहा है, जिसमें यादव परिवार के कई अहम सदस्य शामिल है। बेनामी लेनदेन एक्ट 1988, जिसे पिछले साल ही बदला गया था, उसके अनुसार इस डील से दिल्ली में उनका एक घर और एक भूमि का प्लॉट भी जुड़ा हुआ है। राजेश अगरवाल [जिनके यादव परिवार से गहरे संबंध है] पर पड़े छापे और गिरफ्तारी के पश्चात ही यह कदम उठाया गया है। अवैध कोष को जुटाने के इल्ज़ाम में इन्हे गिरफ्तार किया गया है।
मीसा भारती और उनके पति से अफसरों ने पूछताछ करने का प्रयास भी किया, पर दोनों ने जानबूझके उनके बुलावे को नज़रअंदाज़ किया। इस राजनैतिक जोड़ी के एक फ़र्म मिशईल पैकेर्स एंड प्रिंटेर्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ मजबूत सांठगांठ है, और इसी कंपनी के जरिये इनहोने अपनी बेनामी डील्स करवाई है। मीसा भारती को अपने बेनामी के सौदों के लिए सफाई देने का वक़्त भी दिया गया है, और अगर वो ऐसा करने में नाकाम रहती है, तो उनके सम्पत्तियों को ज़ब्त कर उनपर कारवाई करने से इन्कम टैक्स विभाग बिलकुल नहीं हिचकेगा। अभी तक सूत्रों के अनुसार इनकी दिल्ली और पटना में 22 जगहों पर स्थित सम्पत्तियों पर इन्कम टैक्स विभाग ने कारवाई की।
इन सबका असर बेनामी लेनदेन एक्ट के नए नियमावली से देखने को मिलेगा। यकीन नहीं होता, तो कानूनी तौर पर इनका हश्र क्या होगा, नीचे ध्यान से देखिएगा :-
इस एक्ट के अनुसार, दोषी पाये जाने पर मीसा भारती को सात साल सश्रम कारावास झेलना पड़ सकता है। राजनैतिक रूप से इन जाँचों और बेनामी लेनदेन का पर्दाफाश का काफी गहरा असर पड़ेगा।
लालू यादव भले ही आरजेडी की कमान अपने खानदान को सौंपने के सपने सजा रहे हो, पर इन आरोपों ने इन उम्मीदों को तगड़ा झटका ही नहीं दिया है, बल्कि इनकी जो छवि चारा घोटाले में दोष सिद्ध होने पर खराब हुई है, उनके बच्चों को तो अपने राजनैतिक सफर की शुरुआत में ही ये आरोप झेलने पड़ रहे हैं।
इसके साथ ही साथ राजनैतिक रूप से खलबली मचने के भी पूरे आसार हैं, क्योंकि नितीश कुमार के हाथों से सीएम का पद छीनने की लालसा को अब जंग लगता प्रतीत होता है। ये भी हो सकता है की बेनामी लेनदेन का कच्चा चिट्ठा खुद नितीश बाबू ने ही खोला हो। अपने हाथ से दरकती सत्ता की पकड़ को नितीश हर हाल में वापस पाना चाहते हैं। उनकी और बिहार भाजपा के नेता श्री सुशील कुमार मोदी के बीच की दोस्ती किसी से नहीं छिपी है।
शायद नितीश कुमार एक ठोस वजह की दरकार में हैं, जिससे वो गठबंधन के बोझ से मुक्ति पा सके। इन घोटालों और मीसा भारती पर चल रही जांच इन्हे वो सुनहरा मौका दे सकती है। पर घूम फिरके बात नितीश बाबू की नीयत पे ही ठहर जाती है।
क्योंकि आंकड़े ही एक सीएम नहीं बनाते, इसीलिए इन्हे भाजपा का दामन वापस अपनाना होगा, अगर पटना में एक बार फिर अपनी सरकार चाहते हैं यह। बीजेपी की राजनैतिक झोली में हिन्दी के गढ़ से गायब इस इकलौते राज्य को पाना फिर से इनके लिए आसान हो जाएगा। और साथ ही साथ यह पीएम मोदी के लिए एक नया मैदान भी तैयार कर सकती है, जहां 2019 में आगामी लोकसभा चुनाव और 2020 में विधानसभा चुनाव है।
हमेशा की तरह आरजेडी प्रमुख ने इसे सत्ता के लालची मोदी सरकार की कायराना चाल बताई है, और उन्होने कहा की वो ऐसी फासीवादी ताकतों से लड़ते रहेंगे। भाई, अब चाहे आप, मीसा भारती जी और आपका पूरा खानदान विक्टिम कार्ड खेल ले, अब आपकी दाल न गलने वाली।
मज़े की बात , ये आरोप उस वक़्त पर आ रहे हैं, जब विपक्ष को राष्ट्रपति चुनाव में एकजुटता दिखानी है, और ऐसे घोटाले तो उनके लिए और हानिकारक सिद्ध होंगे। ऊपर से नितीश कुमार की भाजपा से बढ़ती नजदीकियाँ तो जले पर नमक छिड़कने के समान है। ये तब है जब नितीश बाबू ने डिमौनिटाइज़ेशन और सेनाध्यक्ष के कड़े कदमों का खुलकर समर्थन किया। ये तो कुछ भी नहीं, इनहोने तो अभी अभी विपक्ष की उम्मीदवार, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के चुनाव को ही हास्यास्पद करार दिया, और यह कहा, की इन्हे चुना ही क्यों गया है, जब इनका हारना बदा है?
I have a lot of respect for #MeiraKumar ji, but 'Bihar ki beti' has been nominated only to lose?: CM Nitish Kumar pic.twitter.com/wXDvxYy50S
— ANI (@ANI) June 23, 2017
ममता बैनर्जी [जो खुद शारदा चित फ़ंड घोटाले जैसे मसलों में लिप्त है] और लालू यादव, जो आम तौर पर मोदी सरकार के घोर आलोचक हैं, अपने आप को विपक्ष का प्रमुख नेता बनते देखना चाहते हैं, परंतु ऐसे घोटाले न सिर्फ उनकी छवि पर बट्टा लगाते हैं, बल्कि इनके रथ यात्रा पर भी रोक लगाते हैं। न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर, पर इनके खुद के गृह राज्यों में इनकी छवि धूमिल करने में ये घोटाले और अन्य अपराध कोई कसर नहीं छोडते। अब तो बिहार रामभरोसे ही हैं, क्योंकि रामनाथ तो अब राष्ट्रपति बनने निकल पड़े, और नितीश बाबू का कोई भरोसा, की कब चुपके से सटक ले!