दुनिया में ये एक आम रीति है की शहरों, सड़कों और इलाकों को प्रसिद्ध लोगों के नाम देना, पर कभी भारत आइये, यहाँ तो अजब ही लीला है। यहाँ कई भारतीय शहरों के नाम लुटेरों, बलात्कारियों, सामूहिक हत्यारों के नाम पर रखे गए हैं, जो मूल रूप से मानवता के नाम पर कलंक थे, और जिन्होनें धर्मांध नरसंहारों के अलावा शायद ही कुछ और जीवन में किया होगा।
जहां यह समझा जा सकता है की इन लोगों ने कभी एक स्थान पर राज किया था, और उनके अनुयाइयों ने ये नाम रखे थे, पर ये हास्यास्पद नहीं है, की आज़ादी के 70 साल बाद भी हम उन नामों से चिपके हुए हैं? सिर्फ कुछ वोट बैंक हथियाने के लिए क्या हम दोगलों में शिरोमणि देश नहीं बने हैं, जो गद्दारों और आतताइयों की पूजा करता आया है?
आइये देखें उन भारतीय शहरों को जिनके नाम बदलना अवश्यंभावी है:-
१). औरंगाबाद :-इसमें ज़्यादा दिमाग खर्च करने की ज़रूरत नहीं है एक क्रूर शासक, जिसने हजारों मंदिर, खासकर हमारे पवित्र मंदिर ढहाए, जैसे बनारस का काशी विश्वनाथ, मथुरा का केशव देव मंदिर और गुजरात का प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर इत्यादि, उनके नाम पर आज भी एक पूरा शहर बसा हुआ है। मैं कहता हूँ हम स्वतंत्र भारतियों को क्या चीज़ रोक रही है, आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी, ऐसे कलंक को अपने माथे से मिटाने में? 2011 में शिव सेना ने ज़रूर प्रयास किए थे इसे संभाजीनगर में परिवर्तित करने के लिए, पर तब की काँग्रेस-एनसीपी गठबंधन ने इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। अब चूंकि बीजेपी दोनों राज्य और केंद्र में है, तो इसमें और विलंब आवश्यक कदापि नहीं है।
२). अहमदाबाद:- – पहले चालुक्य शासक कर्ण के नाम पर रखा गया कर्णावती आज अहमदाबाद के नाम से जाना जाता है। 11वीं सदी में स्थापित इस शहर का नाम 4 सदियों बाद मुजफ्फरीद खानदान के सुल्तान अहमद शाह ने 4 अहमदों के गुणगान में किया – काज़ी अहमद, मालिक अहमद, उनके इस्लामिक गुरु शेख अहमद खट्टू और खुद सुल्तान अहमद शाह। जमी मस्जिद को सिद्धपुर के रुद्र महालय मंदिर के खंडहरों पर बनवाने का श्रेय इन्ही को जाता है।
३). मुजफ्फरनगर:- इस नगर का पहले नाम सार्वत था, पर शाहजहाँ के राज में मुनव्वर लश्कर ने अपने पिता मुजफ्फर अली के नाम पर मुजफ्फरनगर रख दिया। इसके जबरन अधिकार में इन्होनें कई हिंदुओं का निर्ममता से खून बहाया।
४). इलाहाबाद – 1575 में इसे अकबर की देखरेख में पवित्र प्रयाग से इलाहाबाद में परिवर्तित किया गिया। जिस नगर का हिन्दू शास्त्रों में मान हो, और जहां कभी पवित्र नदियां गंगा यमुना और सरस्वती हुआ करती हों, उस पवित्र स्थल को इलाहाबाद नाम देने का क्या तुक बनता है भाई?
५). हैदराबाद:-चालुक्य वंश का कभी हिस्सा रहा यह ऐतिहासिक शहर गोलकोंडा के नाम से प्रसिद्ध था। फिर ये 1310 में अलाउद्दीन खिलजी के कब्जे में आया। इसके स्थापना के वर्षों में कई इतिहासकार इसे भाग्यनगर की पदवी भी देते आए हैं। बाद में इसे सऊदी अरब के खलीफा अली इब्न आबी तय्यब के नाम पर हैदर का शहर – हैदराबाद रखा गया। 1000 सालों से व्याप्त स्थानीय आस्था और संस्कृति को मिट्टी में मिलाकर दक्षिण में इस्लाम का प्रचार करने में इसका बहुत बड़ा हाथ था।
मैं जानता हूँ की इन भारतीय शहरों के नाम मात्र बदलने से ही कथित बुद्धिजीवियों और वामपंथियों को कितनी ज़ोर की मिर्ची लगेगी, पर एक बात बताइये, रूस में कहीं स्टेलिन के नाम पर कोई शहर है? या यूरोप में कहीं हिटलर के नाम पर कोई शहर या सड़क? अगर स्टेलिनग्रेड को वोल्गोग्रेड में परिवर्तित किया जा सकता है, तो हमें क्या रोक रहा है भाई?
स्वतंत्र भारत को क्या रोक रहा है अपनी संस्कृति को गले लगाने से, और मुख्य मीडिया के हाथों का मोहरा न बनने से? क्यों हम सेकुलर पार्टी और वामपंथी बुद्धिजीवियों के हाथों का मोहरा बन उन्ही के हमारे देश को बर्बाद करने के उद्देश्य को सार्थक बना रहे हैं?