2017 में प्रकाशित एडेलमान ट्रस्ट बारोमीटर ने बताया है, की “परंपरागत मीडिया में विश्वास 5 अंक नीचे गिर कर 57% प्रतिशत पर पहुँच चुका है, जो अन्य मंचों में 2012 से सबसे चिंताजनक है, जिसके बाद सोश्ल मीडिया का नंबर आता है, जो तीन अंकों से नीचे गिरा है। इनके मुक़ाबले ऑनलाइन मीडिया 5 अंकों की बढ़त के साथ भरोसे के मामले में काफी आगे बढ़ा है!”
इन जाँचों का कोई नया अर्थ नहीं है। जो भी वर्तमान एवं राजनैतिक नीतियों में एक अहम दिलचस्पी रखता है, वो इस बात से शत प्रतिशत परिचित है, की आज कल के मीडिया हाउस ने तथ्यों को परखना सबसे पीछे धकेल दिया है, क्योंकि जैसा सर्वविदित है, ‘एजेंडा ऊंचा रहे हमारा’। पर ये यहीं तक होता, तो बात अलग थी। आज के कथित पत्रकारों के लिए तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करना कोई बहुत मुश्किल बात नहीं है, बेशर्मी से झूठ फैलाने में इन्हे गर्व होता है।
केरल में गाय के बजाए बैल के कत्ल को जहां एनडीटीवी गाजे बाजे के साथ फैलाने में आगे रहा, वहीं मूल रूप से भारत के सबसे बेहतरीन अखबारों में से एक, ‘द हिन्दू’ ने भारतीय रेल्वे पर दही और रेफ़ाइंड तेल के खरीद फरोख्त में घपलेबाजी के झूठे आरोप लगाए। दुनिया का तो नहीं पता, पर अपने मीडिया हाउस अपने आप को भगवान से भी ज़्यादा पवित्र समझते हैं।
और भाई, गलती से आपने उनके राज़ खोलने की जुर्रत अगर की, तो देखिये, कैसे यही लोग अतिराष्ट्रवादी तत्वों द्वारा दमन और उनके कथित अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का रोना रोएँगे। पान सिंह तोमर फिल्म में मुख्य किरदार ने ऐसे दोगलों के लिए बिलकुल सटीक संवाद बोला है, ‘बाप छलकावे जाम और बेटा बांधे घुँघरू!’
भारतीय मीडिया के इन्ही आडंबरों के ताज़ा शिकार बने है विवादास्पद अभिनेता सलमान खान, या जैसे इनके प्रशंसक बुलाते है, सलमान भाई! अपने हालिया मूवी ‘ट्यूबलाइट’ के प्रचार से संबन्धित साक्षात्कार के समापन के पश्चात ये खबर फैल गयी की सलमान खान ने ये कहा है की भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के युद्ध उचित उत्तर नहीं है और युद्ध के बजाए बातचीत से अपने मतभेद हम सुलझा सकते हैं।
अब ज़ाहिर है, इसका असर तो ज़बरदस्त पड़ता। मीडिया में फैले इन रेपोर्ट्स, जहां सलमान खान ने युद्ध की आलोचना की है, इससे अमन की आशा की नौटंकी फैलाने वाले गिद्धों ने हाथों हाथ लिया, और ये मानने और मनवाने लगे की सलमान खान उनके हास्यास्पद अमन की आशा का समर्थन करते हैं। चूंकि हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे सम्बन्ध की असलियत भी जगजाहिर है, तो कुछ लोगों को गलतफहमी भी हुई की सलमान खान हमारी सेनाओं की मेहनत का माखौल उड़ा रहे हैं। पर सच क्या है?
चूंकि सलमान खान का विवादों से चोली दामन का नाता है, और दो बार वो कई अहम सबूत उनके खिलाफ होने के बावजूद अदालत से बेदाग छूटे हैं, इसलिए उनकी पैरवी करना श्रेयस्कर तो नहीं है, पर ये हमारा कर्तव्य है की आप तक सच पहुंचे, जिसकी हत्या करने का मानो भारतीय मीडिया ने ठेका ले रखा है।
सच तो यह है, की उस प्रोमोशनल साक्षात्कार में उपस्थित एक पत्रकार ने उनसे पूछा:-
“भारत पाकिस्तान के युद्ध पर कई अध्याय दिखाये जा चुके हैं, जबकि ट्यूबलाइट भारत चीन युद्ध के बारे में बताता है। ये क्या सिद्ध करता है?”
इसका बड़ा ही शांत उत्तर दिया सलमान भाई ने:- “उस युद्ध को हमने छुवा भी नहीं है। हमने सिर्फ उसका इस फिल्म के पृष्ठभूमि के तौर पर इस्तेमाल किया है। हमने सिर्फ इतना दिखाया है की यह जल्दी से लड़ाई खतम हो जाये ताकि हमारे जवान हमारे पास आ जाये, और उनके जवान उनके फ़ैमिली वालों के पास पहुँच जाये। तो साफ तौर पर जब जंग होती है तब दोनों तरफ के लोग मरते हैं और फिर परिवारों के पास उनके अपने नहीं होते, और उनके बिना उन्हे अपनी बाकी की ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ती है।“
सलमान खान यहाँ तक कह देते हैं की ‘जो ऐसे जंग का आदेश देते हैं, उनके हाथों में बंदूक थामकर उन्हे सबसे पहले युद्ध में लड़ने भेजना चाहिए।”
नीचे उस घटना की रिकॉर्डिंग है, जिसने ये सारा बखेड़ा खड़ा किया:-
ये तो साफ है की सलमान खान और उनके भाई और इस फिल्म में सह कलाकार सोहेल खान इस युद्ध में सैनिक के परिवार द्वारा चुकाई गयी कीमत को गिना रहे थे। उन्होने तो कभी नहीं कहा की पाकिस्तान को कूटनीतिक और सांस्कृतिक तरीके से मौजूदा समस्या के निवारण के लिए निपटे। उन्होने तो सिर्फ इतना कहा की जो लोग इस तरह के युद्ध से अपने स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, इन्हे अगर मोर्चे पर भेजा जाये, तो सबसे पहले यही भाग खड़े होंगे।
यह ज्ञात हो की भारत ने कभी युद्ध नहीं छेड़ा, जिसकी गलतफहमी गुरमहर कौर जैसे कुछ कंजरों को रहती हैं। जब तक हमें युद्ध में न घसीटा गया हो, तब तक हमने कभी युद्ध को अपना अस्त्र नहीं बनाया, जैसे 1971 में हमारे साथ पाकिस्तान ने किया था। 1965 हो या 1971, युद्ध हमेशा पाकिस्तान ने पहले शुरू किया था, जब उन्होने हमारी छावनियों और ऐयरफील्ड पर हमले किए। तो जो सलमान खान कह रहे हैं, ज़रूरी नहीं की यह भारत पर ही लागू होता हो।